जोधपुर. प्रदूषण स्तर के मामले में जोधपुर की देश मे स्थिति संतोषजनक नहीं है. ऐसे में जोधपुर की आबोहवा से चिंताजनक खबर है. यहां अति सूक्ष्म प्रदूषण कण पाए गए हैं. जिनका आकार सिर्फ 1 माइक्रोन है. सामान्य भाषा मे कहें तो यह बाल से भी 70 गुणा तक महीन होता है. रिपोर्ट देखिये...
एक माइक्रोन का अर्थ एक मीटर का 10 लाख वां हिस्सा है. इतने छोटे प्रदूषण के कण श्वसनतंत्र के लिए अत्यंत घातक होते हैं. जोधपुर के लाचू कॉलेज के प्राणीशास्त्र के विभागाध्यक्ष पुनीत सारस्वत का कहना है कि इतने छोटे कण धूल, मिट्टी, वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले धुएं के हो सकते हैं. वर्तमान में डब्ल्यूएचओ सहित केंद्र सरकार की एजेंसियां वायु प्रदूषण की माप के लिए केवल पीएम-10 और पीएम-2.5 माइक्रोन कणों का मापन करती है. देश में भी पीएम-1 कण के स्टैंडर्ड अब तक नहीं बनाए गए हैं.
डॉ सारस्वत के निर्देशन में हुए शोध में संभवत देश में पहली बार एक माइक्रोन ओर उससे छोटे कणों की मौजूदगी सामने आई है. ऐसे में सरकार ऐसे कणों मापक बनाने के लिए विचार कर सकेगी. डॉ पुनीत सारस्वत के साथ शोधार्थी सुचिता सिंह और श्रेया माथुर ने दस महीनों तक शहर के शास्त्रीनगर और बासनी क्षेत्र में वायु प्रदूषण का मापन किया. जिसमें एक माइक्रोन और इससे छोटे कण मिले हैं.
इसके लिए कॉलेज ने अल्ट्रा फाइन सेम्पलर मशीन का इस्तेमाल किया. जो अभी पॉल्यूशन विभाग सहित अन्य एजेंसियों के पास नहीं है. उनका यह रिसर्च पेपर अब जनरल में प्रकाशित होने जा रहा है. उल्लेखनीय है कि जोधपुर देश के टॉप 20 प्रदूषित शहरों में शामिल है. ऐसे में यहां इतने बारीक कणों की मौजूदगी आने वाले समय में परेशानी का सबब बन सकती है.
बाल से 70 गुणा बारीक, श्वसन तंत्र के लिए घातक
पीएम-1 कण मानव के शरीर के सबसे महीन हिस्से बाल की तुलना में 70 गुना अधिक महीन है. यह कण सांस नली तक आसानी से पहुंच सकते हैं. जिससे फेंफडों के प्रभावित होने का खतरा रहता है. क्योंकि मानव फेफड़े की सबसे छोटी ईकाई अल्वोली है जिनका औसत व्यास 200 माइक्रोन होता है और जिनकी संख्या दोनों फेफड़ों में 300 से 500 मिलियन होती है. जबकि मानव के बाल का औसत व्यास 70 माइक्रोन होता है. ऐसे में एक माइक्रोन के अति सूक्ष्म कण श्वसन तंत्र के लिए अति घातक होते हैं.
महिलाओं-बच्चों के लिए ज्यादा घातक
चिंता की बात यह है कि औद्योगिक क्षेत्रों में इस तरह के महीन कणों की उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता है. लेकिन शहर के शास्त्रीनगर जैसे पॉश रहवासी इलाके में भी बडी उपस्थित मिली है जो मनुष्य शरीर, खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए ज्यादा नुकसानदायक है. वर्तमान में प्रदूषण विभाग पीएम 2.5 तक के कण की उपस्थिति बताता है जो फेफड़ों तक पहुंच सकता है. जबकि पीएम 1 मनुष्य के रक्त से शरीर में प्रवेश कर सकता है.
स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव और इसकी विषाक्तता पर दुनियाभर के वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. जिसमें सामने आया है कि पीएम-1 और पीएम 2.5 का हानिकारक प्रभाव पुरुषों और वयस्कों की तुलना में महिलाओं और बच्चों में अधिक पाया गया.