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जोधपुरः होम क्वॉरेंटाइन रहने वाले मरीजों को खुद खरीदनी पड़ रही है दवाइयां

जोधपुर जिले के डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के अस्पताल हो या एम्स यहां भर्ती होने वाले कोरोना मरीजों का उपचार पूरी तरह से निशुल्क किया जा रहा है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा होम क्वॉरेंटाइन किए जाने वाले मरीजों के उपचार का खर्च उन्हें ही उठाना पड़ रहा है.

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मरीजों को खुद खरीदनी पड़ रही है दवाइयां
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Published : Jun 20, 2020, 10:34 PM IST

जोधपुर. एक ओर राज्य सरकार निजी अस्पतालों में कोविड मरीजों के निशुल्क उपचार की वकालत कर रही है. इसके अलावा जांच शुल्क भी नियंत्रित कर दिया गया है. लेकिन दूसरी और होम क्वॉरेंटाइन किए गए कोविड मरीजों की दवाइयां तक सरकार निशुल्क उपलब्ध नहीं करवा रही है.

दरअसल, मुख्यमंत्री के गृहनगर में लंबे समय से लोगों को होम क्वॉरेंटाइन के लिए प्रेरित कर घर पर ही रखा जा रहा है. बावजूद इन सभी मरीजों को अपनी दवाइयां खुद ही खरीदनी पड़ रही हैं. इतना ही नहीं दवाइयों के साथ-साथ शरीर में ऑक्सीजन की जांच के लिए पल्स ऑक्सीमीटर भी खरीदने पड़ रहे हैं. जिसकी रिपोर्ट सुबह शाम संबंधित डॉक्टर को फोन कर मरीज ही बता रहे हैं.

मरीजों को खुद खरीदनी पड़ रही है दवाइयां

इतना ही नहीं घर पर रहने वाले मरीजों की दोबारा जांच की व्यवस्था खत्म कर दी गई है. उन्हें किसी तरह का डिस्चार्ज नहीं मिलता है. आश्चर्य की बात यह है कि सीएम के शहर में माकूल व्यवस्थाओं का दावा करने वाले प्रशासन की पोल उस समय खुल जाती है जब ठीक हुए एक मरीज ने बताया कि जिस बीएलओ और डॉक्टर को देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी वो दोबारा कभी आए ही नहीं. भीतरी शहर के खेतरपाल चबूतरा निवासी दर्शन लूणावत ने बताया कि उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी. उसके बाद डॉक्टर ने पर्ची भेजी की यह दवाइयां मगवा ले और सुबह शाम तापमान की रिपोर्ट भेजते रहें.

पढ़ेंः अलवर: क्राइम और कोरोना नियंत्रण को लेकर SP ने अधिकारियों के साथ की बैठक

करीब 1200 रुपए का पल्स ऑक्सीमीटर खरीदना पड़ा और बाकी दवाइयों पर 600 रुपए खर्च आया. उनका कहाना है कि एक बार भी डॉक्टर घर नहीं आए. जब डिस्चार्ज सर्टिफिकेट मांगा तो बोले की ठीक हो गए अब जरूरत नहीं है. खेतरपाल के चबूतरे से गत महीने 8 रोगी आए थे. जिनमें 7 लोगों के दवाइयों के जिम्मेदारी देवेंद्र संचेती को मिली थी.

पढ़ेंः SMS अस्पताल ने रचा इतिहास, प्लाज्मा थेरेपी से Corona मरीजों को ठीक करने वाला देश का दूसरा हॉस्पिटल

वहीं, इस मामले पर जोधपुर के सीएमएचओ का तर्क भी अजीब है. उनका कहना है कि कोविड मरीज का सामाजिक बहिष्कार नहीं हो इसके लिए घर पर रखा जाता है. जिससे लोग उन्हें स्वीकार करें उन्हें प्रेरित किया जाता है कि वे अपनी देखभाल खुद करें. जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित का कहना हे कि आईसीएमआर की गाइडलाइन के मुताबिक लक्षण नजर नहीं आने पर बिना जांच के ही मरीज को डिस्चार्ज किया जाता है.

जोधपुर. एक ओर राज्य सरकार निजी अस्पतालों में कोविड मरीजों के निशुल्क उपचार की वकालत कर रही है. इसके अलावा जांच शुल्क भी नियंत्रित कर दिया गया है. लेकिन दूसरी और होम क्वॉरेंटाइन किए गए कोविड मरीजों की दवाइयां तक सरकार निशुल्क उपलब्ध नहीं करवा रही है.

दरअसल, मुख्यमंत्री के गृहनगर में लंबे समय से लोगों को होम क्वॉरेंटाइन के लिए प्रेरित कर घर पर ही रखा जा रहा है. बावजूद इन सभी मरीजों को अपनी दवाइयां खुद ही खरीदनी पड़ रही हैं. इतना ही नहीं दवाइयों के साथ-साथ शरीर में ऑक्सीजन की जांच के लिए पल्स ऑक्सीमीटर भी खरीदने पड़ रहे हैं. जिसकी रिपोर्ट सुबह शाम संबंधित डॉक्टर को फोन कर मरीज ही बता रहे हैं.

मरीजों को खुद खरीदनी पड़ रही है दवाइयां

इतना ही नहीं घर पर रहने वाले मरीजों की दोबारा जांच की व्यवस्था खत्म कर दी गई है. उन्हें किसी तरह का डिस्चार्ज नहीं मिलता है. आश्चर्य की बात यह है कि सीएम के शहर में माकूल व्यवस्थाओं का दावा करने वाले प्रशासन की पोल उस समय खुल जाती है जब ठीक हुए एक मरीज ने बताया कि जिस बीएलओ और डॉक्टर को देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी वो दोबारा कभी आए ही नहीं. भीतरी शहर के खेतरपाल चबूतरा निवासी दर्शन लूणावत ने बताया कि उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी. उसके बाद डॉक्टर ने पर्ची भेजी की यह दवाइयां मगवा ले और सुबह शाम तापमान की रिपोर्ट भेजते रहें.

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करीब 1200 रुपए का पल्स ऑक्सीमीटर खरीदना पड़ा और बाकी दवाइयों पर 600 रुपए खर्च आया. उनका कहाना है कि एक बार भी डॉक्टर घर नहीं आए. जब डिस्चार्ज सर्टिफिकेट मांगा तो बोले की ठीक हो गए अब जरूरत नहीं है. खेतरपाल के चबूतरे से गत महीने 8 रोगी आए थे. जिनमें 7 लोगों के दवाइयों के जिम्मेदारी देवेंद्र संचेती को मिली थी.

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वहीं, इस मामले पर जोधपुर के सीएमएचओ का तर्क भी अजीब है. उनका कहना है कि कोविड मरीज का सामाजिक बहिष्कार नहीं हो इसके लिए घर पर रखा जाता है. जिससे लोग उन्हें स्वीकार करें उन्हें प्रेरित किया जाता है कि वे अपनी देखभाल खुद करें. जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित का कहना हे कि आईसीएमआर की गाइडलाइन के मुताबिक लक्षण नजर नहीं आने पर बिना जांच के ही मरीज को डिस्चार्ज किया जाता है.

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