ओसियां (जोधपुर). कोरोना कालचक्र के बीच लागू हुए लॉकडाउन में आमजन सहित किसानों को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. बीते साल प्याज के दाम में उछाल को देखते हुए इस साल जोधपुर में ओसियां और तिंवरी क्षेत्र के किसानों ने हजारों हेक्टेयर में प्याज की फसल लगाई थी. एक ओर जहां खेतों में प्याज कि फसल पककर तैयार हैं और इस साल क्षेत्र में प्याज की बंपर उत्पादन होने से भी किसान काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं. लेकिन दूसरी तरफ कोराना महामारी और लॉकडाऊन के बीच प्याज का व्यापार व परिवहन बंद होने के कारण प्याज के पर्याप्त भाव न मिलने की चिंता किसानों को सताने लगी है.
आर्थिक तंगी के चलते किसान कम भाव में भी प्याज बेचने को मजबूर हैं. लॉकडाउन के दौरान कुछ व्यापारी प्याज खरीदने को ही तैयार नहीं तो कुछ फुटकर व्यापारी 5 रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्याज खरीद रहे हैं, जिससे किसानों को अपनी लागत का वाजिब दाम भी नहीं मिल पा रहा है. वहीं व्यापारियों का कहना है कि लॉकडाउन चल रहा है, ऐसे में हम प्याज खरीद भी लेगें तो बेचने कहां जाएंगे. प्याज कि आवक ज्यादा है और खपत कम है. होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे और प्याज कि बड़ी मंडियां बंद होने के कारण प्याज के दामों में गिरावट आई है. वहीं किसानों के पास प्याज का पर्याप्त भंडारण न होने से आगामी दिनों में बारिश आने से प्याज सड़ने का खतरा भी मंडराने लगा है.
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गौरतलब है कि क्षेत्र के सबसे बड़े प्याज उत्पादक तिंंवरी इलाके में हजारों बीघा में किसानों द्वारा की गई प्याज की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है. इस साल प्याज प्रति बीघा 140 से 150 कट्टे निकल रहा है. भारतीय किसान संघ के जिलाध्यक्ष तुलछाराम सिंंवर ने राज्य सरकार से मांग किया है कि प्याज फसल का पंजीयन करवाकर उचित भाव में खरीदी शुरू की जाए, जिससे किसानों को उचित भाव मिल सके. साथ ही समय रहते फसल को सड़ने से बचाया जा सके.
प्याज की खेती में किसान को प्रति बीघा यह बैठती है लागत...
- किसान द्वारा प्याज के पौध रोपने के लिये दो बार खेत का कल्टिवेटर करने का खर्च 800 रुपये, एक बार रोटावेटर के 800 रुपये
- कण, जिससे रोप तैयार करना होता है, एक बीघा में तीन किलो, 2200 रुपये प्रति किलो के भाव से 6600 रुपये
- प्याज कि चौबाई और उखाड़ने कि मजदूरी 8 हजार रुपये
- सुपर खाद तीन बोरी 1 हजार 50 रुपये, डीएपी दो बोरी 2400 रुपये
- निंदाई और घास खरपतवार कि दवाई 3 हजार रुपये
- एक कट्टा यूरिया 300 रूपये, कीटनाशक दवाई चार बार स्प्रे 5 हजार रुपये
- पानी फेरने का 2 हजार रुपये, अन्य खाद 2500 रुपये
- प्याज निकालने कि मजदूरी 7 हजार रुपये, 150 कट्टे बारदाने के 2 हजार रुपये
- मंडी भाड़ा 3 हजार रुपये, हमाली 1500 रुपये, टैक्ट्रर डीजल 5 हजार रुपये
- इस तरह किसान के खेत आने जाने का चार महीने का खर्च करीब 50 हजार 950 रुपये प्रति बीघा बैठता है
प्याज का लागत मूल्य भी निकालना हो रहा है मुश्किल
कोराना महामारी और लॉकडाउन के दौरान किसानों को प्याज कि फसल के जो भाव मिल रहे हैं. उसके अनुसार 5 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से एक बीघा के 150 कट्टें प्याज के 45 हजार रुपये मिल रहे हैं, जो लागत मूल्य से भी कम है. यानि किसान को प्याज की एक बीघा फसल बेचने पर करीब 6 हजार रुपये का नुकसान हो रहा है. वहीं अगर किसान 12 हजार रुपये के हिसाब से एक साल के लिये जमीन लेकर प्याज की खेती करता है तो उसे करीब 18 हजार रुपये का घाटा होता है. पिछले साल प्याज 100 रुपये में बिका, अब 5 रुपये में भी नहीं मिल पा रहे हैं खरीददार. अगर किसान एक बीघा प्याज कि बजाय गेहूं बोये तो उससे 18 क्विंटल गेहूं निकलता है, जो 36 हजार रुपये का होता है. गेहूं में खर्च कम होता है, अत: इस हिसाब से किसान को इस साल प्याज का फसल में भारी नुकसान होने कि संभावना है, जिससे लागत मूल्य निकालना भी मुश्किल हो रहा है.
कई राज्यों में पर्यटन के कारण रहती मांग, जो अब बिल्कुल खत्म
हिमाचल प्रदेश और अमृतसर में पर्यटन के कारण होटलों में प्याज की बड़ी मात्रा में मांग रहती है. लेकिन इस समय पर्यटन खत्म हो जाने के कारण इस प्रकार की प्याज की मांग भी खत्म हो गई है, जिससे जोधपुर से इन जगहों पर जाने वाले प्याज की खपत भी नहीं हो पा रही है तथा कोरोना से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के चलते आगामी कुछ समय में जल्द ही ये मांग पुनः निकलने के भी आसार नहीं हैं. ऐसे में कहीं न कहीं प्याज की मांग पर प्रभावित होगी, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा.
प्याज भंडारण बने तो कुछ समय तक प्याज को सहेज कर रखा जा सकता है
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत प्याज भंडारण के लिए किसानों को 50 फीसदी अनुदान दिया जाता है. विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक 1 लाख 70 हजार की लागत आती है. लागत का आधा अनुदान मिल रहा है. जिले में लगभग 25 हजार किसान प्याज की खेती करते हैं. ऐसे में प्याज भंडारण के लिए किसानों को बिना आवेदन भंडारण बनाने की अनुमति देकर भौतिक सत्यापन कर अनुदान दिया जाए तो किसान खेतों में पड़े प्याज को अक्टूबर तक सहेज कर रख सकते हैं.