जोधपुर. प्रदेश में केन्द्रीय शुष्क अनुसंधान संस्थान के मारवाड़ में बेर की फसल दिनों दिन अच्छी होती जा रही है. यह बेर की फसल दिसंबर से लेकर मार्च तक होती है. जानकारी के मुताबिक बेर के लिए मरुस्थलीय परिस्थितियों के साथ इनके पौधों को पानी की भी आवश्यकता भी होती है. वहीं ड्रेनिंग सिस्टम से छह गुना की जगह पर बेर की झाड़ियां थाई एप्पल बेर से लदी हुई है.
काजरी के वैज्ञानिकों का कहना है कि पोषक तत्व प्रबंधन से यह संभव है, इसके अलावा माइक्रो क्रॉप मैनेजमेंट के जरिए बेर की झाड़ियों के बीच की जगह में भी अन्य फसल का उत्पादन भी किया जा सकता है. जो किसानों के लिए एक अतिरिक्त लाभ साबित होगा, साथ ही जो भी फसल उगाई जाएंगी उसको पर्याप्त मात्रा में उर्वरक भी मिलते रहेंगे.
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बेर की कुल 46 किस्में हैं, जिनमें से दो दर्जन से ज्यादा काजरी के उद्यानिकी प्रभाग में लहलहा रहा है. वहीं एप्पल बेर का आकार सामान्य बेर से बड़ा होता है और इस बेर में विटामिन सी और बी कॉम्पलेक्स जैसे पोषक तत्व सम्मिलित होते हैं. प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने से यह घाव को जल्दी भरने में भी काफी सहायक होता है. गौरतलब है कि काजरी मारवाड़ के किसानों को कम पानी में बेहतर फसल और अधिक उत्पादन तकनीकों से हमेशा सामना कराती रहती है. वहीं काजरी ने पिछले 50 वर्षों में मारवाड़ के किसानों को बेर की फसल की विभिन्न किस्मों की सौगात दे रखी है. जिससे किसान हमेशा लाभान्वित होते हैं.