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तीन संतानों का त्याग करके प्रेमी के संग महिला ने जाने की जताई इच्छा

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Published : Mar 10, 2021, 10:16 PM IST

Updated : Mar 10, 2021, 11:09 PM IST

एक महिला ने राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष साफ तौर से अपनी ही कोख से जन्मी तीन संतानों को साथ रखने के लिए इनकार कर दिया. महिला ने पति और तीन संतानों को छोड़कर प्रेम के साथ ही जाने की इच्छा जताई, जिसपर उच्च न्यायालय ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित कर दिया.

Rajasthan High Court, राजस्थान समाचार
तीन संतानों को छोड़ प्रेमी संग जाने को राजी

जोधपुर. एक महिला ने राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष साफ तौर से अपनी ही कोख से जन्मी तीन संतानों को साथ रखने के लिए इनकार कर दिया. महिला ने पति और तीन संतानों को छोड़कर प्रेम के साथ ही जाने की इच्छा जताई, जिसपर उच्च न्यायालय ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित कर दिया.

राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायाधीश देवेन्द्र कच्छवाह की खंडपीठ के समक्ष अमराराम की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई हुइ. सुनवाई के दौरान अमराराम की पत्नि को नारी निकेतन से लाकर खंडपीठ के समक्ष पेश किया गया, जहां दोबारा बुधवार को न्यायालय ने प्रयास किया कि मं अपनी तीन संतानों को अपने साथ रखने को तैयार हो जाए, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया.

यह भी पढ़ेंः SPECIAL : थार एक्सप्रेस बंद होने से लगा हिंद-सिंध के रिश्तों पर ब्रेक...पटरी पर रेल सेवा बहाल करने की मांग

महिला ने न्यायालय के समक्ष साफ तौर पर कहा कि उसने अपनी इच्छा से ही प्रेमी के साथ जाने का रास्ता चुना है और उसने स्वेच्छा से ही सबंध स्थापित किए हैं, उस पर ना तो दबाव है और ना ही वो इन तीन संतानों को रखना चाहती है. ऐसे में न्यायालय ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित कर दिया.

वहीं, न्यायालय के समक्ष अब तीन संतानों, जिनके बेहतर भविष्य के लिए क्या कुछ हो सकता है, उसके लिए न्यायालय ने अतिरिक्त महाधिवक्ता फरजंद अली को आवश्यक निर्देश दिए कि समाज कल्याण विभाग और किशोर न्याय अधिनियम के तहत लागू योजनाओं में इन तीनों के लिए बेहतर देखभाल कैसे हो सकती है उस पर अगली सुनवाई तक अनुपालना रिपोर्ट पेश करे. अब इस मामले में तीनों बच्चों की देखभाल को लेकर 8 अप्रैल को सुनवाई होगी.

जोधपुर. एक महिला ने राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष साफ तौर से अपनी ही कोख से जन्मी तीन संतानों को साथ रखने के लिए इनकार कर दिया. महिला ने पति और तीन संतानों को छोड़कर प्रेम के साथ ही जाने की इच्छा जताई, जिसपर उच्च न्यायालय ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित कर दिया.

राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायाधीश देवेन्द्र कच्छवाह की खंडपीठ के समक्ष अमराराम की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई हुइ. सुनवाई के दौरान अमराराम की पत्नि को नारी निकेतन से लाकर खंडपीठ के समक्ष पेश किया गया, जहां दोबारा बुधवार को न्यायालय ने प्रयास किया कि मं अपनी तीन संतानों को अपने साथ रखने को तैयार हो जाए, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया.

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महिला ने न्यायालय के समक्ष साफ तौर पर कहा कि उसने अपनी इच्छा से ही प्रेमी के साथ जाने का रास्ता चुना है और उसने स्वेच्छा से ही सबंध स्थापित किए हैं, उस पर ना तो दबाव है और ना ही वो इन तीन संतानों को रखना चाहती है. ऐसे में न्यायालय ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित कर दिया.

वहीं, न्यायालय के समक्ष अब तीन संतानों, जिनके बेहतर भविष्य के लिए क्या कुछ हो सकता है, उसके लिए न्यायालय ने अतिरिक्त महाधिवक्ता फरजंद अली को आवश्यक निर्देश दिए कि समाज कल्याण विभाग और किशोर न्याय अधिनियम के तहत लागू योजनाओं में इन तीनों के लिए बेहतर देखभाल कैसे हो सकती है उस पर अगली सुनवाई तक अनुपालना रिपोर्ट पेश करे. अब इस मामले में तीनों बच्चों की देखभाल को लेकर 8 अप्रैल को सुनवाई होगी.

Last Updated : Mar 10, 2021, 11:09 PM IST
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