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International Nurses Day 2022 : एक ऐसा नर्स जो मरीज के मरने के बाद भी जुटा रहता है उनकी सेवा में, 25 साल से निभा रहे फर्ज

12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स डे मनाया जाता है. इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे मेल नर्स की कहानी, जो पिछले 25 साल से ऐसे हृदयरोगियों की सेवा में लगा है, जिन्हें पेसमेकर लगा होता है. दुर्भाग्य से ऐसे मरीज की मौत होने पर उसके शरीर से पेसमेकर और इसकी बैट्री निकालने का काम करते हैं जोधपुर के अरविंद अपूर्वा. खास बात यह है कि वे इस सेवा का कोई शुल्क नहीं लेते (Free pacemaker removal by Jodhpur nurse from 25 years) हैं.

Nurse Arvind Apoorva removes pacemaker from dead bodies
International Nurses Day 2022 : एक ऐसा नर्स जो मरीज के मरने के बाद भी जुटा रहता है उनकी सेवा में, निशुल्क देता है यह सेवा
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Published : May 12, 2022, 6:02 AM IST

जोधपुर. अस्पताल में बीमार मरीजों की सेवा करना नर्सेज का कर्तव्य है. जिसे वे बखूबी निभाते हैं. लेकिन किसी मरीज के निधन के बाद भी कोई नर्स उसके परिवार व समाज के प्रति अपना दायित्व निभाता है, तो वह नाम है जोधपुर के अरविंद अपूर्वा का. डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज से जुड़े महात्मा गांधी अस्पताल में कार्यरत वरिष्ठ नर्सिंग आफिसर अरिवंद अपूर्वा ऐसा कार्य करते हैं जिसके बारे में बहुत कम सुनने को मिलता है. 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स डे पर हम आपको बता रहे हैं अपूर्वा की मानव सेवा की सच्ची कहानी...

अपूर्वा पेसमेकर लगे हृदयरोगियों की मृत्यु के बाद उनके शरीर से इसे निकालने का काम करते हैं. वे अब तक 108 पेसमेकर निकाल चुके (Nurse Arvind Apoorva removes pacemaker from dead bodies) हैं. इनमें चार साल की बच्ची से लेकर कोरोना के मरीज भी शामिल हैं. कार्डियोलोजिस्ट्स का कहना है कि पेसमेकर को निकालना इसलिए जरूरी है कि इसमें ड्राइ बैटरी लगी होती है. अगर उसे निकाला नहीं जाता हैं, तो अंतिम संस्कार के समय अग्नि की ​तपिश से विस्फोट होने का खतरा हो सकता है. क्योंकि लिथियम की बैटरी अधिक तापमान पर फूट जाती है.

एक ऐसा नर्स जो मरीज के मरने के बाद भी जुटा रहता है उनकी सेवा में.

पढ़ें: नर्स डे स्पेशल: 'कोरोना योद्धा' की भूमिका निभा रही नर्सों को समर्पित है आज का दिन

25 साल से निशुल्क सेवा: नर्सिंगकर्मी अरविंद अपूर्वा विगत 25 साल से यह काम कर रहे हैं. वह भी पूरी तरह से निशुल्क. कार्डियोलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ संजीव सांधवी के निर्देशन में उन्होंने यह सेवा कार्य शुरू किया था. वे अब तक 108 लोगों के शरीर से पेसमेकर निकाल चुके हैं. अपूर्वा ने बताया कि कोरोना काल के दौरान कई हृदयरोगियों की मृत्यु हुई थी. इस दौरान उनके परिजन न तो शव के नजदीक आ रहे थे और न ही दाह संस्कार में शामिल हो रहे थे. उस समय पेसमेकर निकालना चुनौती का काम था. बिना सहयोगी के यह काम किया गया. इसके अलावा कई बार ऐसे मौके आते हैं जब परिजनों को शव चिता पर रखने के बाद याद आता है कि पेसमेकर निकलवाना है. ऐसी स्थिति में वे अपना काम छोड़कर जाते हैं. जोधपुर शहर के अलावा आस-पास के गांवों में भी वे यह निशुल्क सेवा दे रहे (Free pacemaker removal by Jodhpur nurse from 25 years) हैं. इसको लेकर उन्हें सम्मान भी मिले हैं.

पढ़ें: डूंगरपुर: नर्स डे के अवसर नर्सिंगकर्मियों का पुष्पवर्षा कर किया अभिनंदन

इसलिए लगाया जाता है: जिन मरीजों की हार्ट की धकड़न ब्लॉकेज के कारण या फिर स्वतः ही कम हो जाती है, तब पेसमेकर लगाए जाते हैं. पेसमेकर बैट्री से चलता है. इससे जुड़े तार हार्ट में लगते हैं. जिससे धड़कन मैनेज की जाती है. कार्डियोलोजिस्ट डॉ रोहित माथुर का कहना है कि हम सभी हिंदू मरीजों के परिजनों को सलाह देते हैं कि मरीज का निधन होने पर इसकी सूचना जरूर दें, जिससे बैट्री और पेसमेकर निकाला जा सके. ऐसा नहीं करने पर अंतिम संस्कार के समय विस्फोट होने की आशंका रहती है. इससे मृत शरीर के अलावा आस-पास के लोगों को भी नुकसान हो सकता है. यह कार्य अरविंद अपूर्वा बखूबी पूरा कर रहे हैं.

पढ़ें: अजमेर: कोरोना वॉरियर्स ने मनाया वर्ल्ड नर्स डे, लोगों की सेवा करते रहने का किया प्रण

हर साल 20 हजार पेस मेकर लगते हैं: भारत में हृदयरोगियों को पेसमेकर लगाने की शुरूआत सितंबर 1994 में हुई थी. वर्तमान में हर वर्ष 20 हजार मरीजों के पेसमेकर लगाए जाते हैं. जोधपुर में हर साल करीब 400 पेसमेकर लगाए जाते हैं. पेसमेकर की लाइफ 3 से 7 साल होती है. आवश्यकता होने पर इसे और इसकी बैट्री बदली जाती है. हालांकि अब तकनीक बदलने के साथ बिना बैटरी के पेसमेकर भी आने लगे हैं, लेकिन अभी ये काफी महंगे हैं.

जोधपुर. अस्पताल में बीमार मरीजों की सेवा करना नर्सेज का कर्तव्य है. जिसे वे बखूबी निभाते हैं. लेकिन किसी मरीज के निधन के बाद भी कोई नर्स उसके परिवार व समाज के प्रति अपना दायित्व निभाता है, तो वह नाम है जोधपुर के अरविंद अपूर्वा का. डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज से जुड़े महात्मा गांधी अस्पताल में कार्यरत वरिष्ठ नर्सिंग आफिसर अरिवंद अपूर्वा ऐसा कार्य करते हैं जिसके बारे में बहुत कम सुनने को मिलता है. 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स डे पर हम आपको बता रहे हैं अपूर्वा की मानव सेवा की सच्ची कहानी...

अपूर्वा पेसमेकर लगे हृदयरोगियों की मृत्यु के बाद उनके शरीर से इसे निकालने का काम करते हैं. वे अब तक 108 पेसमेकर निकाल चुके (Nurse Arvind Apoorva removes pacemaker from dead bodies) हैं. इनमें चार साल की बच्ची से लेकर कोरोना के मरीज भी शामिल हैं. कार्डियोलोजिस्ट्स का कहना है कि पेसमेकर को निकालना इसलिए जरूरी है कि इसमें ड्राइ बैटरी लगी होती है. अगर उसे निकाला नहीं जाता हैं, तो अंतिम संस्कार के समय अग्नि की ​तपिश से विस्फोट होने का खतरा हो सकता है. क्योंकि लिथियम की बैटरी अधिक तापमान पर फूट जाती है.

एक ऐसा नर्स जो मरीज के मरने के बाद भी जुटा रहता है उनकी सेवा में.

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25 साल से निशुल्क सेवा: नर्सिंगकर्मी अरविंद अपूर्वा विगत 25 साल से यह काम कर रहे हैं. वह भी पूरी तरह से निशुल्क. कार्डियोलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ संजीव सांधवी के निर्देशन में उन्होंने यह सेवा कार्य शुरू किया था. वे अब तक 108 लोगों के शरीर से पेसमेकर निकाल चुके हैं. अपूर्वा ने बताया कि कोरोना काल के दौरान कई हृदयरोगियों की मृत्यु हुई थी. इस दौरान उनके परिजन न तो शव के नजदीक आ रहे थे और न ही दाह संस्कार में शामिल हो रहे थे. उस समय पेसमेकर निकालना चुनौती का काम था. बिना सहयोगी के यह काम किया गया. इसके अलावा कई बार ऐसे मौके आते हैं जब परिजनों को शव चिता पर रखने के बाद याद आता है कि पेसमेकर निकलवाना है. ऐसी स्थिति में वे अपना काम छोड़कर जाते हैं. जोधपुर शहर के अलावा आस-पास के गांवों में भी वे यह निशुल्क सेवा दे रहे (Free pacemaker removal by Jodhpur nurse from 25 years) हैं. इसको लेकर उन्हें सम्मान भी मिले हैं.

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इसलिए लगाया जाता है: जिन मरीजों की हार्ट की धकड़न ब्लॉकेज के कारण या फिर स्वतः ही कम हो जाती है, तब पेसमेकर लगाए जाते हैं. पेसमेकर बैट्री से चलता है. इससे जुड़े तार हार्ट में लगते हैं. जिससे धड़कन मैनेज की जाती है. कार्डियोलोजिस्ट डॉ रोहित माथुर का कहना है कि हम सभी हिंदू मरीजों के परिजनों को सलाह देते हैं कि मरीज का निधन होने पर इसकी सूचना जरूर दें, जिससे बैट्री और पेसमेकर निकाला जा सके. ऐसा नहीं करने पर अंतिम संस्कार के समय विस्फोट होने की आशंका रहती है. इससे मृत शरीर के अलावा आस-पास के लोगों को भी नुकसान हो सकता है. यह कार्य अरविंद अपूर्वा बखूबी पूरा कर रहे हैं.

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हर साल 20 हजार पेस मेकर लगते हैं: भारत में हृदयरोगियों को पेसमेकर लगाने की शुरूआत सितंबर 1994 में हुई थी. वर्तमान में हर वर्ष 20 हजार मरीजों के पेसमेकर लगाए जाते हैं. जोधपुर में हर साल करीब 400 पेसमेकर लगाए जाते हैं. पेसमेकर की लाइफ 3 से 7 साल होती है. आवश्यकता होने पर इसे और इसकी बैट्री बदली जाती है. हालांकि अब तकनीक बदलने के साथ बिना बैटरी के पेसमेकर भी आने लगे हैं, लेकिन अभी ये काफी महंगे हैं.

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