जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए एकलपीठ के आदेश को उचित मानते हुए 1965 के युद्धवीर सैनिक की विधवा पत्नि को उसका हक देने का आदेश देते हुए राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत मोहंती व न्यायाधीश विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने एकलपीठ न्यायाधीश संदीप मेहता के आदेश को यथावत रखते हुए युद्धवीर की विधवा सोवनी देवी के हक में आदेश पारित किया है.
राज्य सरकार द्वारा एकलपीठ के आदेश को खंडपीठ के समक्ष चुनौती देते हुए युद्धवीर की विधवा को 25 बीघा जमीन आवंटन नही करने की अपील पेश की थी. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता गजेन्द्र सिंह बुटाटी ने बताया की याचिकाकर्ता सोवनी देवी ने रिट याचिका दर्ज कर कोर्ट को अवगत कराया की 1965 मे याची के पति भैरूलाल ने भारत पाक युद्ध मे भाग लिया जिसमे माइन ब्लास्ट में वे डिसेबल हो गए व सम्बन्धित रूल्स के अनुसार उन्हें 25 बीघा जमीन आवांटन की सिफारिश की गई थी परंतु आज तक जमीन का कब्जा नहीं दिया.
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एकलपीठ मे फैसला करते हुए जस्टिस सन्दीप मेहता ने सम्बंधित जमीन के आवंटन व कब्जे के आदेश पारित किये थे. एकलपीठ के फैसले को सरकार ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ मे चुनौती दी व अतिरिक्त महाधिवक्ता रेखा बोराना ने राज्य की और से पैरवी करते हुए कहा की याची ने 40 साल बाद याचिका दायर की है. इसलिये देरी के आधार पर उन्हे यह लाभ नही दिया जा सकता. बचाव में पुर्व सैनिक की विधवा की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता गजेन्द्र सिंह बुटाटी ने कहा की देश के लिये युद्ध में बलिदान देने वाले व युद्ध में विकलांग हुए सैनिकों को 25 बीघा सिंचाई या 50 बीघा असिंचित जमीन आवंटन का प्रावधान है, राज्य सरकार, देश के लिये काम आने वाले सैनिकों को अनिवार्य रूप से जमीन आवंटन करने को कानूनी रूप से बाध्य है, सरकार इससे मुंह नही मोड़ सकती.
सरकारी अधिकारियो की लापरवाही व समय पर जमीन आवंटन नहीं करने की सज़ा सैनिक परिवार को नही दी जा सकती. उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सैनिक परिवार के हक मे फैसला सुनाते हुए कहा की राज्य सरकार का ऐसा रवैया देश कि सरहदो की रक्षा करते सैनिको के मनोबल को ठेस पहुंचता है. प्रधान मंत्री कौटिल्य व राजा चंद्रागुप्त कि वार्ता का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने कहा लोक कल्याणकरी राज्य के रूप मे सरकार का यह दायित्व है की वह अपने सैनिको का मनोबल बनाये रखे.