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आयुर्वेद कॉलेजों में सीटें रिक्त रहने पर याचिकाएं, उच्च न्यायालय ने याचिकाओं को कर दिया खारिज, कहा- सीसीआईएम ने नहीं की थी अनुशंसा

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Published : Jun 1, 2021, 11:07 PM IST

राजस्थान उच्च न्यायालय के जस्टिस दिनेश मेहता की अदालत ने आयुर्वेद कॉलेजों द्वारा दायर याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि नीट में पर्सेंटाइल कम करने के लिए सीसीआईएम ने केन्द्र सरकार को अनुशंसा नहीं की है. इसीलिए उसे कम नहीं किया जा सकता है. आयुर्वेद कॉलेजों में अधिकांश सीटें खाली होने के चलते ज्योति विद्यापीठ व अन्य आयुर्वेद कॉलेजों की ओर से राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिका पेश की गई थी.

Ayurveda colleges petition, Rajasthan High Court
आयुर्वेद कॉलेजों में सीटें रिक्त रहने पर याचिकाएं

जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय के जस्टिस दिनेश मेहता की अदालत ने आयुर्वेद कॉलेजों द्वारा दायर याचिकाओं को यह कहते हुये खारिज कर दिया कि नीट में पर्सेंटाइल कम करने के लिए सीसीआईएम ने केन्द्र सरकार को अनुशंसा नहीं की है. इसीलिए उसे कम नहीं किया जा सकता है. आयुर्वेद कॉलेजों में अधिकांश सीटें खाली होने के चलते ज्योति विद्यापीठ व अन्य आयुर्वेद कॉलेजों की ओर से राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिका पेश की गई थी.

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कुलदीप माथुर व अखिलेश राजपुरोहित ने याचिकाओं में बताया कि नीट परीक्षा के पर्सेंटाइल के आधार पर ही एमबीबीएस, बीडीएस एवं अब केन्द्र सरकार बीएएमएस और बीएचएमएस कोर्स में भी प्रवेश दे रहे हैं. जिसकी वजह से अधिकांश सीटें आयुर्वेद कॉलेजों में खाली पड़ी हैं. याचिका में बताया गया कि राजस्थान में आयुर्वेद कॉलेजों में चौकाने वाले आंकड़े हैं. जहां आयुर्वेद कॉलेज में 770 में से 77 रिक्त हैं. यूनानी कॉलेज में 153 में से 83 सीटें खाली हैं. होम्योपैथी कॉलेजों में 745 सीटों में से 482 सीटें खाली हैं. वहीं योग और प्राकृतिक चिकित्सा में 700 और 606 सीटें खाली हैं.

याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने कहा कि नीट योग्यता को लेकर पचास पर्सेंटाइल थे, लेकिन एपेक्स कोर्ट द्वारा चालीस पर्सेंटाइल कर दिए गए हैं. फिर तीस पर्सेंटाइल कर दिए. उसके बावजूद सीट रिक्त हैं. ऐसे में नीट की बाध्यता नहीं होनी चाहिए. वहीं केन्द्र सरकार की ओर से एएसजी मुकेश राजपुरोहित एवं केन्द्रीय मेडिसिन विभाग की ओर से हेमन्त दत्त ने पैरवी करते हुए कहा कि नीट योग्यता और अनिवार्य रूप से आवश्यक है. मेडिकल शिक्षा के लिए छात्र को न्यूनतम प्रतिशत होना आवश्यक है, अन्यथा योग्यता नहीं रहेगी. मेडिकल क्षेत्र में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा होना आवश्यक है, अन्यथा एक बिन्दू से नीचे गुणवत्ता पूर्ण मेडिकल शिक्षा नहीं हो पाएगी.

पढ़ें- बाल संरक्षण सेवाओं पर गहलोत सरकार ने लगाया रेस्मा, कर्मचारी नहीं कर सकेंगे हड़ताल

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अंकों की बाध्यता के चलते सीटें रिक्त रहने से बुनियादी ढांचा गड़बड़ होगा और आयुर्वेद कॉलेज बंद होने की कगार पर आ जाएंगे. उन्होने कहा कि नीट की बाध्यता को हटाया जाए या पर्सेंटाइल सिस्टम के बगैर ही प्रवेश दिया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि बीडीएस में हर्षित अग्रवाल को भी तीस पर्सेंटाइल पर प्रवेश दिया गया है. इस पर केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि बीडीएस में डीसीआई ने अनुशंसा की तो पर्सेंटाइल कम कर दिए गए, लेकिन आयुष कॉलेजों के लिए सीसीआईएम ने केन्द्र सरकार को पर्सेंटाइल कम करने की अनुशंसा नहीं की थी. ऐसे में आयुष में तीस पर्सेंटाइल से कम नहीं हो सकते है. अधिवक्ता निहार जैन ने कहा कि अब तो काउंसलिंग भी पूरी हो चुकी है. ऐसे में अब कुछ करने की गुजांइश नहीं है. उच्च न्यायालय सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिकाओं को खारिज कर दिया.

गौरतलब है कि पूर्व में भी आयुर्वेद कॉलेजों की ओर से याचिकाए पेश की थी, लेकिन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पुष्पेन्द्र सिंह भाटी ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिकाओं को निस्तारित करते हुए निर्देश दिए थे कि याचिकाकर्ता केन्द्र सरकार के समक्ष तीन दिन में प्रतिवेदन प्रस्तुत करे और विभाग इस पर निर्णय ले, लेकिन केन्द्र सरकार ने पर्सेंटाइल कम नहीं किए थे. जिसकी वजह से दोबारा याचिकाए पेश कर दी गई थी.

जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय के जस्टिस दिनेश मेहता की अदालत ने आयुर्वेद कॉलेजों द्वारा दायर याचिकाओं को यह कहते हुये खारिज कर दिया कि नीट में पर्सेंटाइल कम करने के लिए सीसीआईएम ने केन्द्र सरकार को अनुशंसा नहीं की है. इसीलिए उसे कम नहीं किया जा सकता है. आयुर्वेद कॉलेजों में अधिकांश सीटें खाली होने के चलते ज्योति विद्यापीठ व अन्य आयुर्वेद कॉलेजों की ओर से राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिका पेश की गई थी.

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कुलदीप माथुर व अखिलेश राजपुरोहित ने याचिकाओं में बताया कि नीट परीक्षा के पर्सेंटाइल के आधार पर ही एमबीबीएस, बीडीएस एवं अब केन्द्र सरकार बीएएमएस और बीएचएमएस कोर्स में भी प्रवेश दे रहे हैं. जिसकी वजह से अधिकांश सीटें आयुर्वेद कॉलेजों में खाली पड़ी हैं. याचिका में बताया गया कि राजस्थान में आयुर्वेद कॉलेजों में चौकाने वाले आंकड़े हैं. जहां आयुर्वेद कॉलेज में 770 में से 77 रिक्त हैं. यूनानी कॉलेज में 153 में से 83 सीटें खाली हैं. होम्योपैथी कॉलेजों में 745 सीटों में से 482 सीटें खाली हैं. वहीं योग और प्राकृतिक चिकित्सा में 700 और 606 सीटें खाली हैं.

याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने कहा कि नीट योग्यता को लेकर पचास पर्सेंटाइल थे, लेकिन एपेक्स कोर्ट द्वारा चालीस पर्सेंटाइल कर दिए गए हैं. फिर तीस पर्सेंटाइल कर दिए. उसके बावजूद सीट रिक्त हैं. ऐसे में नीट की बाध्यता नहीं होनी चाहिए. वहीं केन्द्र सरकार की ओर से एएसजी मुकेश राजपुरोहित एवं केन्द्रीय मेडिसिन विभाग की ओर से हेमन्त दत्त ने पैरवी करते हुए कहा कि नीट योग्यता और अनिवार्य रूप से आवश्यक है. मेडिकल शिक्षा के लिए छात्र को न्यूनतम प्रतिशत होना आवश्यक है, अन्यथा योग्यता नहीं रहेगी. मेडिकल क्षेत्र में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा होना आवश्यक है, अन्यथा एक बिन्दू से नीचे गुणवत्ता पूर्ण मेडिकल शिक्षा नहीं हो पाएगी.

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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अंकों की बाध्यता के चलते सीटें रिक्त रहने से बुनियादी ढांचा गड़बड़ होगा और आयुर्वेद कॉलेज बंद होने की कगार पर आ जाएंगे. उन्होने कहा कि नीट की बाध्यता को हटाया जाए या पर्सेंटाइल सिस्टम के बगैर ही प्रवेश दिया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि बीडीएस में हर्षित अग्रवाल को भी तीस पर्सेंटाइल पर प्रवेश दिया गया है. इस पर केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि बीडीएस में डीसीआई ने अनुशंसा की तो पर्सेंटाइल कम कर दिए गए, लेकिन आयुष कॉलेजों के लिए सीसीआईएम ने केन्द्र सरकार को पर्सेंटाइल कम करने की अनुशंसा नहीं की थी. ऐसे में आयुष में तीस पर्सेंटाइल से कम नहीं हो सकते है. अधिवक्ता निहार जैन ने कहा कि अब तो काउंसलिंग भी पूरी हो चुकी है. ऐसे में अब कुछ करने की गुजांइश नहीं है. उच्च न्यायालय सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिकाओं को खारिज कर दिया.

गौरतलब है कि पूर्व में भी आयुर्वेद कॉलेजों की ओर से याचिकाए पेश की थी, लेकिन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पुष्पेन्द्र सिंह भाटी ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिकाओं को निस्तारित करते हुए निर्देश दिए थे कि याचिकाकर्ता केन्द्र सरकार के समक्ष तीन दिन में प्रतिवेदन प्रस्तुत करे और विभाग इस पर निर्णय ले, लेकिन केन्द्र सरकार ने पर्सेंटाइल कम नहीं किए थे. जिसकी वजह से दोबारा याचिकाए पेश कर दी गई थी.

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