जोधपुर. पूर्व विदेश मंत्री और मारवाड़ के कद्दावर नेता जसवंत सिंह जसोल का रविवार सुबह दिल्ली में लंबी बिमारी के बाद निधन हो गया. वे अगस्त 2014 से ब्रेन हैमरेज के चलते एक तरह से कोमा में थे. उनके निधन से मारवाड़ में उनके समर्थकों में शोक की लहर दौड़ गई.
जसोल का शव दिल्ली में त्रिमूर्ति भवन में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है. इसके बाद विशेष विमान से जोधपुर लाया जाएगा. यहां उनके फार्म हाउस में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. फार्म हाउस पर इसकी तैयारियां कर ली गई हैं. भाजपा नेता जितेंद्र राज लोढा ने बताया कि सरकारी गाइडलाइन के मुताबिक ही उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. निधन की सूचना के बाद उनके रिश्तेदारों का फार्म हाउस पर जमा होना शुरू हो गए है. जसोल के निधन पर प्रधानमंत्री सहित प्रदेश के भाजपा नेताओं ने शोक जताया है. बता दें कि जसोल को 2014 में पार्टी के निर्णय के विरुद्ध जाकर बाड़मेर से लोकसभा का निर्दलीय चुनाव लड़ने पर पार्टी से बाहर निकाल दिया गया था.
एक रैली ने बदल दी थी चुनाव की हवा...
मारवाड़ के कद्दावर नेता जसवंत सिंह जसोल 9 बार सांसद रह चुके हैं. 1989 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को जोधपुर में अशोक गहलोत के सामने कोई विकल्प नहीं मिल रहा था. गहलोत दो बार चुनाव जीत चुके थे. ऐसे में इस बार पार्टी ने संस्थापक सदस्य जसवंत सिंह जसोल को गहलोत के सामने जोधपुर से मैदान में उतारा. जिसके बाद जसोल और गहलोत के बीच चुनाव प्रचार का भी कड़ा मुकाबला हुआ.
प्रचार के अंतिम दिन जोधपुर शहर में पूर्व महाराज गज सिंह उम्मेद भवन से निकले और जसोल के लिए प्रचार किया और रोड शो निकाला. पूर्व महाराजा के रोड शो ने गहलोत की जीती हुई बाजी को पलट दिया और जसवंत 66 हजार वोटो से यह चुनाव जीत गए. जोधपुर को एक बार ही जसोल का प्रतिनिधित्व मिला. हालांकि, जसवंत सिंह खुद नौ बार सांसद रहे. उनकी एक खूबी थी कि जहां भी जाते वे वहां चुनाव जीत जाते थे. बाडमेर-जैसलमेर के अलावा वे चित्तौड़गढ़ से भी चुने गए. अंतिम चुनाव उन्होंने दार्जलिंग से जीता था.
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मारवाड़ी में भाषण देते थे जसोल...
जसवंत सिंह जसोल अपने क्षेत्र में पूरी मारवाड़ी में ही भाषण देते थे. उनकी बात को सुनने के लिए लोग इंतजार करते थे. जोधपुर में अंतिम बार उन्होंने गांधी मैदान में लाल कृष्ण आडवानी के साथ एक सभा को संबोधित किया था. जिसमें उन्होंने ठेठ मारवाड़ी अंदाज में कांग्रेस पर हमले किए थे. वे अटल बिहारी वाजपेयी की तरह धीरे-धीरे समय लेकर बोलते थे. मारवाड़ी में इस तरह का उनका भाषण बहुत लोकप्रिय होता था.