जोधपुर. नागौर की पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा की ओर से अपने चाचा भानु प्रकाश, पूर्व पर्यटन मंत्री उषा पूनिया और उनकी पुत्रियों सहित 13 लोगों के खिलाफ दर्ज करवाए गए मामले में नया मोड़ आया है. पूर्व सांसद भानु प्रकाश मिर्धा, विजय पूनिया और मनीष मिर्धा ने बुधवार को मीडिया के सामने अपना पक्ष रखा.
पूर्व सांसद भानु प्रकाश मिर्धा ने कहा कि मुझे इस घटनाक्रम से बहुत ठेस लगी है. जब बंटवारा हुआ था तो मेरे स्वर्गीय भाई राम प्रकाश मिर्धा ने सहमति दी थी. जो दस्तावेज रजिस्टर्ड हुए थे उनमें कोई करेक्शन नहीं हुआ, लेकिन आज न जाने किस मकसद को लेकर यह एफआईआर दर्ज की गई है. मैं इस बारे में समझ नहीं पा रहा हूं. मनीष मिर्धा ने कहा कि 33 साल बाद पुराने बंटवारे को लेकर जिस तरीके से मामला दर्ज किया गया है यह राजनीति से प्रेरित भी हो सकता है.
मनीष ने दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि सांसद का चुनाव का नामांकन भरते समय ज्योति मिर्धा ने अपनी समस्त संपत्तियों का ब्योरा दिया था. जिसमें जोधपुर की संपत्तियों का ब्यौरा था, लेकिन जिस खसरा नंबर को लेकर एफआईआर दर्ज कराई गई है उसका उल्लेख नदारद था. जो यह बताता है कि 33 साल बाद इस प्रकरण में जानबूझकर गलत आरोप लगाए जा रहे है.
मनीष मिश्रा ने कहा कि एफआईआर में यह कहा गया है कि यह जमीन हमारी है जबकि 33 साल पहले स्वर्गीय राम प्रकाश मिर्धा की सहमति से जमीन का बेचान हुआ था. जो राशि 48 हजार प्राप्त हुई तो उसे दोनों भाइयों में बांटी गई थी. तब से लेकर अब तक किसी ने इस बेचानामें पर आपत्ति नहीं दर्ज करवाई.
पूर्व पर्यटन मंत्री उषा पूनिया के पति विजय पूनिया ने कहा कि जेडीए ने हमे पट्टे जारी किए थे इसके लिए बाकायदा पूरी कार्रवाई की गई थी. अखबारों में भी इसका प्रकाशन हुआ था. इसके बाद ही कुल 12 लोगों को उस जमीन पर काटी गई कॉलोनी के पट्टे जारी किए गए थे. खुद ज्योति मिर्धा और उनकी बहन की ओर से भी बंटवारे के दौरान कोर्ट में यह लिखित बयान दिया गया कि जो जमीन पूर्व में बेची जा चुकी है वह बंटवारे में शामिल नहीं.
गौरतलब है कि नागौर की पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा ने हाल ही में न्यायालय के मार्फत 5 अगस्त को चौपासनी हाउसिंग बोर्ड थाने में पूर्व सांसद भानु प्रकाश मिर्धा और पूर्व पर्यटन मंत्री उषा पूनिया सहित 13 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई. जिसमें यह आरोप लगाया कि कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर फर्जी तरीके से यह जमीन सोसाइटी को बेची गई.
सोसायटी की ओर से वकील राजकुमार पारीक भी मीडिया के सामने आए और कहा कि पूरी खरीद-फरोख्त सरकारी नियमानुसार और दस्तावेजों के आधार पर की गई थी. जिसमें 33 साल तक किसी ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई. जब भूमि का रूपांतर हुआ तो इसकी सूचना सार्वजनिक की गई थी. तब किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं करवाई थी.