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जैन समाज के संतों को चातुर्मास के लिए भेजे जाते थे खास निमंत्रण पत्र...प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में आज भी हैं संरक्षित

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Published : Jul 21, 2022, 7:24 PM IST

Updated : Jul 21, 2022, 7:40 PM IST

इन दिनों जैन धर्म का चातुर्मास चल रहा है. जैन संत अलग-अलग शहरों में जाकर चार महीने तक रुककर साधना करते हैं. इन संतों को निमंत्रण देने का तरीका भी सैंकड़ों साल पहले कुछ अलग ही था. तब उनके पास संबंधित शहर या नगर के संबंध में निमंत्रण पत्र कपड़े पर जाता था. इसमें उस नगर से संबंधित बातों का भी वर्णन होता था. ऐसे ही 5 निमंत्रण पत्र जोधपुर के प्राच्य विद्या संस्थान (Jodhpur prachya Vidya Pratishthan) में सहेजकर रखे गए हैं.

5 ancient invitation letters to Jain saints
जैन संतों को भेजे गए पुराने निमंत्रण पत्र

जोधपुर. इन दिनों जैन धर्म का चातुर्मास चल रहा है. इस दौरान जैन धर्म के बड़े-बड़े संत अलग अलग शहरों व कस्बों में चार माह तक रुककर साधना करते हैं. इसके लिए जैन धर्म के अनुयायी संतों से जाकर उनके नगर में आकर चार्तुमास करने के लिए निवेदन करते हैं. यह परंपरा बहुत पुरानी है. आज के भौतिक युग में हर शहर की जानकारी पलक झपकते ही मिल जाती है. लेकिन सैकड़ों साल पहले यह व्यवस्था कुछ अलग ही होती थी. उस समय जैन धर्म के अनुयायी बाकायदा अपने नगर का वर्णन एक निमंत्रण पत्र में करते थे, यह निमंत्रण कपड़े पर बनाया जाता था.

निमंत्रण पत्र में रहता था पूरा वर्णनः निमंत्रण पत्र कई फीट लंबा होता था. जिसमें नगर की व्यवस्था, स्थापत्य, रहन सहन सहित सभी जानकारियां चित्रों के माध्यम से उकेरी जाती थी. जोधपुर के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान (Jodhpur prachya Vidya Pratishthan) में ऐसे कई निमंत्रण पत्र सहेजकर रखा गया है. इन्हें खरडा भी कहते हैं. 18 वीं शताब्दी में जैन संतों को भेजे गए संस्कृत, प्राकृत व लोकभाषाओं में तैयार इन निमंत्रणों पत्रों में तत्कालीन समाज, संस्कृति और नगरीय वैभव का भी वर्णन मिलता है.

जैन संतों को भेजे गए पुराने निमंत्रण पत्र

पढ़ें. विरासत से विकास की ओर बढ़ते कदमों के बीच जयपुर की पुरानी जल संवर्धन नीति छूटी पीछे...नतीजा पानी का संकट

साथ ही रंगीन चित्रों के माध्यम से तत्कालीन धर्मस्थलों, सामाजिक परिवेश, जीवन पद्धति व वाणिज्यिक गतिविधियों को भी बखूबी उकेरा जाता था. जिसे देख संत उस नगर की स्थिति का आंकलन कर अपने प्रवेश की अनुमति देते थे.

5 निमंत्रण पत्र किए गए संरक्षितः प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के वरिष्ठ शोध अधिकारी कमल किशोर सांखला बताते हैं कि हमारे यहां रखे गए 5 निमंत्रण पत्र संरक्षित किए गए हैं. उदयपुर नगर का पत्र सबसे लंबा है, जिसकी लंबाई 8 मीटर से अधिक है. जबकि चौड़ाई तीस सेंटीमीटर है. इन ग्रंथों को हम विशेष तकनीक से सुरक्षित रखते हैं. जिससे कि इनका नुकसान नहीं हो. यह निमंत्रण 18वीं शताब्दी के हैं. निमंत्रण पत्र में भगवान महावीर की माता त्रिशला के चौहद स्वपन का विवरण है.

जोधपुर के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान राजस्थान में अपने आप में अलग तरह का संस्थान है. भारत सरकार का सांस्कृति मंत्रालय इसका मुख्य सहयोगकर्ता है. यहां एक लाख से अधिक ग्रंथ एवं पत्र सुरक्षित रखे गए हैं. देश के अलावा विदेश से भी शोद्यार्थी यहां शोध के लिए आते हैं. लेकिन कोरोना के बाद से इसमें कमी आई है.

जोधपुर. इन दिनों जैन धर्म का चातुर्मास चल रहा है. इस दौरान जैन धर्म के बड़े-बड़े संत अलग अलग शहरों व कस्बों में चार माह तक रुककर साधना करते हैं. इसके लिए जैन धर्म के अनुयायी संतों से जाकर उनके नगर में आकर चार्तुमास करने के लिए निवेदन करते हैं. यह परंपरा बहुत पुरानी है. आज के भौतिक युग में हर शहर की जानकारी पलक झपकते ही मिल जाती है. लेकिन सैकड़ों साल पहले यह व्यवस्था कुछ अलग ही होती थी. उस समय जैन धर्म के अनुयायी बाकायदा अपने नगर का वर्णन एक निमंत्रण पत्र में करते थे, यह निमंत्रण कपड़े पर बनाया जाता था.

निमंत्रण पत्र में रहता था पूरा वर्णनः निमंत्रण पत्र कई फीट लंबा होता था. जिसमें नगर की व्यवस्था, स्थापत्य, रहन सहन सहित सभी जानकारियां चित्रों के माध्यम से उकेरी जाती थी. जोधपुर के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान (Jodhpur prachya Vidya Pratishthan) में ऐसे कई निमंत्रण पत्र सहेजकर रखा गया है. इन्हें खरडा भी कहते हैं. 18 वीं शताब्दी में जैन संतों को भेजे गए संस्कृत, प्राकृत व लोकभाषाओं में तैयार इन निमंत्रणों पत्रों में तत्कालीन समाज, संस्कृति और नगरीय वैभव का भी वर्णन मिलता है.

जैन संतों को भेजे गए पुराने निमंत्रण पत्र

पढ़ें. विरासत से विकास की ओर बढ़ते कदमों के बीच जयपुर की पुरानी जल संवर्धन नीति छूटी पीछे...नतीजा पानी का संकट

साथ ही रंगीन चित्रों के माध्यम से तत्कालीन धर्मस्थलों, सामाजिक परिवेश, जीवन पद्धति व वाणिज्यिक गतिविधियों को भी बखूबी उकेरा जाता था. जिसे देख संत उस नगर की स्थिति का आंकलन कर अपने प्रवेश की अनुमति देते थे.

5 निमंत्रण पत्र किए गए संरक्षितः प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के वरिष्ठ शोध अधिकारी कमल किशोर सांखला बताते हैं कि हमारे यहां रखे गए 5 निमंत्रण पत्र संरक्षित किए गए हैं. उदयपुर नगर का पत्र सबसे लंबा है, जिसकी लंबाई 8 मीटर से अधिक है. जबकि चौड़ाई तीस सेंटीमीटर है. इन ग्रंथों को हम विशेष तकनीक से सुरक्षित रखते हैं. जिससे कि इनका नुकसान नहीं हो. यह निमंत्रण 18वीं शताब्दी के हैं. निमंत्रण पत्र में भगवान महावीर की माता त्रिशला के चौहद स्वपन का विवरण है.

जोधपुर के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान राजस्थान में अपने आप में अलग तरह का संस्थान है. भारत सरकार का सांस्कृति मंत्रालय इसका मुख्य सहयोगकर्ता है. यहां एक लाख से अधिक ग्रंथ एवं पत्र सुरक्षित रखे गए हैं. देश के अलावा विदेश से भी शोद्यार्थी यहां शोध के लिए आते हैं. लेकिन कोरोना के बाद से इसमें कमी आई है.

Last Updated : Jul 21, 2022, 7:40 PM IST
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