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20 साल कारगिल: पत्नी के हाथों से मेंहदी का रंग फीका भी नहीं हुआ था जब भंवरसिंह शहीद हो गए...और अब...

शादी के 15 दिन बाद ही भंवर सिंह कारगिल युद्ध में मोर्चा संभालन के लिए घर से निकल पड़े थे. वीरांगना इंद्रकंवर के हाथों की मेंहदी अभी ही थी सुर्ख जब तिरंगे में लिपटा पति का शव आंखों के सामने था.

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Published : Jul 24, 2019, 7:41 PM IST

20 साल कारगिल: शादी को एक महीना हुआ था जब भंवरसिंह शहीद हुए...बदहाली में जी रही है विरांगना

जोधपुर. जिले के बालेसर क्षेत्र में यहां गाल की ढाणी में जन्मे भंवर सिंह इंदा 1997 में भारतीय सेना में भर्ती हुए उन्हें 27 राजपूत रेजिमेंट में नियुक्ति मिली थी. 1999 में कारगिल युद्ध से पहले मार्च माह में वह अपनी शादी के लिए छुट्टी लेकर आए थे. 4 मार्च को उनकी शादी हुई एक माह बाद ही युद्ध से हालात हुए तो छुट्टी निरस्त हो गई और उन्हें सेना ने बुला लिया. 28 जून 1999 को भंवर सिंह इंदा दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. पत्नी इंद्रकंवर और भंवर सिंह की शादी को सिर्फ एक महीना हुआ था.

20 साल कारगिल: शादी को एक महीना हुआ था जब भंवरसिंह शहीद हुए...बदहाली में जी रही है विरांगना

सरकारी घोषणा के बाद भी नहीं मिला पेट्रोलपंप:
इंद्रकंवर 20 साल से शहीद की बेवा का जीवन जी रही हैं. सरकार ने उस समय घोषणा की थी कि पेट्रोलपंप मिलेगा इसके लिए आवेदन भी किया गया लेकिन पेट्रोलियम कंपनी ने इंद्रकंवर के अनपढ़ होने से आवेदन ही निरस्त कर दिया जिसके चलते इस परिवार का जीवन स्तर नहीं बदल सका.

सहायता के नाम पर मिली है 22 बीघा जमीन:

शहीद के भाई कर्णसिंह ने बताते है कि सरकारी सहायता के नाम पर मात्र उनको बीकानेर के भुरासर में 22 बीघा जमीन मिली है बाकी किसी प्रकार की कोई सुविधा नही मिली है. शहीद के घर पर कृषि कनेक्शन की फाईल लगाये हुऐ तीन माह हो गये अभी तक कनेक्शन नही हो पाया है.

वीरांगना इंद्रकंवर के घर नहीं है विद्युत कनेक्शन:
वीरांगना इंद्रकंवर जहां रहती हैं, वहां विद्युत कनेक्शन नहीं है. शहीद स्मारक के लिए भी खूब भागदौड़ की लेकिन कुछ नहीं हुआ. थक हारकर शहीद के परिजनों ने ही घर के पास निजी खर्चे से स्मारक बनवाया. शहीद के घर तक जाने के लिए वर्षों पूर्व ग्रेवल सडक़ बनी थी, जो अब क्षतिग्रस्त है. पेयजल के लिए एक हैंडपंप लगाया गया था जो अब खराब है.

जोधपुर. जिले के बालेसर क्षेत्र में यहां गाल की ढाणी में जन्मे भंवर सिंह इंदा 1997 में भारतीय सेना में भर्ती हुए उन्हें 27 राजपूत रेजिमेंट में नियुक्ति मिली थी. 1999 में कारगिल युद्ध से पहले मार्च माह में वह अपनी शादी के लिए छुट्टी लेकर आए थे. 4 मार्च को उनकी शादी हुई एक माह बाद ही युद्ध से हालात हुए तो छुट्टी निरस्त हो गई और उन्हें सेना ने बुला लिया. 28 जून 1999 को भंवर सिंह इंदा दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. पत्नी इंद्रकंवर और भंवर सिंह की शादी को सिर्फ एक महीना हुआ था.

20 साल कारगिल: शादी को एक महीना हुआ था जब भंवरसिंह शहीद हुए...बदहाली में जी रही है विरांगना

सरकारी घोषणा के बाद भी नहीं मिला पेट्रोलपंप:
इंद्रकंवर 20 साल से शहीद की बेवा का जीवन जी रही हैं. सरकार ने उस समय घोषणा की थी कि पेट्रोलपंप मिलेगा इसके लिए आवेदन भी किया गया लेकिन पेट्रोलियम कंपनी ने इंद्रकंवर के अनपढ़ होने से आवेदन ही निरस्त कर दिया जिसके चलते इस परिवार का जीवन स्तर नहीं बदल सका.

सहायता के नाम पर मिली है 22 बीघा जमीन:

शहीद के भाई कर्णसिंह ने बताते है कि सरकारी सहायता के नाम पर मात्र उनको बीकानेर के भुरासर में 22 बीघा जमीन मिली है बाकी किसी प्रकार की कोई सुविधा नही मिली है. शहीद के घर पर कृषि कनेक्शन की फाईल लगाये हुऐ तीन माह हो गये अभी तक कनेक्शन नही हो पाया है.

वीरांगना इंद्रकंवर के घर नहीं है विद्युत कनेक्शन:
वीरांगना इंद्रकंवर जहां रहती हैं, वहां विद्युत कनेक्शन नहीं है. शहीद स्मारक के लिए भी खूब भागदौड़ की लेकिन कुछ नहीं हुआ. थक हारकर शहीद के परिजनों ने ही घर के पास निजी खर्चे से स्मारक बनवाया. शहीद के घर तक जाने के लिए वर्षों पूर्व ग्रेवल सडक़ बनी थी, जो अब क्षतिग्रस्त है. पेयजल के लिए एक हैंडपंप लगाया गया था जो अब खराब है.

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जोधपुर जिले के कारगिल युद्ध के सबसे पहले शहीद हुए भंवरसिंह के परिवार की दास्तां


जोधपुर। कारगिल युद्ध को बीस साल हो गए, देश में जगह—जगह सेना विजय दिवस इसलिए मना रही है कि युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के प्रति सम्मान बढे और लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो। लेकिन दूसरी और कारगिल के युद्ध में देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले कई शहीदों के परिवारों की दशा दो दशक बाद भी सरकारी व्यवस्था के चलते जस की तस बनी हुई है। ऐसा ही एक शहीद परिवार है जोधपुर जिले के बालेसर क्षेत्र में। यहां गाल की ढाणी में जन्मे भंवरसिंह इंदा 1997 में भारतीय सेना में भर्ती हुए उन्हें 27 राजपूत रेजिमेंट में नियुक्ति मिली थी। 1999 में कारगिल युद्ध से पहले मार्च माह में वह अपनी शादी के लिए छुट्टी लेकर आए थे। 4 मार्च को उनकी शादी हुई एक माह बाद ही युद्ध से हालात हुए तो छुट्टी निरस्त हो गई और उन्हें सेना ने बुला लिया। 28 जून 1999 को भंवरसिंह इंदा दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। उनकी पत्नी इंद्रकंवर का अपने पति के साथ सिर्फ एक माह का ही रहा था। आज वो बीस साल से शहीद की बेवा का जीवन जी रही है। सरकार ने उस समय घोषणा की थी कि पेट्रोलपंप मिलेगा इसके लिए आवेदन भी किया गया लेकिन पेट्रोलियम कंपनी ने इंद्रकंवर के अनपढ होने से आवेदन ही निरस्त कर दिया जिसके चलते इस परिवार का जीवन स्तर नहीं बदल सका। शहीद के भाई कर्णसिंह ने बताया सरकारी सहायता के नाम पर मात्र उनको बीकानेर के भुरासर में एक मुरबा (जमीन) मिला है। बाकी किसी प्रकार की कोई सुविधा नही मिली हैँ। शहीद के घर पर कृषि कनेक्शन की फाईल लगाये हुऐ तीन माह हो गये अभी तक कनेक्शन नही हो पाया हैँ। विरांगना इंद्रकंवर के घर पर बिजली का कनेक्शन नहीं है। स्मारक भी सरकारी खर्चे से नहीं बना। 2018 में पंचायत के नवसृजित गांव का नाम शहीद भंवरसिंह नगर रखा गया।

बाईट : कर्णसिंह शहीद भंवरसिंह इंदा, भाई


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