जयपुर. राजधानी में तीन दिन चली भारतीय युवा संसद का शनिवार को समापन हुआ. इस यूथ पार्लियामेंट में देश के 22 राज्यों के युवा छात्र और शोधार्थी शामिल हुए. यहां समापन सत्र में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने लोकतंत्र में युवाओं की भूमिका पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किए. साथ ही युवाओं के सवालों का भी जवाब देते हुए कहा कि राजनीति से घृणा करने के (Youth Parliament in Jaipur) बजाए प्यार करें. इसे प्रोफेशन के तौर पर स्वीकार करें. संविधान की तरह इस व्यवस्था को अंगीकार करें.
भारत का लोकतंत्र ही विश्व में देश की सबसे बड़ी ताकत है. ये कहना है बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का. यूथ पार्लियामेंट में देश के विभिन्न राज्यों से जुटे युवाओं को संबोधित करते हुए पूनिया ने कहा कि दुनिया के दूसरे देशों में कहीं अध्यक्षीय प्रणाली है, कहीं निर्वाचन प्रणाली है. विचारों के नाते कहीं पूंजीवाद है, कहीं साम्यवाद है, कहीं समाजवाद है. पूरी दुनिया में लोकतंत्र की मिश्रित सी व्यवस्था है. भारत का लोकतंत्र भी कोई नया नहीं. जब यहां संविधान बना तो दूसरे देशों से कई बातों को शामिल किया गया. यहां लोकतंत्र की परंपरा पुराने गणतंत्र, पुरानी व्यवस्था से निकली है. जब बड़ और पीपल के पेड़ के नीचे 5 लोग फैसला करते थे. जहां वही सरकार थे, वही अदालत, वही विधायिका और कार्यपालिका थे.
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लोकतंत्र से किए फैसले : पूनिया ने कहा कि ऐसा नहीं है कि इस देश में कभी लोकतंत्र पर (Poonia urges not to hate politics) प्रहार नहीं हुआ. ये देश आपातकाल का भी साक्षी है. संविधान के अनुच्छेद 356 का सैकड़ों बार दुरुपयोग हुआ. इस लोकतंत्र को तोड़ने की कोशिश हुई. बावजूद इसके भारत का लोकतंत्र बचा रहा. जिस देश को लोग कहते थे कि गरीबों का देश और पिछड़े और अशिक्षितों का देश है. बावजूद इसके जब-जब अवसर आया तब भारत की अनपढ़, गरीब, कुपोषित जनता ने अपने जनादेश से सरकारी बदली. साथ ही लोकतंत्र में उन्होंने अपने मतदान से फैसले लिए.
पुनिया ने कहा कि लोकतंत्र की अक्षुणता को बनाए रखने के लिए युवाओं का योगदान जरूरी (Poonia in Last day of Youth Parliament) है. क्योंकि इन्हीं युवाओं को ये लोकतंत्र विरासत में मिला है. हालांकि युवाओं में देश के लोकतंत्र, राजनीति और राजनीतिक व्यवस्था को लेकर कई प्रश्न जरूर होंगे. लेकिन इस लोकतंत्र और राजनीति में संभावनाएं भी बहुत हैं.
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अगर ऐसा नहीं होता तो एक उत्कृष्ट संविधान में भी इतने संशोधन क्यों होते. उन्होंने कहा कि लोग संविधान में अधिकारों की तो बात करते हैं, लेकिन क्या कोई कर्तव्यों की बात करता है? जरूरी है कि राजनीति लोक नीति से जुड़े और लोक नीति से जनभागीदारी बढ़े. इस दौरान उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम से लेकर अटल बिहारी वाजपेई तक को याद किया और उनके काम करने के तरीके से प्रभावित होने की बात कही.
आखिर में उन्होंने समाज नीति को राजनीति से ऊपर बताते हुए चाणक्य की कही बात दोहराई. उन्होंने कहा कि यदि अच्छे लोग शासन में नहीं होंगे तो बुरे लोग आप पर शासन करेंगे. इसलिए इस राजनीति से घृणा की बजाए प्यार करें. इसे प्रोफेशन के तौर पर स्वीकार करें. संविधान की तरह इस व्यवस्था को अंगीकार करें.