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आज मां दुर्गा के पंचम स्वरूप स्कंदमाता की करें आराधना, जानें महत्व! - मां दुर्गा के पंचम स्वरूप स्कंदमाता की आराधना

शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगी. कहा जाता है कि सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी की पूजा से तेज और क्रांति की प्राप्ति होती है. . मां की कृपा से बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है.

Mother Scandamata worship on Navratri in Jaipur, मां दुर्गा के पंचम स्वरूप स्कंदमाता की आराधना
मां दुर्गा के पंचम स्वरूप स्कंदमाता की आराधना
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Published : Apr 17, 2021, 8:03 AM IST

जयपुर. शारदीय नवरात्र के आज पांचवा दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगी. मां दुर्गा के पंचम स्वरूप को स्कंदमाता के रूप में पूजते है और इन्हें पहली प्रसूता भी कहा जाता है. इस लिए इनको इनके पुत्र के नाम से भी पुकारा जाता है. कहा जाता है कि सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी की पूजा से तेज और क्रांति की प्राप्ति होती है.

ज्योतिषाचार्य पंडित विशाल सेवग के अनुसार, स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त दिन का दूसरा पहर रहेगा. स्कंदमाता की पूजा चंपा के फूलों से करनी चाहिए. इन्हें मूंग से बने मिष्ठान का भोग लगाएं. श्रृंगार में इन्हें हरे रंग की चूड़ियां चढ़ानी चाहिए. स्कंदमाता को केले का भोग अति प्रिय है. इसके साथ इन्हें केसर डालकर खीर का प्रसाद चढ़ाना चाहिए. इनकी उपासना से मंदबुद्धि व्यक्ति को बुद्धि व चेतना प्राप्त होती हैं. इनकी कृपा से रोगियों को रोगों से मुक्ति मिलती हैं और समस्त व्याधियों का अंत होता है.

पढ़ें- राजस्थान उपचुनाव 2021: तीनों विधानसभा सीटों के लिए मतदान कल, 7 लाख से ज्यादा मतदाता कर सकेंगे मतदान

शेर पर सवार माता स्कंदमाता के चार भुजाएं है. ये दाई तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद मे पकड़े हुए नजर आती है. वही नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प धारण किए हुए आशीर्वाद दे रही है. ऐसे में माँ का ऐसा स्वरूप भक्तों के लिए कल्याणकारी है. देवी स्कंदमाता की साधना उन लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ है जिनकी आजीविका का संबंध मैनेजमेंट, बैंकिंग, वाणिज्य और व्यापार से हैं. मां की कृपा से बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है.

जयपुर. शारदीय नवरात्र के आज पांचवा दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगी. मां दुर्गा के पंचम स्वरूप को स्कंदमाता के रूप में पूजते है और इन्हें पहली प्रसूता भी कहा जाता है. इस लिए इनको इनके पुत्र के नाम से भी पुकारा जाता है. कहा जाता है कि सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी की पूजा से तेज और क्रांति की प्राप्ति होती है.

ज्योतिषाचार्य पंडित विशाल सेवग के अनुसार, स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त दिन का दूसरा पहर रहेगा. स्कंदमाता की पूजा चंपा के फूलों से करनी चाहिए. इन्हें मूंग से बने मिष्ठान का भोग लगाएं. श्रृंगार में इन्हें हरे रंग की चूड़ियां चढ़ानी चाहिए. स्कंदमाता को केले का भोग अति प्रिय है. इसके साथ इन्हें केसर डालकर खीर का प्रसाद चढ़ाना चाहिए. इनकी उपासना से मंदबुद्धि व्यक्ति को बुद्धि व चेतना प्राप्त होती हैं. इनकी कृपा से रोगियों को रोगों से मुक्ति मिलती हैं और समस्त व्याधियों का अंत होता है.

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शेर पर सवार माता स्कंदमाता के चार भुजाएं है. ये दाई तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद मे पकड़े हुए नजर आती है. वही नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प धारण किए हुए आशीर्वाद दे रही है. ऐसे में माँ का ऐसा स्वरूप भक्तों के लिए कल्याणकारी है. देवी स्कंदमाता की साधना उन लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ है जिनकी आजीविका का संबंध मैनेजमेंट, बैंकिंग, वाणिज्य और व्यापार से हैं. मां की कृपा से बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है.

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