जयपुर. 22 मार्च को हर बरस दुनियाभर में विश्व जल दिवस (World Water Day 2022 Special) मनाया जाता है. इस दिन का मकसद है जल बचाने का संदेश देना और पानी को व्यर्थ बहाने से रोकना. इस मुहिम के लिए दुनिया भर में जागरूकता के कार्यक्रम होते हैं. सरकारी और सामाजिक संगठन अलग-अलग आयोजनों के जरिए यह अलख जगाने की कोशिश करते हैं कि जल है तो कल है.
इस विश्व जल दिवस के मौके पर ईटीवी भारत जयपुर के सबसे पुराने रामगढ़ बांध की बदहाली की दास्तान आपको सुना रहा है. जो बांध कभी पूरे जयपुर के लिए पेयजल का स्त्रोत था, आज दुर्दशा पर आंसू बहाने लायक पानी भी इसके आंचल में नहीं बचा. इसी दौर में रामगढ़ बांध को जयपुर की लाइफ लाइन का दर्जा दिया गया था. जयपुर महाराजा ने सवा सौ साल पहले इसका निर्माण यहां की जनता के लिए पेयजल उपलब्ध करवाने के मकसद से किया था.
जानकार बताते हैं कि बाणगंगा, ताला, माधेवनी और रोड़ा जैसी नदियों से आने वाला पानी इस बांध तक पहुंचता था. अब जब इन नदियों का अस्तित्व खत्म (Condition of Jaipur Oldest Ramgarh Dam) होने की कगार पर आ चुका है और इनका पैंदा रिक्त हो चुका है, तो फिर बांध भी सूखने लगा है. हालांकि, साल 2019 में आई बरसात में एक उम्मीद जागी थी कि बांध में पानी ताला नदी के जरिए पहुंच सकता है, लेकिन साल 2020-21 में यह उम्मीद फिर से गौण हो गई.
ये रहा है बांध का इतिहास : जयपुर के महाराजा माधोसिंह द्धितीय ने 1897 में रामगढ बांध का निर्माण शुरू करवाया था, जो 1903 में बनकर तैयार हुआ. मतलब यह है कि करीब 118 साल के इतिहास में से आठ दशक से भी ज्यादा वक्त तक बांध चारदीवारी की प्यास बुझाने का जरिया रहा है.
इस बांध से जयपुर को पानी की सप्लाई 1931 में शुरू हुई. देखते ही देखते पर्यटन स्थल बन गया, जिसके बाद 1982 में एशियाई खेलों में नौकायन प्रतियोगिता इस बांध में हुई थी. 1931 से 2010 तक रामगढ़ बांध से पानी सप्लाई थी, फिर बाण गंगा, रोड़ा नदी सहित अन्य नदियों व नहरों में अतिक्रमण व एनीकट बनते गए बांध सूखता गया. इससे सैकड़ों गांवों में पेयजल संकट खड़ा हो गया.
1903 में निर्माण के बाद में पहली बार रामगढ़ बांध 21 साल बाद ओवरफ्लो हुआ था. 10 सितंबर 1924 में रामगढ बांध में पानी से लबालब हुआ. उस वक्त 66 फीट गहरा रामगढ़ बांध पानी से पूरा भर चुका था. दूसरी बार रामगढ़ बांध को पूरा भरने में 54 साल लगे. 30 जुलाई 1977 को फिर से रामगढ बांध पर ओवरफ्लो हुआ. अगले साल फिर इतनी बरसात हुई कि रामगढ़ बांध के गेट खोलने पड़े. साल 1981 में आई बाढ़ के बाद आखिरी बार रामगढ़ बांध में पूरा पानी भरा था. तब भी सरकार ने रामगढ़ बांध के दरवाने खोलने के आदेश दिए थे.
जलदाय विभाग भी बेबस : जलदाय विभाग रामगढ़ बांध को बीसलपुर के पानी से भरने की संभावना तलाश रहा था. बीसलपुर बांध 4 साल में एक बार ओवरफ्लो होता है और पानी चंबल में बह जाता है. ऐसे में इस पानी को रामगढ़ बांध में पहुंचाने के लिए बंध गेट पंप हाउस को इंटरकनेक्ट किए जाने की योजना थी. इनमें से 25 किलोमीटर तक रिवर्स पानी लाने की कोशिश का भी प्लान तैयार किया गया था. वक्त के साथ जलदाय विभाग की यह योजना कागजों में दबकर रह गई है. लिहाजा, बांध का क्षेत्र सूखता जा रहा है और लगातार अतिक्रमण की भेंट चढ़ने लगा है.
अतिक्रमण ने घोंट दिया बांध का गला : राजस्थान उच्च न्यायालय ने 2011 में पहली बार स्वयं संज्ञान लेकर रामगढ़ बांध को सूखने का कारण जानना चाहा, जिसके बाद बांध के 700 वर्ग किलोमीटर पहाड़ी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण की बात सामने आई. बांध के क्षेत्र में 405 एनीकट और 800 अवैध निर्माण थे. इन निर्माण में फॉर्म हाउस से लेकर शिक्षण संस्थानों के जरिए बांध का वजूद खत्म करते हुए दिखाई दिए.
इन अवैध निर्माण और अतिक्रमण की वजह से रामगढ़ बांध में बने एनिकट, नालों और छोटी नदियों में भी पानी नहीं पहुंच सका. अतिक्रमण के कारण (Encroachment in Ramgarh Dam) रामगढ़ बांध में पानी आने के रास्ते खत्म होते चले गए. बाणगंगा और इसकी सहायक नदियों पर अतिक्रमण बढ़ने के बाद तो रामगढ़ बांध को एक बूंद भी पानी नसीब नहीं हो पाया. अब तो हालात ये हो चले हैं कि रामगढ़ बांध में अवैध खेती तक होने लगी है.
हाईकोर्ट भी रामगढ़ की दुर्दशा से आहत होकर स्वंय प्रसंज्ञान लेकर जवाब (Ramgarh Dam Jaipur Lifeline) तलाशता रहा, लेकिन इसके बावजूद भी आज तक इन अवैध निर्माण में से कई कार्रवाई से कोसों दूर है. आकंड़ें बताते हैं कि 1 हजार से ज्यादा अवैध निर्माण रामगढ़ बांध को और बेबस बना रहे हैं.
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रामगढ़ बांध था जीवों का आधार : रामगढ़ बांध जयपुर को लोगों के लिए ना सिर्फ पेयजल का स्रोत था, बल्कि जंगली जीव जंतुओं के लिए आशियाना भी था. बांध के आसपास के इलाके में घने पेड़ और वृक्षों की छत्रछाया में कई प्रजातियों के पक्षियों का घरौंदा था, तो बघेरा समेत कई जंगली जीव भी इसके आहतें में अपना आशियाना बना कर रहते थे.
बांध के क्षेत्र में मगरमच्छ, घड़ियाल और विभिन्न प्रकार की प्रजातियों की मछलियां रहती थीं, तो रूस और साइबेरिया से आने वाले प्रवासी पक्षी भी सर्दियों में इसी बात के आंचल में खुद को महफूज मानते थे. वक्त के साथ बांध जब सूख गया, तो आसपास के जंगल का नामोनिशान भी सिमटने लग गया. बाद के नजदीक आ वन्य जीव अभ्यारण आप सिर्फ यहां लगे बोर्ड पर ही नजर आता है.