जयपुर. क्षय रोग से जुड़े एक्सपर्ट्स की मानें तो राजस्थान में ट्यूबरक्लोसिस बीमारी के शिकार मरीज लगभग 7% है (Tuberculosis patients in Rajasthan), तो देश में इस बीमारी का शिकार मरीजों की तादाद 26 फ़ीसदी तक हो सकती है. खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में इस बीमारी के शिकार मरीजों की संख्या बढ़ी तादाद पर देखने को मिल रही है, फेफड़े के कैंसर और टीबी के लक्षणों में काफी समानता होती है. जिसके कारण फेफड़े के कैंसर के अधिकांश रोगी लंबे समय तक टीबी का उपचार लेते है. ऐसे में जब फेफड़े का कैंसर बढ़ जाता है, तब रोगी कैंसर विशेषज्ञ से परामर्श लेने पहुंचता है.
दोनों बीमारी के लक्षणों में समानता के कारण सही समय पर रोग की सही पहचान नहीं होने से रोगी को कैंसर मुक्त करना असंभव हो जाता है. भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ शशि कांत सैनी ने बताया कि खांसी, लम्बे समय तक बुखार, सांस का फूलना जैसे लक्षण टीबी और फेफडें के कैंसर दोनों ही बीमारियों में होते है, ऐसे में लंबे समय तक रोगी के सही रोग की पहचान नहीं हो पाती है. डॉ सैनी ने बताया कि फेफड़े के कैंसर और टीबी दोनों की बीमारी में धूम्रपान सामान्य कारण है.
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धूम्रपान के कारण बढ़ रही मृत्यु दर: विश्व भर में 80 लाख और देश भर में 13 लाख लोग तंबाकू की वजह से अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं. पुरूषों में कैंसर से होने वाली मौतों में फेफड़े का कैंसर पहली वजह है. फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण धूम्रपान है. प्रदेश में हर साल 77 हजार मौतें तंबाकू की वजह से हो रही है.
राज्य में बेहतर इलाज के प्रयास: राज्य क्षय रोग विभाग के मुताबिक वर्ष 2021 में प्रदेश भर में 1 लाख 50 हजार लोगों को नोटिफाई किया गया था. प्रदेश में 130 नाट मशीनें हैं. आने वाले वक़्त में हर ब्लॉक में ये मशीनें मिल सकेंगी. विभाग के मुताबिक निक्षय पोषण योजना के तहत टीबी संक्रमित मरीजों को हर महीने 500 रुपए की मदद दी जा रही है. सभी टीबी मरीजों को निक्षय पोषण योजना के तहत निर्धारित राशि का भुगतान उनके बैंक खाते में किया जाता है. टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत समाज मे टीबी रोग के प्रति फैली भ्रांतियों को दूर करने का काम होता है.
अभियान के दौरान लोगों के लिए समझाइश सत्र आयोजित होंगे, समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी और टीबी जागरूकता हेतु अन्य विभिन्न गतिविधियां जैसे ग्राम सभा, जन आरोग्य समिति बैठक, टीबी के रोगियों हेतु वैलनेस सत्र, पोस्टर प्रतियोगिता आदि गतिविधियां आयोजित की जाएगी. विश्व क्षय रोग दिवस के मौके पर 24 मार्च से 13 अप्रैल तक विभिन्न जनजागरूकता गतिविधियों के साथ ही टीबी की जांच, इलाज , कंसल्टेंसी समेत कई चिकित्सा इंतजाम होंगे.
समय पर बीमारी की पहचान जरूरी: लंग कैंसर की पहचान समय पर न होने की वजह से रोगी के ठीक होने की संभावना काफी कम हो जाती है. भारत जैसे विकासशील देश में इस रोग की देर से पहचान का मुख्य कारण आमजन में जागरूकता की कमी है. बीमारी के लक्षणों के बारे में सचेत रहें तो बीमारी की प्रांरभिक अवस्था में पहचान हो सकती है और सम्पूर्ण इलाज संभव हो सकता है.आज के समय में फेफड़े के कैंसर का भी पूर्ण उपचार संभव है. परंतु इसके लिए जागरूकता काफी जरूरी है.