जयपुर. हर साल अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस 3 मई को मनाया जाता है. साल 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग' ने मिलकर इसे मनाने का फैसला किया था. जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया. यूनेस्को द्वारा 1997 से हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर मिलेरमो कानो प्रेस फ्रीडम प्राइज भी दिया जाता है. यह पुरस्कार उस व्यक्ति अथवा संस्थान को दिया जाता है, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो.
गौरतलब है कि 1997 से अब तक भारत के किसी भी पत्रकार को यह पुरस्कार नहीं मिलने की एक बड़ी वजह कई विश्लेषक (Impact of Talk Journalism in India) पश्चिम और भारत में पत्रकारिता के मानदंडों में अंतर को बताते हैं. उनका दावा है कि भारतीय पत्रकारिता में हमेशा विचार हावी होता है, जबकि पश्चिम में तथ्यात्मकता पर जोर दिया जाता है. ईटीवी भारत ने इस खास मौके पर टॉक जर्नलिज्म के संस्थापक अविनाश कल्ला से विशेष बातचीत की और आज देश में मौजूदा पत्रकारिता की स्थिति और दुनिया के विभिन्न देशों के हालात से तुलनात्मक स्थितियों के बारे में जाना.
'Journalism under digital siege' इस बार की थीम : इस साल 3 मई यानी प्रेस स्वतंत्रता दिवस के लिए 'Journalism Under Digital Siege' थीम के रूप में रखा गया है. इस साल की थीम न सिर्फ उन तरीकों पर रोशनी डालती है, जो पत्रकारिता को खतरे में डालते हैं, बल्कि डिजिटल मीडिया पर जनता के भरोसे और इन सब के नतीजों पर भी प्रकाश डालती है. यह थीम निगरानी और डिजिटल रूप से मध्यस्थता वाले हमलों से पत्रकारों के सामने आने वाले जोखिमों पर केंद्रित है. जाहिर है कि हर साल एक थीम के साथ प्रेस फ्रीडम डे (World Press Freedom Day 2022) मनाया जाता है और इसके महत्व को दुनिया के सामने लाया जाता है. 1948 में, मानव अधिकारों की घोषणा के अनुच्छेद 19 में इस बात पर जोर दिया गया था कि सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, सभी को बिना किसी डर के अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है और सभी को प्रेस का उपयोग करके अपने विचार प्राप्त करने और प्रदान करने का अधिकार है.
अमेरिका और ब्रिटेन के उदाहरण से लेनी चाहिए सीख : टॉक जर्नलिज्म के संस्थापक अविनाश कल्ला ने बातचीत की शुरुआत में अरुण शौरी के एक कथन का जिक्र किया और बताया कि सवाल खड़े करने वाला मीडिया ही आज देश में सवालों से घिरा हुआ खड़ा दिख रहा है. उन्होंने पत्रकारिता के मौजूदा पैटर्न को लेकर बात की. उन्होंने कहा कि समाज से मीडिया को अलग नहीं देख सकते हैं, लिहाजा मीडिया भी समाज के नजरिये से देखे. उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन का उदाहरण दिया. उन्होंने व्हाइट हाउस डिनर के वाकये का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति के सामने उनकी आलोचना की भी बात की और कहा कि मौजूदा दौर में राज्य से लेकर केन्द्र तक यह संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि आगे की दौड़ में फिलहाल खबरों को पीछे छोड़ दिया गया है. उन्होंने कहा कि प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ मौजूदा डेमोक्रेसी के लिए ही खतरनाक बनता जा रहा है. उन्होंने कहा कि फिलहाल मीडिया के जरिये राष्ट्रभक्ति के सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं और आगे बढ़ने की दौड़ में संस्थान खबर को पीछे छोड़ रहे हैं.
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'रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स' के इंडेक्स में ये है भारत की रैंकिंग : इन दिनों देश में अक्सर मीडिया की आजादी पर (Story of Press Freedom Day) बहस देखी जा सकती है. वह मीडिया जो आज दुनिया में खबरें पहुंचाने का बेहतर माध्यम है, वह सवालों के घेरे भी है. भारत में प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है. रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स हर साल दुनिया के 180 मुल्कों में प्रेस की आजादी को लेकर रैंकिंग जारी करता है. साल 2002 से विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी में भी भारत की कुछ सालों से लगातार गिरती रेटिंग का दौर जारी रहा. भारत इस रैंकिंग में पिछड़ा नजर आया.
साल 2017 में भारत 136वें स्थान पर था, जो साल 2018 में 138वें, साल 2019 में 140वें, 2020 में 142वें तो वहीं 2021 में भी 142 वें स्थान पर है. इस इंडेक्स के मुताबिक वैश्विक परिदृश्य में पत्रकारिता सूची में शामिल लगभग 73 फीसदी देश स्वतंत्र मीडिया के मामले में पूरी तरह से या आर्थिक रूप से प्रभावित होते हैं. सूचकांक में शामिल 180 देशों में से केवल 12 फीसदी में ही पत्रकारिता के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करने का दावा किया गया है. जाहिर है कि इस सूचकांक में नॉर्वे लगातार पांच साल से पहले स्थान पर है. इसके अलावा फिनलैंड दूसरी और डेनमार्क को तीसरी रैंकिंग हासिल है. इरीट्रिया इस इंडेक्स में सबसे निचले यानी 180वें स्थान पर है. जबकि चीन 177वें और उत्तरी कोरिया 179वें पायदान पर है. आपको बता दें कि यह सूचकांक सार्वजनिक नीतियों की रैंकिंग नहीं करता है, यह बहुलवाद के स्तर, मीडिया की स्वतंत्रता, मीडिया के लिए वातावरण और स्वयं-सेंसरशिप, कानूनी ढांचे, पारदर्शिता के साथ-साथ समाचारों और सूचनाओं के लिए मौजूदा बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता के आकलन के आधार पर तैयार किया जाता है.
अनुराग ठाकुर ने जब नकार दी थी रैंकिंग : इस मामले में साल 2021 में संसद में अपने जवाब के दौरान केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा तैयार किए गए वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की निम्न रैंक से असहमति जताई थी. सरकार ने दावा किया था कि रिपोर्ट एक छोटे नमूने के आधार पर थी, जिसमें "लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों" को बहुत कम या कोई महत्व नहीं दिया गया. गौरतलब है कि सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से लोकसभा में एक प्रश्न किया गया था, जिसमें केंद्रीय मंत्री से पूछा गया कि क्या सरकार ने भारत की निम्न रैंकिंग के कारण की पहचान की है और क्या कोई सुधारात्मक उपाय किए गए हैं ? जिस पर लिखित जवाब के जरिए ठाकुर ने सदन को सूचित किया कि सरकार ने रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और इसकी रिपोर्ट रैंकिंग वाले देशों के विचारों को "सदस्यता नहीं दी", क्योंकि सर्वेक्षण में भाग लेने वालों की संख्या पर्याप्त नहीं थी. मंत्री ने यह भी दावा किया था कि रिपोर्ट में सर्वेक्षण के लिए एक "संदिग्ध पद्धति" थी. इसके बाद पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने भी ट्वीट के जरिए सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए थे.