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विश्व अस्थमा दिवस आज, बढ़ते प्रदूषण के बाद कोरोना ने भी बढ़ाए मरीज

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Published : May 3, 2022, 11:07 AM IST

अस्थमा की समस्या (world asthma day) हर उम्र के व्यक्तियों में देखी जा रही है और चिकित्सकों का कहना है कि बीते कुछ समय से अस्थमा संबंधित बीमारियों ने तेजी से मरीजों को घेरना शुरू कर दिया है.

world asthma day
विश्व अस्थमा दिवस आज

जयपुर. हर वर्ष मई माह के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस (world asthma day) के रूप में मनाया जाता है. इस बार 3 मई को ये मनाया जा रहा है. बीते कुछ सालों में अस्थमा यानी सांस से संबंधित बीमारियों के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हुई है और बढ़ते प्रदूषण के बाद, कोरोना महामारी के कारण भी अस्थमा के मरीजों में बढ़ोतरी देखने को मिली है, अस्थमा की समस्या हर उम्र के व्यक्तियों में देखी जा रही है. चिकित्सकों का कहना है कि बीते कुछ समय से अस्थमा संबंधित बीमारियों ने तेजी से मरीजों को घेरना शुरू कर दिया है.

कोरोना ने बढ़ाई तादाद: वर्ष 2019 में डब्ल्यूएचओ ने जो आंकड़े जारी किए वो इसको लेकर चेतावनी देते हैं. जारी किए गए आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2019 में तकरीबन 262 मिलियन लोगों को अस्थमा ने प्रभावित किया और इस बीमारी से तकरीबन 4 लाख से अधिक मरीजों की मौत भी दर्ज की गई. जयपुर के आर यू एच एस अस्पताल के अधीक्षक और अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अजीत सिंह का कहना है कि विगत कुछ सालों से प्रदूषण अस्थमा के रोग का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. पिछले दो साल से कोविड-19 संक्रमण महामारी के बाद भी अस्थमा के मरीजों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है (corona has increased the risk of asthma) और स्वस्थ व्यक्ति जब कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आ रहा है तो कुछ मरीजों में पोस्ट कोरोना साइड इफेक्ट के रूप में अस्थमा के लक्षण देखने को मिल रहे हैं.

कोरोना और प्रदूषण ने बढ़ाई फिक्र

क्या है अस्थमा?: अस्थमा एक प्रमुख गैर संचारी रोग (एनसीडी) है, जो बच्चों और वयस्कों दोनों को प्रभावित करता है. फेफड़ों में छोटे वायुमार्ग की सूजन और संकीर्णता अस्थमा के लक्षण पैदा करती है, जिससे खांसी, घरघराहट, सांस की तकलीफ और सीने में जकड़न का एहसास होता है. सांस की दवा अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित कर सकती है और अस्थमा से पीड़ित मरीज सामान्य, सक्रिय जीवन जी सकते हैं. आमतौर पर इलाज नहीं लेने के कारण अधिकांश अस्थमा मरीजों की मौत तक हो जाती है.

पढ़ें- अस्थमा को काबू करने में लाभकारी हो सकता है आईएल-9 पर नियंत्रण : शोध

अस्थमा के कारण: आमतौर पर चिकित्सकों का कहना है कि अत्यधिक प्रदूषण अस्थमा का प्रमुख कारण है इसके अलावा बीड़ी सिगरेट का उपयोग और इनके धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों में भी अस्थमा हो सकता है. यदि परिवार के अन्य सदस्यों को भी अस्थमा है विशेष रूप से करीबी रिश्तेदार, जैसे माता-पिता या भाई-बहन, तो अन्य लोगों को भी अस्थमा की संभावना अधिक होती है। वही जो लोग अन्य एलर्जी से पीड़ित है, जैसे एक्जिमा और राइनाइटिस तो इन मरीजों में अस्थमा होने की संभावना अधिक होती है. इसके अलावा हाल ही में 2 साल से आए कोविड-19 संक्रमण के बाद अस्थमा के मरीजों में एकाएक तेजी देखने को मिली है.

कैसे करें बचाव: डॉ अजीत सिंह का कहना है कि कई बार जब मरीज अस्थमा की चपेट में आ जाता है तो उसे दवाइयों से ठीक किया जा सकता है लेकिन कई बार मरीज दवाई लेने के कुछ समय बाद खुद को ठीक महसूस करता है और ट्रीटमेंट बंद कर देता है. डॉ अजीत सिंह का कहना है कि अस्थमा का इलाज काफी लंबा चलता है तो ऐसे में ट्रीटमेंट कभी भी बंद नहीं करना चाहिए. इससे बीमारी ज्यादा बढ़ सकती है. धूल, धुआं, मौसम में बदलाव, घास और पेड़ के पराग, जानवरों के फर और पंख, साबुन और इत्र इस्तेमाल से अस्थमा रोगियों को बचना चाहिए क्योंकि इनके संपर्क में आने के बाद बीमारी ज्यादा फैल सकती है.

जयपुर. हर वर्ष मई माह के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस (world asthma day) के रूप में मनाया जाता है. इस बार 3 मई को ये मनाया जा रहा है. बीते कुछ सालों में अस्थमा यानी सांस से संबंधित बीमारियों के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हुई है और बढ़ते प्रदूषण के बाद, कोरोना महामारी के कारण भी अस्थमा के मरीजों में बढ़ोतरी देखने को मिली है, अस्थमा की समस्या हर उम्र के व्यक्तियों में देखी जा रही है. चिकित्सकों का कहना है कि बीते कुछ समय से अस्थमा संबंधित बीमारियों ने तेजी से मरीजों को घेरना शुरू कर दिया है.

कोरोना ने बढ़ाई तादाद: वर्ष 2019 में डब्ल्यूएचओ ने जो आंकड़े जारी किए वो इसको लेकर चेतावनी देते हैं. जारी किए गए आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2019 में तकरीबन 262 मिलियन लोगों को अस्थमा ने प्रभावित किया और इस बीमारी से तकरीबन 4 लाख से अधिक मरीजों की मौत भी दर्ज की गई. जयपुर के आर यू एच एस अस्पताल के अधीक्षक और अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अजीत सिंह का कहना है कि विगत कुछ सालों से प्रदूषण अस्थमा के रोग का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. पिछले दो साल से कोविड-19 संक्रमण महामारी के बाद भी अस्थमा के मरीजों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है (corona has increased the risk of asthma) और स्वस्थ व्यक्ति जब कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आ रहा है तो कुछ मरीजों में पोस्ट कोरोना साइड इफेक्ट के रूप में अस्थमा के लक्षण देखने को मिल रहे हैं.

कोरोना और प्रदूषण ने बढ़ाई फिक्र

क्या है अस्थमा?: अस्थमा एक प्रमुख गैर संचारी रोग (एनसीडी) है, जो बच्चों और वयस्कों दोनों को प्रभावित करता है. फेफड़ों में छोटे वायुमार्ग की सूजन और संकीर्णता अस्थमा के लक्षण पैदा करती है, जिससे खांसी, घरघराहट, सांस की तकलीफ और सीने में जकड़न का एहसास होता है. सांस की दवा अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित कर सकती है और अस्थमा से पीड़ित मरीज सामान्य, सक्रिय जीवन जी सकते हैं. आमतौर पर इलाज नहीं लेने के कारण अधिकांश अस्थमा मरीजों की मौत तक हो जाती है.

पढ़ें- अस्थमा को काबू करने में लाभकारी हो सकता है आईएल-9 पर नियंत्रण : शोध

अस्थमा के कारण: आमतौर पर चिकित्सकों का कहना है कि अत्यधिक प्रदूषण अस्थमा का प्रमुख कारण है इसके अलावा बीड़ी सिगरेट का उपयोग और इनके धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों में भी अस्थमा हो सकता है. यदि परिवार के अन्य सदस्यों को भी अस्थमा है विशेष रूप से करीबी रिश्तेदार, जैसे माता-पिता या भाई-बहन, तो अन्य लोगों को भी अस्थमा की संभावना अधिक होती है। वही जो लोग अन्य एलर्जी से पीड़ित है, जैसे एक्जिमा और राइनाइटिस तो इन मरीजों में अस्थमा होने की संभावना अधिक होती है. इसके अलावा हाल ही में 2 साल से आए कोविड-19 संक्रमण के बाद अस्थमा के मरीजों में एकाएक तेजी देखने को मिली है.

कैसे करें बचाव: डॉ अजीत सिंह का कहना है कि कई बार जब मरीज अस्थमा की चपेट में आ जाता है तो उसे दवाइयों से ठीक किया जा सकता है लेकिन कई बार मरीज दवाई लेने के कुछ समय बाद खुद को ठीक महसूस करता है और ट्रीटमेंट बंद कर देता है. डॉ अजीत सिंह का कहना है कि अस्थमा का इलाज काफी लंबा चलता है तो ऐसे में ट्रीटमेंट कभी भी बंद नहीं करना चाहिए. इससे बीमारी ज्यादा बढ़ सकती है. धूल, धुआं, मौसम में बदलाव, घास और पेड़ के पराग, जानवरों के फर और पंख, साबुन और इत्र इस्तेमाल से अस्थमा रोगियों को बचना चाहिए क्योंकि इनके संपर्क में आने के बाद बीमारी ज्यादा फैल सकती है.

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