जयपुर. हाल ही में दिल्ली दौरे पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रेप के बाद हत्या के मामले में (CM statement in Delhi on rape cases) एक बयान दिया था जिसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है. महंगाई और केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर जारी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान गहलोत ने यह कहा कि दुष्कर्म के बाद हत्या के मामलों में इजाफा निर्भया कांड के बाद हुआ है. उन्होंने तर्क दिया की अब अपराधी को मृत्युदंड का भय सताने लगा है. अशोक गहलोत के इस बयान पर देश भर में तीखी प्रतिक्रिया (Womens organizations angry on CM gehlot) के साथ विरोध शुरू हो गया है.
महिला संगठनों के साथ-साथ विपक्षी भाजपा ने सोशल मीडिया से लेकर खुले मैदान तक में सीएम गहलोत के स्टेटमेंट पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. इस बीच एक सवाल य़ह भी उठा है कि बलात्कार के मामलों में राजस्थान में फ़िलहाल क्या तस्वीर है? मंगलवार को ही अलग-अलग थानों में चार दुष्कर्म की वारदातों को दर्ज किया गया था. ऐसे में राजस्थान सरकार की नीतियों और महिलाओं की सुरक्षा पर भी सवाल उठ रहा है. क्या महिलाएं राजस्थान में सुरक्षित हैं? क्या कहते हैं बीते कुछ सालों के आंकड़े?
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राजस्थान में रुक नहीं रहीं दुष्कर्म की वारदातें
साल 2019, 2020 और 2021 में अगर दुष्कर्म की वारदातों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो यह सामने आता है कि साल 2020 में कोरोना वायरस के बीच इन वारदातों में 5% की कमी दर्ज हुई, लेकिन साल 2021 में यह ग्राफ 10% ऊपर चला गया. साल 2019 में प्रदेश में 5 हजार 997 दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2020 में इनका आंकड़ा 5 हजार 310 रहा. इसी तरह साल 2021 की बात करें तो यह आंकड़ा 6 हजार के पार चला गया और वारदातों की संख्या 6 हजार 337 रही.
तुलनात्मक आंकड़े बताते हैं कि 2019 की तुलना में साल 2020 में 637 दुष्कर्म की वारदातें कम रहीं. इसकी एक वजह उस दौर में कोरोना और लॉकडाउन को भी माना जा रहा है. लेकिन जैसे ही लॉकडाउन खुला और 2021 में जिंदगी पटरी पर आने लगी रेप की वारदातों में 1027 का इजाफा हो गया जो कि करीब-करीब 20 फ़ीसदी के आसपास रहा. इन आंकड़ों से लग रहा है कि दुष्कर्म की वारदातों में कहीं कोई कमी हो रही है. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में रोजाना 17 महिलाओं के साथ दुष्कर्म की वारदात हो रही हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री के बयान को लेकर भी अलग-अलग नजरिए से प्रतिक्रियाएं आना लाजमी है.
गहलोत के बयान से नाराज महिला संगठन
राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. लाड कुमारी जैन ने कहा कि वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान से कतई इत्तेफाक नहीं रखती है कि मजबूत कानून आने के बाद दुष्कर्म का शिकार पीड़ितों की हत्या के मामले में इजाफा हुआ है. उन्होंने साल 2013 में जस्टिस वर्मा कमिशन की तरफ से आईपीसी और सीआरपीसी में किए गए संशोधन का जिक्र करते हुए कहा कि तब भी वारदातों पर अंकुश लगाने के मकसद से ही सख्त कानून लाने की हिमायत की गई थी.
उन्होंने कहा कि असली समस्या यह है कि जितने मजबूत कानून हैं, उतनी मजबूती के साथ इन कानूनों पर अमल नहीं किया जा रहा है. लाड कुमारी जैन ने कहा कि हमें सकारात्मक रुख अख्तियार करते हुए इसके अमल की कोशिश करनी चाहिए ना कि उसमें कमियां ढूंढने चाहिए. क्योंकि कानून आने के साथ ही बच्चियों की सुरक्षा का दृष्टिकोण सबसे पहले इसमें रखा गया था. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ मनीषा सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री ने सारा दोष कानून पर मढ़ दिया है, जो कि पूर्णतया गलत है. वे राजस्थान में बढ़ती दुष्कर्म की वारदातों पर अंकुश लगाने के मामले में अपनी नाकामयाबी पर कुछ नहीं बोल रहे हैं. डॉ मनीषा सिंह ने कहा कि इस तरह की बयानबाजी से मुख्यमंत्री को बचना चाहिए.