जयपुर. महिला एवं बाल विकास विभाग ने पोषाहार तैयार करने का काम नेफेड के जरिए आंगनबाड़ी मातृ बाल विकास समिति के माध्यम से कराने का निर्णय लिया है. जिससे प्रदेश के 55 हजार स्वयं सहायता समूह से पोषाहार तैयार करने का काम छिन गया है. कोरोना काल में इन स्वयं सहायता समूह संचालिकाओं के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है.
बता दें कि एक सहायता समूह में करीब 10 महिलाएं शामिल हैं. वहीं संकट की इस घड़ी में इन स्वयं सहायता समूह पर दोहरी मार पड़ी है. एक तरफ वे बेरोजगार हो गई हैं तो दूसरी तरफ व्यवस्था परिवर्तन के बाद इन सहायता समूह का करीब 4 करोड़ रुपए का भुगतान भी रोक दिया गया है. संस्थाओं का संचालन करने वाली महिलाएं CM अशोक गहलोत से पोषाहार का काम फिर से शुरू करवाने की गुहार लगा रही हैं.
कोरोना काल के दौरान राज्य सरकार ने संक्रमण को देखते हुए गेहूं और चने की दाल नेफेड से ली थी. वहीं राशन डीलरों के माध्यम से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को लाभार्थियों तक राशन वितरण करना था. इस योजना के तहत प्रदेश में 40 लाख महिलाओं और बच्चों को पोषण मिलता था.
यह भी पढ़ें. स्पेशलः अपनी हालत पर आंसू बहा रहे अन्नदाता, पानी-पानी हो रही पसीने की कमाई
वहीं महिला स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधियों ने महिला बाल विकास विभाग और संबंधित मंत्री ममता भूपेश के पास दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं. जिसमें उन्होंने कहा कि साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के अनुसार पोषाहार वितरण का काम स्वयं सहायता समूह से कराना अनिवार्य है. दूसरा सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के अनुसार पोषाहार वितरण में आवश्यक पोषक तत्व होना चाहिए, जैसे की विटामिन, प्रोटीन आदी निर्धारित मात्रा में मौजूद रहें. अब जो वर्तमान में पोषाहार पहुंचाया जा रहा है, उसे निर्धारित मात्रा में पोषक तत्व नहीं है.
इन समूहों का तर्क है कि उनके पास करोड़ों रुपए का कच्चा माल है. वहीं पहले उन्होंने माल को कर्ज लेकर उठाया है. काम छिन जाने के बाद वे कर्ज कैसे चुकाएंगी. इन हजारों संचालिकों के सामने अपने और अपने परिवार का पेट पालने की समस्या खड़ी हो गई है.
यह भी पढ़ें. Special : स्कूल संचालकों पर कोरोना की मार...80 फीसदी बंद होने के कगार पर
बहरहाल, विभाग ने कोरोना संकट के समय आंगनबाड़ी मातृ बाल विकास समिति के माध्यम इस व्यवस्था को लागू किया था लेकिन विभाग अब इसे नियमित लागू करना चाहता है. इस नई व्यवस्था ने प्रदेश की 5 लाख महिलाओं के घर के चूल्हे को तो बुझाया है ही, साथ ही महिलाओं के आत्मनिर्भर बनाने के सपने पर पानी फिर गया है.