जयपुर. हर साल 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' (World Women Equality Day) मनाया जाता है. पूरे दुनिया में यह खास दिन बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है. इस विशेष दिन को मानने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देना है. हकीकत तो यह है कि कानून की नजर में भले ही, महिला और पुरुष को समान अधिकार हैं, लेकिन रूढ़िवादी समाज में अभी भी महिलाओं को लेकर लोगों के मन में दोहरी मानसिकता बनी हुई है. उन्हें आज भी पुरूष के बराबर का अधिकार नहीं मिला है.
महिलाएं समाज का वह हिस्सा रही हैं जिसके बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है, लेकिन उसे हमेशा ढककर रखा जाता है. असमानता को लेकर बढ़ते भेदभाव के चलते इस दिवस को मनाने की शुरूआत करना पड़ी. महिलाओं को समानता का दर्जा प्राप्त हो, उन्हें भी हर क्षेत्र में बराबर का हक मिले.
अमेरिका में महिला अधिकारों की लड़ाई 1853 से शुरू हुई थी. जिसमें सबसे पहले विवाहित महिलाओं ने संपत्ति पर अधिकार मांगना शुरू किया था. उस समय अमेरिका में भी महिलाओं की स्थिति आज के जैसी नहीं थी. वोटिंग के अधिकार के लिए हुई लड़ाई में महिलाओं को 1920 में जीत हासिल हुई. वहीं भारत में भी महिलाओं को वोट करने का अधिकार ब्रिटिश शासन काल में ही मिल गया था.
अमेरिका में 26 अगस्त 1920 में 19वें संविधान में संशोधन के बाद पहली बार मत करने का अधिकार मिला था. 26 अगस्त 1971 में वकील बेल्ला अब्जुग के प्रयास से महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने की शुरूआत इस दिन से हुई थी. इस पहले से अमेरिकी महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिकों का दर्जा प्राप्त था. अमेरिका में 26 अगस्त को 'वुमन इक्वालिटी डे' (Women's Equally Day) के रूप में मनाते हैं, जिसके बाद इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मनाया जाने लगा.
महिला समानता दिवस मनाने का उद्देश्य
इस दिवस को मनाने का खास उद्देश्य है. महिला सशक्तिकरण को बढ़ाना, उन्हें बढ़ावा देना. वहीं, दूसरी ओर बढ़ रहे अत्याचार भेदभाव, कुकर्म, दुष्कर्म, एसिड अटैक, जैसे कई मुद्दे पर लोगों को जागरूक करना है.
साक्षरता में महिलाएं पीछे
साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर में 12 प्रतिशत की वृद्धि जरूर हुई है. वहीं, केरल में जहां महिला साक्षरता दर 92 प्रतिशत है, वहीं बिहार में महिला साक्षरता दर अभी भी 53.3 प्रतिशत है.
हर कदम पर खुद को साबित किया
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस दौर में भी लड़कियों को बोझ माना जाता है. आए दिन कन्या भ्रूणहत्या जैसे मामले सामने आते रहते हैं. हालांकि लड़कियों ने हर क्षेत्र, हर कदम पर खुद को साबित किया है. इसके बावजूद महिलाओं की स्थिति और उनके प्रति समाज के रवैये में अधिक फर्क नहीं देखने को मिला है.