जयपुर. राजनीति में समीकरण का खेल बड़ा होता है. राजनीतिक समीकरण ही तय करते हैं कि कब किसका पलड़ा भारी होगा और कौन हाशिए पर पहुंच जाएगा. राजस्थान भाजपा (Prominent Leaders Of Rajasthan BJP) में भी ऐसा हुआ. गुजरे वक्त के पन्ने पलटें तो ऐसे कई चेहरे खिलखिलाते हुए दिखेंगे जिनसे कभी पार्टी की रौनक थी. अपनी पार्टी की सरकारों के दौर में सत्ता के साथ संगठन में भी इनका सिक्का चलता था लेकिन आज उनमें से कुछ को अपनी सियासी प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है.
समय के साथ इन नेताओं का प्रभाव भी कम हुआ और अब इनमें से कुछ नेता (well known BJP Leaders struggle) अपने विधानसभा क्षेत्र तक सिमट कर रह गए. कुछ अपने सियासी अस्तित्व के लिए संघर्ष का पसीना बहा रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि इन राजनेताओं का अपने कार्यकर्ता या क्षेत्र में प्रभाव कम हो गया हो लेकिन समय और परिस्थितियों के साथ बदले सियासी समीकरणों के बीच अब इनको संगठन में वो महत्व नहीं मिल पा रहा जो कभी मिला करता था. इन दिग्गजों में शामिल कुछ हैं डॉ महेशचंद शर्मा, अशोक परनामी, घनश्याम तिवाड़ी, यूनुस खान और महावीर प्रसाद जैन.
डॉ महेशचंद शर्मा: पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ महेश शर्मा राजस्थान भाजपा के उन राजनेताओं में शामिल हैं जिनकी आरएसएस से घनिष्ठता जगजाहिर है. ये राजस्थान भाजपा की कमान भी संभाल चुके हैं. संघ पृष्ठभूमि से आने वाले डॉ महेश शर्मा साल 1996 से 2002 तक राजस्थान से राज्यसभा सदस्य सदन में मुख्य सचेतक रहे. साल 2006 से 08 तक राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष रहे. इसके अलावा राजस्थान विकास व निवेश बोर्ड के अध्यक्ष भी. इसके साथ ही उन्होंने कई अहम राजनीतिक जिम्मेदारियां निभाईं. कुल मिलाकर पार्टी और संगठन में महेशचंद शर्मा की तूती बोला करती थी लेकिन आज वो पार्टी और संगठन की गतिविधियों में सक्रिय नहीं नजर आते. लंबे अरसे से उन्हें पार्टी की किसी गतिविधियों में देखा नहीं गया है. बस एक फाउंडेशन कार्यक्रम में नजर आ जाते हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि वो इसके अध्यक्ष हैं. जिसका नाम है एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान व विकास प्रतिष्ठान.
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अशोक परनामी: राजस्थान भाजपा में लगातार सबसे लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड अशोक परनामी के ही नाम है. परनामी जयपुर शहर के महापौर और आदर्श नगर से विधायक भी चुके है. परनामी जब पार्टी के मुखिया थे तब प्रदेश में भाजपा की वसुंधरा सरकार थी. लिहाजा संगठन के साथ ही सत्ता में भी परनामी की तूती बोला करती थी लेकिन बदले हुए सियासी समीकरणों के बाद आज पार्टी में उनके पास कोई बड़ा दायित्व नहीं. इसके साथ ही प्रदेश संगठन में उनकी उपयोगिता का पूरा इस्तेमाल हो रहा हो ऐसा दिखता भी नहीं है. फिलहाल परनामी क्षेत्र में पूरी तरह सक्रिय हैं. हालांकि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे डॉ अरुण चतुर्वेदी को आज भी प्रदेश संगठनात्मक कार्यों में अलग-अलग दायित्व देकर तवज्जो मिल रही है लेकिन परनामी के साथ ऐसा नहीं हैं.
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घनश्याम तिवाड़ी: राजस्थान की राजनीति में शायद ही कोई होगा जो घनश्याम तिवाड़ी को न जानता हो. राजस्थान में 6 बार विधायक, विभिन्न विभागों के मंत्री रह चुके घनश्याम तिवाड़ी संगठन में प्रदेश उपाध्यक्ष और महामंत्री से लेकर कई पदों पर काम कर चुके हैं. समय बदला तो उन्होंने नई पार्टी बना ली लेकिन फिर अपनी विचारधारा के चलते भाजपा में वापसी की. वर्तमान में घनश्याम तिवाड़ी भाजपा में तो है लेकिन उनके पास कोई बड़ा दायित्व नहीं है. इस बीच जिलों में हाल ही में हुए प्रशिक्षण शिविरों में पार्टी ने उन्हें भेजा लेकिन जिस कद के वो नेता है उसके अनुरूप फिलहाल कोई जिम्मेदारी उन्हें नहीं मिली. बदली हुई सियासत में ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि पार्टी से नाता तोड़कर वापस पार्टी में आने पर उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी देकर संगठन नए विवाद से शायद बचना चाहता है.
यूनुस खान : राजस्थान भाजपा में यूनुस खान अल्पसंख्यक नेताओं में बड़ा नाम था. पिछली वसुंधरा सरकार के दौरान यूनुस खान प्रदेश सरकार में नंबर दो की पोजीशन रखते थे और उनके पास ट्रांसपोर्ट और पीडब्ल्यूडी जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी भी रही. उसके पहले भी वे भाजपा की सरकार में खेल मंत्री रह चुके थे. पिछले चुनाव में सबसे अंतिम टिकट यूनुस खान का तय हुआ था. उन्हें टोंक में सचिन पायलट के खिलाफ मैदान में उतारा गया जिसमें उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था.लंबे समय तक राजस्थान भाजपा में और पार्टी में उनका दखल रहा लेकिन अब पार्टी और संगठन से जुड़ी गतिविधियों में वे नजर नहीं आते.
महावीर प्रसाद जैन: समय के साथ सियासत में प्रभाव कम होने वाले नेताओं में दिग्गज भाजपा नेता रहे महावीर प्रसाद जैन का नाम भी शुमार है. महावीर प्रसाद टोंक से तीन बार विधायक रहे साथ ही राजस्थान विधानसभा में मुख्य सचेतक भी रहे लेकिन आज वो भाजपा और संगठनात्मक गतिविधियों से लगभग दूर ही हैं, या फिर कहें मौजूदा सियासी समीकरणों में पार्टी ने उन्हें कोई दायित्व नहीं सौंपा. महावीर प्रसाद जैन का टिकट साल 2013 के विधानसभा चुनाव में काट कर अजीत मेहता को दिया गया था.