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Special : राजस्थान की लोक विरासत का जीवंत साक्षी है यह संग्रहालय...विशालकाय कठपुतलियां हैं गवाह

जयपुर शहर (Jaipur City) का परकोटा इलाका (Parkota Area) विश्व विरासत (World Heritage) है. यह केवल गुलाबी इमारतों, बाजारों, चौपड़ों, प्राचीरों और बरामदों के कारण नहीं है. बल्कि शहर के इस गुलाबी हिस्से के हर कोने में इतिहास सांसें ले रहा है. लोक कलाओं को आज भी जीवंत रखे हुए है जयपुर शहर का विरासत संग्रहालय (Virasat Museum)...

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
जयपुर का विरासत संग्रहालय
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Published : Aug 27, 2021, 7:20 PM IST

जयपुर. गुलाबी नगर जयपुर अपनी स्थापत्य कला और संस्कृति के लिए विश्व पटल पर विशेष स्थान रखता है. यहां के कलाकारों ने कई ऐसी वस्तुओं का निर्माण किया, जिनका विश्व स्तर पर खास उल्लेख किया गया है. अद्भुत कलाओं को जयपुर के राजाओं का भी भरपूर संरक्षण मिला.

1857 में जयपुर के राजा सवाई रामसिंह द्वितीय ने ऐसे कलाकारों के लिए 'मदरसा-ए-हुनरी' शुरू किया था. जिसे अजायबघर के नाम से भी जाना जाता है. यहां मौजूद विशालकाय कठपुतलियां आज भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. जयपुर के किशनपोल बाजार (Kishanpol Bazar) में तत्कालीन जयपुर रियासत में मंत्री रहे पंडित शिवदीन (pandit shivdeen) का निवास स्थान है, जिसे 1857 में राजा सवाई रामसिंह द्वितीय (raja sawai ramsingh second) के संरक्षण में मदरसा-ए-हुनरी (madarsa-e-hunri) बनाकर एक कला संस्थान के रूप में शुरू किया गया था.

जयपुर का विरासत संग्रहालय

1886 में संस्थान का नाम हुआ महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स

यह संस्थान राज्य में कला, संस्कृति, पर्यटन और शिल्प उद्योग को बढ़ाने का मूल आधार स्तम्भ रही. वर्ष 1886 में इस संस्थान का नाम बदलकर महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स (Maharaja School of Arts and Crafts) रख दिया गया. इसके बाद 1988 में इस संस्थान का नाम दोबारा बदल कर राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स (Rajasthan School of Arts) कर दिया गया.

पढ़ें- ज्योतिष, भाग्य और रत्न : राशि रत्न इंसान के लिए बारिश में छाते जैसा काम करता है...ज्योतिषी की सलाह पर पहने जाते हैं राशियों के रत्न

अब राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स

इस तरह मदरसा-ए-हुनरी बदलते दौर के साथ राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स बन गया. इस संस्थान में आज भी वह अजायबघर मौजूद है जहां कलाकारों की कई अद्भुत कलाओं को संजोया गया है. इस अजायबघर को विरासत संग्रहालय के नाम से जाना जाता है. संग्रहालय में सबसे खास है विक्की भट्ट (Vicky Bhatt) द्वारा बनाई गई दो विशालकाय कठपुतलियां (puppet ). आमतौर पर कठपुतलियां डेढ़ से दो फीट तक की होती हैं. लेकिन विरासत संग्रहालय में मौजूद कठपुतलियां अपने कद से आगंतुकों को अचंभित कर देती हैं.

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
विशालकाय कठपुतलियों का संग्रह

विशाल कठपुतलियों का जोड़ा है अनोखा

यहां रखा विशाल कठपुतलियों का जोड़ा राजस्थान की लोकप्रिय कठपुतली कला का अनूठा उदाहरण है. लोक मान्यता है कि इनसे बड़ी कठपुतलियां दुनिया में कहीं भी नहीं हैं. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत (Devendra Kumar Bhagat) के अनुसार कठपुतली का खेल महाराष्ट्र से आया है. मराठी कलाकार कपड़े से महिला-पुरुष कठपुतलियां बनाते थे और आभूषणों से उन्हें सजाते थे. वे कठपुतलियों को आड़ लगाकर पीछे से संचालित करते थे.

समय के साथ कठपुतली कला विविध आयाम से होकर गुजरी. जयपुर शहर में टप्पे बाजी और गाली बाजी की परंपरा भी चली. तब शहर में हुनरमंद लोगों को राजाओं ने खुश होकर जागीरें दीं. इन परंपरागत कलाओं के जरिये कठपुतली के खेल को लोक कलाकारों ने वीर गाथाओं से जोड़कर विख्यात कर दिया. कठपुतलियों के माध्यम से वीर योद्धाओं की कथाएं प्रस्तुत की जातीं और उन्हें बहुत पसंद भी किया जाने लगा.

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
विश्व विरासत की एक विरासत यह भी

राजस्थान का कठपुतलियों से विशेष नाता रहा. आज भी जयपुर के अनेक पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कठपुतली का खेल दिखाया जाता है. जयपुर शहर में कठपुतली कलाकारों का पूरी बस्ती बसी हुई है. भाट जाति के अधिकांश कठपुतली कलाकार शहर के कठपुतली नगर में रहते हैं.

पढ़ें- Special : बीकानेर शहर खो रहा अपनी ऐतिहासिक पहचान...हजार हवेलियों के शहर में ढाई सौ हवेलियां भी नहीं बची

2017 में संग्रहालय को नाम दिया विरासत संग्रहालय

विरासत संग्रहालय के अधीक्षक राकेश छोलक (Rakesh chholak) के अनुसार 2017 में राज्य सरकार ने इस भवन को एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित करने का निर्णय लिया था. इसे विरासत संग्रहालय के रूप में नई पहचान मिली. इसका उद्देश्य राजस्थान की विरासत को विभिन्न प्रकार के संग्रह के माध्यम से प्रदर्शित करना है. इसमें वस्त्र, आभूषण, रत्न, पच्चीकारी कार्य, चित्रकला, मृदभाण्ड आदि कलाएं शामिल हैं. इसके अलावा भारत के विभिन्न क्षेत्रों की स्वतंत्र कलाओं को भी यहां प्रदर्शित किया गया है. या यूं कहें कि एक ही छत के नीचे राजस्थानी कला और शिल्प के अद्भुत नमूने यहां देखने को मिल सकते हैं.

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
राजस्थान के परिधान का संग्रह

8 दीर्घाओं में प्रदर्शित हैं राज्य-देश-दुनिया के रंग

वर्तमान में इस संग्रहालय में 8 सक्रिय दीर्घाएं हैं. जिन्हें भारत के कला और संस्कृति के परिवेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों के सुपुर्द किया गया है. बृज भसीन (Brij Bhasin) का संग्रह पश्चिम भारत, विशेष रूप से राजस्थानी ग्रामीण परिधानों के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाता है. मिच क्राईट्स (Mitch Crites) की दीर्घा में उनकी शिल्पशाला में बनाये गये बहुमुल्य पत्थर और संगमरमर की वस्तुएं शामिल हैं.

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
आर्ट कॉलेज परिसर में विरासत संग्रहालय

इसके अलावा भारत में रहने के दौरान उनके और उनकी पत्नी नीलू के पेंटिंग संग्रह को प्रदर्शित किया गया है. सुधीर कासलीवाल (Sudhir Kasliwal) की दीर्घा राजस्थान में आभूषण बनाने की कला के इतिहास को प्रस्तुत करती है. ओजस आर्ट दीर्घा उच्च कुशल भील कलाकारों की ओर से निर्मित आदिवासी चित्रों का जीवन्त संग्रह दर्शाती है. निर्मला रूद्रा (Nirmala Rudra) और वायु डिजाइन फॉर लिविंग (Vayu Design for Living) ने जयपुर केन्द्रीय कारागार के कैदियों की ओर से बनाई गई दरियों को प्रदर्शित किया है.

प्रसिद्ध कलाकार कृपाल सिंह शेखावत (kripal singh shekhawat) की प्रदर्शनी में उनके कला और जीवन की एक झलक देखी जा सकती है. इसके अलावा स्टेफनी डुए (Stephanie Duey) को आवंटित की गई दीर्घा एंग्लो-इंडियन इतिहास (Anglo-Indian History) और सांस्कृतिक सम्बन्धों को दर्शाती है. इस तरह राजस्थान का ये अजायबघर अब दुनियाभर की सांस्कृतिक विरासतों को अपने आप में समेटे हुए है. वाकई, इसे राजसी शौक का मदरसा-ए-हुनरी यानी हुनर की पाठशाला कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.

जयपुर. गुलाबी नगर जयपुर अपनी स्थापत्य कला और संस्कृति के लिए विश्व पटल पर विशेष स्थान रखता है. यहां के कलाकारों ने कई ऐसी वस्तुओं का निर्माण किया, जिनका विश्व स्तर पर खास उल्लेख किया गया है. अद्भुत कलाओं को जयपुर के राजाओं का भी भरपूर संरक्षण मिला.

1857 में जयपुर के राजा सवाई रामसिंह द्वितीय ने ऐसे कलाकारों के लिए 'मदरसा-ए-हुनरी' शुरू किया था. जिसे अजायबघर के नाम से भी जाना जाता है. यहां मौजूद विशालकाय कठपुतलियां आज भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. जयपुर के किशनपोल बाजार (Kishanpol Bazar) में तत्कालीन जयपुर रियासत में मंत्री रहे पंडित शिवदीन (pandit shivdeen) का निवास स्थान है, जिसे 1857 में राजा सवाई रामसिंह द्वितीय (raja sawai ramsingh second) के संरक्षण में मदरसा-ए-हुनरी (madarsa-e-hunri) बनाकर एक कला संस्थान के रूप में शुरू किया गया था.

जयपुर का विरासत संग्रहालय

1886 में संस्थान का नाम हुआ महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स

यह संस्थान राज्य में कला, संस्कृति, पर्यटन और शिल्प उद्योग को बढ़ाने का मूल आधार स्तम्भ रही. वर्ष 1886 में इस संस्थान का नाम बदलकर महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स (Maharaja School of Arts and Crafts) रख दिया गया. इसके बाद 1988 में इस संस्थान का नाम दोबारा बदल कर राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स (Rajasthan School of Arts) कर दिया गया.

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अब राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स

इस तरह मदरसा-ए-हुनरी बदलते दौर के साथ राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स बन गया. इस संस्थान में आज भी वह अजायबघर मौजूद है जहां कलाकारों की कई अद्भुत कलाओं को संजोया गया है. इस अजायबघर को विरासत संग्रहालय के नाम से जाना जाता है. संग्रहालय में सबसे खास है विक्की भट्ट (Vicky Bhatt) द्वारा बनाई गई दो विशालकाय कठपुतलियां (puppet ). आमतौर पर कठपुतलियां डेढ़ से दो फीट तक की होती हैं. लेकिन विरासत संग्रहालय में मौजूद कठपुतलियां अपने कद से आगंतुकों को अचंभित कर देती हैं.

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
विशालकाय कठपुतलियों का संग्रह

विशाल कठपुतलियों का जोड़ा है अनोखा

यहां रखा विशाल कठपुतलियों का जोड़ा राजस्थान की लोकप्रिय कठपुतली कला का अनूठा उदाहरण है. लोक मान्यता है कि इनसे बड़ी कठपुतलियां दुनिया में कहीं भी नहीं हैं. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत (Devendra Kumar Bhagat) के अनुसार कठपुतली का खेल महाराष्ट्र से आया है. मराठी कलाकार कपड़े से महिला-पुरुष कठपुतलियां बनाते थे और आभूषणों से उन्हें सजाते थे. वे कठपुतलियों को आड़ लगाकर पीछे से संचालित करते थे.

समय के साथ कठपुतली कला विविध आयाम से होकर गुजरी. जयपुर शहर में टप्पे बाजी और गाली बाजी की परंपरा भी चली. तब शहर में हुनरमंद लोगों को राजाओं ने खुश होकर जागीरें दीं. इन परंपरागत कलाओं के जरिये कठपुतली के खेल को लोक कलाकारों ने वीर गाथाओं से जोड़कर विख्यात कर दिया. कठपुतलियों के माध्यम से वीर योद्धाओं की कथाएं प्रस्तुत की जातीं और उन्हें बहुत पसंद भी किया जाने लगा.

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
विश्व विरासत की एक विरासत यह भी

राजस्थान का कठपुतलियों से विशेष नाता रहा. आज भी जयपुर के अनेक पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कठपुतली का खेल दिखाया जाता है. जयपुर शहर में कठपुतली कलाकारों का पूरी बस्ती बसी हुई है. भाट जाति के अधिकांश कठपुतली कलाकार शहर के कठपुतली नगर में रहते हैं.

पढ़ें- Special : बीकानेर शहर खो रहा अपनी ऐतिहासिक पहचान...हजार हवेलियों के शहर में ढाई सौ हवेलियां भी नहीं बची

2017 में संग्रहालय को नाम दिया विरासत संग्रहालय

विरासत संग्रहालय के अधीक्षक राकेश छोलक (Rakesh chholak) के अनुसार 2017 में राज्य सरकार ने इस भवन को एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित करने का निर्णय लिया था. इसे विरासत संग्रहालय के रूप में नई पहचान मिली. इसका उद्देश्य राजस्थान की विरासत को विभिन्न प्रकार के संग्रह के माध्यम से प्रदर्शित करना है. इसमें वस्त्र, आभूषण, रत्न, पच्चीकारी कार्य, चित्रकला, मृदभाण्ड आदि कलाएं शामिल हैं. इसके अलावा भारत के विभिन्न क्षेत्रों की स्वतंत्र कलाओं को भी यहां प्रदर्शित किया गया है. या यूं कहें कि एक ही छत के नीचे राजस्थानी कला और शिल्प के अद्भुत नमूने यहां देखने को मिल सकते हैं.

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
राजस्थान के परिधान का संग्रह

8 दीर्घाओं में प्रदर्शित हैं राज्य-देश-दुनिया के रंग

वर्तमान में इस संग्रहालय में 8 सक्रिय दीर्घाएं हैं. जिन्हें भारत के कला और संस्कृति के परिवेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों के सुपुर्द किया गया है. बृज भसीन (Brij Bhasin) का संग्रह पश्चिम भारत, विशेष रूप से राजस्थानी ग्रामीण परिधानों के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाता है. मिच क्राईट्स (Mitch Crites) की दीर्घा में उनकी शिल्पशाला में बनाये गये बहुमुल्य पत्थर और संगमरमर की वस्तुएं शामिल हैं.

जयपुर का विरासत संग्रहालय, Virasat Museum of Jaipur
आर्ट कॉलेज परिसर में विरासत संग्रहालय

इसके अलावा भारत में रहने के दौरान उनके और उनकी पत्नी नीलू के पेंटिंग संग्रह को प्रदर्शित किया गया है. सुधीर कासलीवाल (Sudhir Kasliwal) की दीर्घा राजस्थान में आभूषण बनाने की कला के इतिहास को प्रस्तुत करती है. ओजस आर्ट दीर्घा उच्च कुशल भील कलाकारों की ओर से निर्मित आदिवासी चित्रों का जीवन्त संग्रह दर्शाती है. निर्मला रूद्रा (Nirmala Rudra) और वायु डिजाइन फॉर लिविंग (Vayu Design for Living) ने जयपुर केन्द्रीय कारागार के कैदियों की ओर से बनाई गई दरियों को प्रदर्शित किया है.

प्रसिद्ध कलाकार कृपाल सिंह शेखावत (kripal singh shekhawat) की प्रदर्शनी में उनके कला और जीवन की एक झलक देखी जा सकती है. इसके अलावा स्टेफनी डुए (Stephanie Duey) को आवंटित की गई दीर्घा एंग्लो-इंडियन इतिहास (Anglo-Indian History) और सांस्कृतिक सम्बन्धों को दर्शाती है. इस तरह राजस्थान का ये अजायबघर अब दुनियाभर की सांस्कृतिक विरासतों को अपने आप में समेटे हुए है. वाकई, इसे राजसी शौक का मदरसा-ए-हुनरी यानी हुनर की पाठशाला कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.

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