जयपुर. प्रदेश भाजपा में चल रही गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है. अब तक वसुंधरा राजे समर्थक कोटा, भरतपुर और जयपुर में ही मुखर हुए थे लेकिन अब विधानसभा के भीतर तक इस धड़ेबंदी को गुटबाजी की सियासी हवा मिल चुकी है. वसुंधरा समर्थक 20 विधायकों ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को पत्र लिखकर सदन में विधायकों के बोले जाने का समान अवसर नहीं दिए जाने, नेता प्रतिपक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष पर पक्षपात करने का आरोप लगाया है.
पत्र में भाजपा के विधायकों ने पक्षपात का आरोप लगाते हुए लिखा कि इस प्रकार का पक्षपात दूर करके सभी विधायकों को बोलने के समान अवसर दिए जाने चाहिए. लेटर में यह भी लिखा गया है कि यह तय किया गया था कि सदन में प्रस्ताव लगाने के लिए नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ प्रतिदिन 8 विधायकों के नाम देंगे. वहीं इस व्यवस्था में कुछ विधायकों को तो प्रतिदिन स्थगन प्रस्ताव लगाकर जनहित में बोलने का मौका दिया जा रहा है लेकिन अधिकतर भाजपा विधायकों को नियमित स्थगन लगाने के बाद भी बोलने का मौका नहीं मिल रहा.
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पत्र में कहा गया कि उन्हें जनता के मुद्दे उठाने का मौका नहीं मिल रहा. साथ ही यह भी मांग की गई कि नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ को ऐसी व्यवस्था के लिए निर्देशित किया जाए, जिसमें सभी विधायकों को सदन में बोलने का समान अवसर मिल सके.
इन विधायकों ने किया हस्ताक्षर
इस मामले में जो पत्र भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को भेजने की बात सामने आई है, उसमें कैलाश मेघवाल के साथ ही पूर्व मंत्री प्रताप सिंह सिघवी, नरपत सिंह राजवी और विधायक शंकर सिंह रावत सहित 20 विधायकों ने पत्र पर हस्ताक्षर किया है.
कैलाश मेघवाल ने किया स्वीकार, कहा- उपेक्षा हो रही थी तो प्रदेश अध्यक्ष का ध्यानाकर्षण के लिए पत्र लिखा
वहीं, इस मामले में जब संबंधित विधायकों से बात की गई तो फोन पर कुछ विधायकों ने सदन में अपनी उपेक्षा की बात स्वीकार की. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा के वरिष्ठ विधायक कैलाश मेघवाल ने तो सार्वजनिक रूप से यह तक कह दिया कि कई पुराने अनुभवी और वरिष्ठ विधायकों ने अपनी उपेक्षा से आहत होकर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का ध्यान इस ओर आकर्षित कराने के लिए उन्हें पत्र लिखा है.
मेघवाल ने कहा कि मैंने खुद इस पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. कैलाश मेघवाल के अनुसार कई विधायकों की ऐसी भावना थी कि विधानसभा की कार्यवाही में उनकी उपेक्षा की जा रही है और वो फील करते हैं कि विधानसभा की कार्रवाई में जिस प्रकार का महत्व उनको मिलना चाहिए उस प्रकार का महत्व नहीं मिल रहा है. मेघवाल ने कहा इस प्रकार की भावना समाप्त होना चाहिए और सदन के भीतर विधानसभा की कार्यवाही में सबको समान रूप से अवसर भी मिलना चाहिए. इसका अधिकार नेता प्रतिपक्ष और मुख्य सचेतक को होता है कि वह सब को साथ में लेकर चले.
इसलिए लगाया पक्षपात का आरोप
दरअसल, सदन के भीतर प्रतिपक्ष के 8 विधायक स्थगन सवाल लगा सकते हैं लेकिन स्थगन किसका होगा. यह तय करने का अधिकार स्पीकर के पास है. मौजूदा सत्र में स्पीकर सीपी जोशी ने जो व्यवस्था कर रखी है, उस पर भी अंदर खाते भाजपा के विधायकों ने सवाल उठाया है. स्पीकर ने प्रतिपक्ष की ओर से विधायकों की ओर से लगाए जाने वाले स्थगन प्रस्ताव में से जिन विधायकों को बोलने का मौका देना है, वो तय करने की जिम्मेदारी नेता प्रतिपक्ष और उपनेता को दी है.
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मतलब नेता प्रतिपक्ष और उप नेता आपस में चर्चा कर जो नाम स्पीकर को बताएंगे, उन्हें ही सदन में बोलने का मौका मिलेगा. यही कारण है कि भाजपा के विधायक अप्रत्यक्ष रूप से इस पत्र के जरिए पर कटारिया और राठौड़ पर पक्षपात का आरोप लगा रहे हैं.