जयपुर. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि वल्लभनगर भाजपा का गढ़ है और पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों को यहां 80 हजार से अधिक वोट मिले थे. जबकि रणधीर सिंह भिंडर कांग्रेस प्रत्याशी के साथ थे. मतलब कटारिया ने अपने बयान में यह भी साफ कर दिया कि भिंडर भले ही पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे से मिल लें, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में वे भाजपा के खिलाफ और कांग्रेस के साथ थे.
मैं जब तक जिंदा हूं वो नहीं आ सकते, यदि भिंडर ऐसा सोचते हैं तो पहले मुझे भाजपा से बाहर निकालें : नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने रणधीर सिंह भिंडर और वसुंधरा राजे के मिलने को स्वाभाविक प्रक्रिया बताया और कहा कि कोई अपने व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर बातचीत करे तो कोई गुनाह नहीं है. लेकिन उनके बीच क्या बातचीत हुई, इसके बारे में तो वसुंधरा जी ही बता सकती हैं. जितना मुझको मीडिया से जानकारी मिली और भिंडर ने मेरे बारे में जो कुछ कहा वह अलग बात है. मैं तो पार्टी के निर्णय को मानकर चलने वाला व्यक्ति हूं, लेकिन जब तक मैं जिंदा हूं वो पार्टी में नहीं आ सकते, भिंडर ऐसा सोचते हैं तो पहले वे मुझे भाजपा से बाहर निकालें और फिर आएं. क्योंकि मैं तो ऐसा कुछ नहीं सोचता. कटारिया ने कहा कि यह जरूर साफ है कि पार्टी में कोई भी निर्णय अकेला व्यक्ति नहीं ले सकता, बल्कि सामूहिक होता है. जब कभी पार्टी प्लेटफार्म पर इस संबंध में कोई चर्चा होगी तब मैं अपनी बात जरूर रखूंगा और तब जो निर्णय पार्टी का होगा उसमें शामिल रहूंगा.
रणधीर सिंह के बिना भी वल्लभनगर में मजबूत है भाजपा : ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान जब नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया से पूछा गया कि वल्लभनगर विधानसभा सीट पर बिना रणधीर सिंह भिंडर के भाजपा चुनाव नहीं जीत पाती, तब कटारिया ने कहा कि ऐसा नहीं है. भाजपा इस सीट पर आज से नहीं, बल्कि 1952 से ही मजबूत स्थिति में है. राजस्थान में भाजपा का खाता यानी तबके जनसंघ का दीपक इस सीट पर ही जला था. कटारिया ने कहा कि मैं इसके लिए 100 फीसदी विश्वास से कहता हूं कि यहां भाजपा जीतने की स्थिति में है. इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में ही 80 हजार मतों की बढ़त भाजपा को मिली थी.
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वसुंधरा को लेकर धारीवाल के बयान पर बोले कटारिया- पहले अपने घर को संभालें शांति धारीवाल : हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लेकर आए यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के बयान पर भी गुलाबचंद कटारिया ने कटाक्ष किया है. कटारिया ने कहा कि यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल पहले अपने कांग्रेस के घर को संभाल लें और दूसरों की पंचायत में न पड़ें, क्योंकि उनकी दखलअंदाजी यहां उपयोगी नहीं होगी. कटारिया ने कहा कि जिस तरह कांग्रेस की पंजाब में दुर्गति हो रही है और अब छत्तीसगढ़ में भी यही आग लग रही है, वह सबके सामने है. इसलिए पहले कांग्रेस के नेता अपनी बच्ची हुई पार्टी की जमा पूंजी संभाल लें. गौरतलब है कि धारीवाल ने भाजपा में मुख्यमंत्री के कई दावेदार होने की बात कहते हुए कहा था कि इसमें सबसे ज्यादा ऊंचाई में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हैं.
डोटासरा के संघ पर आए बयान पर बोले कटारिया- शिक्षा मंत्री शिक्षित हैं, मैं क्या बोलूं : हाल ही में पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा के आरएसएस को लेकर आए बयान पर भी गुलाबचंद कटारिया ने कहा है कि डोटासरा जैसे व्यक्ति के किसी बयान के बारे में जवाब देना भी मेरे लिए उचित नहीं है. क्योंकि वह बहुत विद्वान हैं, शिक्षा मंत्री हैं. उनसे कोई क्या मुकाबला करे. लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि संघ राष्ट्रवाद की विचारधारा पर काम कर रहा है, न की किसी चीज की प्राप्ति के लिए.
रणधीर सिंह पहले रहे भाजपा के साथ, अब कटारिया से है अदावत : जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भिंडर साल 2003 से 2008 तक भारतीय जनता पार्टी के विधायक थे. गुलाबचंद कटारिया की खिलाफत कर साल 2013 में पार्टी से अलग हो गए. तब रणधीर सिंह को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया और सिंह ने निर्दलीय जनता सेना के बैनर तले चुनावी रण में ताल ठोकी और विजयी भी रहे. तब भी रणधीर सिंह ने वसुंधरा राजे के खिलाफ कुछ नहीं बोला. कई बार खुले मंच से ही भाजपा का समर्थन किया और राजे को अपना नेता बताया.
2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी अपनी यात्रा लेकर भिंडर पहुंची और रणधीर सिंह के कार्यों की तारीफ की. इसके बावजूद बीजेपी ने रणधीर सिंह को टिकट नहीं दिया. ऐसे में रणधीर सिंह एक बार फिर जनता सेना के बैनर तले चुनावी रण में उतरे और 4000 वोटों से चुनाव हार गए. रणधीर सिंह लगातार राजनीति में सक्रिय रहे. बीते 2 साल में जनता सेना के बैनर तले रणधीर सिंह ने निगम, निकाय और पंचायत चुनाव में अपने प्रत्याशियों को उतारा और मेवाड़ भाजपा की खिलाफत जारी रखी. आपको बता दें कि रणधीर सिंह भिंडर राजघराने से आते हैं. ऐसे में उनका वल्लभनगर विधानसभा सीट के साथ ही राजपूत बाहुल्य सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव है.