जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने दुकान खाली करने से जुड़े सिविल मामले में कहा है कि यदि अदालत में अंडरटेकिंग पेश कर बाद में उसकी पालना नहीं की जाती है तो संबंधित के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में अंडरटेकिंग की पालना होने पर विपक्षी को अवमानना से डिस्चार्ज कर दिया है. जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश ईश्वर दास की अवमानना याचिका का निस्तारण करते हुए दिए.
अवमानना याचिका में कहा गया कि दुकान खाली करने से जुड़ी द्वितीय अपील में विपक्षी डॉ. हीरानंद ने 30 अक्टूबर 2019 को अदालत में अंडरटेकिंग दी थी कि वह विवादित दुकान को 14 अक्टूबर 2021 तक खाली कर देगा. इसके आधार पर अदालत ने याचिका को निस्तारित कर दिया. अवमानना याचिका में कहा गया कि विपक्षी ने अदालत में पेश अंडरटेकिंग की पालना नहीं की है. ऐसे में उसे अवमानना के लिए दंडित किया जाए. इस पर अदालत ने कहा कि अंडरटेकिंग की पालना न करना भी अवमानना की श्रेणी में आता है. अदालत ने पूर्व में विपक्षी को जमानत वारंट से तलब किया था. सुनवाई के दौरान विपक्षी ने बताया कि उसने दुकान को खाली कर दिया है. इस पर अदालत ने उसे अवमानना प्रकरण से डिस्चार्ज कर दिया है.
अदालती आदेश के बावजूद नियुक्ति नहीं देने पर गृह सचिव और डीजीपी को अवमानना नोटिस
राजस्थान हाईकोर्ट ने कांस्टेबल भर्ती-2019 में अदालती आदेश के बावजूद अभ्यर्थी को नियुक्ति नहीं देने पर गृह सचिव, कार्मिक सचिव, डीजीपी और कमांडेंट 10वीं बटालियन, बीकानेर को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. जस्टिस सुदेश बंसल ने यह आदेश रामेश्वर मीणा की अवमानना याचिका पर दिए.
याचिका में अधिवक्ता राम प्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि भर्ती की चयन प्रक्रिया के दौरान याचिकाकर्ता अभ्यर्थी के सीने की नाप गलत लेते हुए चयन से बाहर कर दिया था. हाईकोर्ट के आदेश पर उसकी पुन: नाप ली गई, जिसमें सही नाप आने पर अदालत ने 11 अगस्त 2021 को आदेश जारी कर याचिकाकर्ता अभ्यर्थी को नियुक्ति देने को कहा था. अवमानना याचिका में कहा गया कि अदालती आदेश होने के बावजूद याचिकाकर्ता को अब तक नियुक्ति नहीं दी गई. ऐसे में दोषी अधिकारियों पर अवमानना की कार्रवाई की जाए, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.
बंदरों के आतंक से बचाने के लिए निगम करे कार्रवाई
राजस्थान हाइकोर्ट ने नगर निगम को आदेश दिए हैं कि वह उत्पाती बंदरों की समस्या के संबंध में राज्य सरकार की निर्देशन में उचित कदम उठाए. वहीं यदि उचित समय में निगम या सरकार कोई कदम नहीं उठाती है तो याचिकाकर्ता उचित मंच पर विधि अनुसार कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र रहेगा. जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और न्यायाधीश बीरेन्द्र कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश आफताब की जनहित याचिका पर दिए.
याचिका में कहा गया कि नगर निगम शहर के उत्पाती बंदरों को पकड़ने में उदासीन बना हुआ है, जिसके चलते बंदर आए दिए आमजन को घायल कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें पकड़ कर तत्काल सवाई माधोपुर के जंगल में छोड़ जाए. इसके अलावा उनकी बढ़ती संख्या रोकने के लिए बंध्याकरण करने के निर्देश दिए जाए और इनकी नियमित स्वास्थ्य जांच कराई जाए. याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की पालना में प्रदेश के हर जिले में पशु बोर्ड गठित किया जाए.
वहीं, उत्पाती बंदरों को छोड़ने वाले स्थानों पर वृक्षारोपण किया जाए. इसके अलावा आमजन में जागरूकता फैलाई जाए कि वह बंदरों को बिना गाइडलाइन खाने-पीने की चीजे न दें. याचिका में यह भी कहा गया कि सरकार बंदर पकड़ने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही है. याचिकाकर्ता की ओर से इस संबंध में गत 15 दिसंबर को नगर निगम आयुक्त को अभ्यावेदन भी दिया गया था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने नगर निगम और राज्य सरकार को विधि अनुसार कार्रवाई करने को कहा है.