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JDA की कृषि भूमि पर 17 जून 1999 के बाद विकसित कॉलोनियों के लिए गृह निर्माण सहकारी समिति के पट्टों को कानूनी मान्यता नहीं

जेडीए क्षेत्र की कृषि भूमि पर 17 जून 1999 के बाद विकसित हुई आवासीय कॉलोनियों या कृषि भूमि पर बनाये गये भूखण्डों के नियमन/आवंटन के लिए गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जारी पट्टों की कोई कानूनी मान्यता नहीं होगी.

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Published : Sep 10, 2021, 9:21 PM IST

UDH Minister Shanti Dhariwal
UDH Minister Shanti Dhariwal

जयपुर. यूडीएच मंत्री शान्ति धारीवाल के अनुसार कृषि भूमि पर 17 जून 1999 तक विकसित हुई आवासीय कॉलोनियों के नियमन के संबंध में भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 90-ए (8) के अन्तर्गत गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जारी पट्टों को मान्यता दी गई है.

ऐसे प्रावधान पहले धारा 90-बी (1) के अन्तर्गत भी थे. लेकिन 17 जून 1999 के बाद विकसित कॉलोनियों या कृषि भूमि पर बनाये गये भूखण्डों के नियमन/आवंटन के लिए गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जारी पट्टों को कोई कानूनी मान्यता नहीं है.

धारीवाल ने बताया कि भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 90-बी (1)/90-ए (8) के प्रावधान के दृष्टिगत गृह निर्माण सहकारी समितियों से 17 जून 1999 से पूर्व जारी पट्टों की सूची रिकॉर्ड जेडीए ने 2001 तक जमा करा लिया गया था. जेडीए की ओर से ऐसे भूखण्डधारी सदस्यों की सूची भी पुस्तिकाओं रूप में मुद्रित करा ली गई थी. गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जो भी रिकॉर्ड उस समय तक संधारित किया गया था, उसे पूर्णतया सदस्यता सूची के साथ जेडीए में जमा कराया गया था.

उसमें से यदि पट्टे अभी तक जारी नहीं किये गये हैं, तो वो ही रिकॉर्ड मान्य होगा जो जेडीए की ओर से मुद्रित बुकलेट में शामिल हैं. उसके बाद यदि किसी गृह निर्माण सहकारी समिति की ओर से कोई रिकॉर्ड अब प्रस्तुत किया जाता है, तो वो विधि मान्य नहीं है और उसे कोई प्रमाण नहीं माना जा सकता.

उन्होंने स्पष्ट किया कि गृह निर्माण सहकारी समितियों की केवल उसी सदस्यता सूची और पट्टों को मान्यता दी जाएगी, जो जयपुर विकास प्राधिकरण में 2001 तक प्रस्तुत किये जा चुके हैं. जिनका पुस्तिकाकरण हो चुका है. यदि गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जेडीए में प्रस्तुत सूची के बाद भूखण्डधारियों की ओर से अपने भूखण्ड का बेचान किया गया है, या विरासत के आधार पर नाम हस्तान्तरण हुआ है, ऐसे मामलों में जेडीए नाम हस्तान्तरण की मान्यता देगा.

यदि कोई आवासीय कॉलोनी 17 जून 1999 के बाद बिना अनुमति के विकसित हो गई है, तो ऐसी कॉलोनियों में गृह निर्माण सहकारी समितियों के रिकॉर्ड के आधार पर नियमन नहीं किया जाएगा. साथ ही उनकी ओर से जारी किये गये पट्टे जो 17 जून 1999 के पहले जारी कर दर्शाये गये हैं, उन्हें वास्तविकता में वर्तमान में बैक डेट में जारी किये गये मानकर विधि मान्य नहीं माने जाएंगे. ऐसे भूखण्डधारियों ने यदि भूखण्डों पर आवास या आंशिक निर्माण, चारदीवारी का निर्माण कर लिया है और उस पर भूखण्डधारी का कब्जा है तो वे राजस्थान टाउनशिप पॉलिसी के तहत ले-आउट के साथ आवेदन कर सकते हैं.

पढ़ें- जयपुरः प्रतापगढ़ सभापति राम कन्या गुर्जर ने भाजपा को छोड़ थामा कांग्रेस का हाथ...डोटासरा ने दिलाई सदस्यता

जयपुर विकास प्राधिकरण भूखण्डों का सर्वे करवाकर भूखण्डधारियों की सूचियां तैयार कर सर्वे के आधार पर आवंटन, नियमन की कार्रवाई करेगा. इसके लिए भूखण्डधारी को सबूत के रूप में भूखण्ड पर किये गये निर्माण संबंधी कोई एक सबूत दस्तावेज कब्जे की पुष्टि करने के रूप प्रस्तुत करना होगा. जिसमें बिजली/पानी/टेलीफोन बिल, पासपोर्ट, ड्राईविंग लाईसेन्स, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक/डाकघर/ किसान पास बुक, सम्पति दस्तावेज जैसे रजिस्टर्ड विक्रय पत्र/मुख्तयारनामा/इकरारनामा/वसीयतनामा, पेंशन दस्तावेज नगर पालिका/ विधानसभा चुनाव के मतदाता पहचान पत्र, प्रार्थी के पास उपलब्ध कॉलोनी के ले-आउट प्लान जिसमें विद्यमान भूखण्ड मय निर्मित भवन/ निवाई इकाई (निवास सहित) / निवास रहित, रिक्त भूखण्ड (मय चार दिवारी) की सूची मय भूखण्ड स्वामी के नाम, नागरिक कल्याण एसोसिएशन/ विकास समिति से भू-स्वामीयों की सूची, आधार कार्ड/वोटर कार्ड, जयपुर विकास प्राधिकरण/ नगरीय निकाय से जारी नाम हस्तान्तरण आदेश, भूखण्डधारी का भूखण्ड स्वामित्व/कब्जे संबंधित अन्य दस्तावेज, भूखण्ड पर भवन निर्माण आवेदन/इजाजत की प्रतिलिपि, निवास स्थान पर पूर्व की प्राप्त डाक और निकाय या किसी राजकीय विभाग या उपक्रम या न्यायालय का नोटिस या फिर अधिकारिक दस्तावेज जिसमें प्रश्नगत भूमि और स्वामित्व को अंकित किया गया है, उन्हें शामिल किया गया है.

जयपुर विकास प्राधिकरण किसी कॉलोनी के भूखण्डधारियों के आवेदन करने पर राज्य स्तरीय समाचार पत्र के स्थानीय संस्करण में विज्ञप्ति जारी कर सभी भूखण्डधारियों को आवेदन देने और अपने दस्तावेज पेश करने का मौका देगा. पृथ्वीराज नगर योजना और निजी विकासकर्ता की ओर से सृजित योजनाओं के बारें में अलग से आदेश जारी किये जायेंगे.

जयपुर. यूडीएच मंत्री शान्ति धारीवाल के अनुसार कृषि भूमि पर 17 जून 1999 तक विकसित हुई आवासीय कॉलोनियों के नियमन के संबंध में भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 90-ए (8) के अन्तर्गत गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जारी पट्टों को मान्यता दी गई है.

ऐसे प्रावधान पहले धारा 90-बी (1) के अन्तर्गत भी थे. लेकिन 17 जून 1999 के बाद विकसित कॉलोनियों या कृषि भूमि पर बनाये गये भूखण्डों के नियमन/आवंटन के लिए गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जारी पट्टों को कोई कानूनी मान्यता नहीं है.

धारीवाल ने बताया कि भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 90-बी (1)/90-ए (8) के प्रावधान के दृष्टिगत गृह निर्माण सहकारी समितियों से 17 जून 1999 से पूर्व जारी पट्टों की सूची रिकॉर्ड जेडीए ने 2001 तक जमा करा लिया गया था. जेडीए की ओर से ऐसे भूखण्डधारी सदस्यों की सूची भी पुस्तिकाओं रूप में मुद्रित करा ली गई थी. गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जो भी रिकॉर्ड उस समय तक संधारित किया गया था, उसे पूर्णतया सदस्यता सूची के साथ जेडीए में जमा कराया गया था.

उसमें से यदि पट्टे अभी तक जारी नहीं किये गये हैं, तो वो ही रिकॉर्ड मान्य होगा जो जेडीए की ओर से मुद्रित बुकलेट में शामिल हैं. उसके बाद यदि किसी गृह निर्माण सहकारी समिति की ओर से कोई रिकॉर्ड अब प्रस्तुत किया जाता है, तो वो विधि मान्य नहीं है और उसे कोई प्रमाण नहीं माना जा सकता.

उन्होंने स्पष्ट किया कि गृह निर्माण सहकारी समितियों की केवल उसी सदस्यता सूची और पट्टों को मान्यता दी जाएगी, जो जयपुर विकास प्राधिकरण में 2001 तक प्रस्तुत किये जा चुके हैं. जिनका पुस्तिकाकरण हो चुका है. यदि गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से जेडीए में प्रस्तुत सूची के बाद भूखण्डधारियों की ओर से अपने भूखण्ड का बेचान किया गया है, या विरासत के आधार पर नाम हस्तान्तरण हुआ है, ऐसे मामलों में जेडीए नाम हस्तान्तरण की मान्यता देगा.

यदि कोई आवासीय कॉलोनी 17 जून 1999 के बाद बिना अनुमति के विकसित हो गई है, तो ऐसी कॉलोनियों में गृह निर्माण सहकारी समितियों के रिकॉर्ड के आधार पर नियमन नहीं किया जाएगा. साथ ही उनकी ओर से जारी किये गये पट्टे जो 17 जून 1999 के पहले जारी कर दर्शाये गये हैं, उन्हें वास्तविकता में वर्तमान में बैक डेट में जारी किये गये मानकर विधि मान्य नहीं माने जाएंगे. ऐसे भूखण्डधारियों ने यदि भूखण्डों पर आवास या आंशिक निर्माण, चारदीवारी का निर्माण कर लिया है और उस पर भूखण्डधारी का कब्जा है तो वे राजस्थान टाउनशिप पॉलिसी के तहत ले-आउट के साथ आवेदन कर सकते हैं.

पढ़ें- जयपुरः प्रतापगढ़ सभापति राम कन्या गुर्जर ने भाजपा को छोड़ थामा कांग्रेस का हाथ...डोटासरा ने दिलाई सदस्यता

जयपुर विकास प्राधिकरण भूखण्डों का सर्वे करवाकर भूखण्डधारियों की सूचियां तैयार कर सर्वे के आधार पर आवंटन, नियमन की कार्रवाई करेगा. इसके लिए भूखण्डधारी को सबूत के रूप में भूखण्ड पर किये गये निर्माण संबंधी कोई एक सबूत दस्तावेज कब्जे की पुष्टि करने के रूप प्रस्तुत करना होगा. जिसमें बिजली/पानी/टेलीफोन बिल, पासपोर्ट, ड्राईविंग लाईसेन्स, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक/डाकघर/ किसान पास बुक, सम्पति दस्तावेज जैसे रजिस्टर्ड विक्रय पत्र/मुख्तयारनामा/इकरारनामा/वसीयतनामा, पेंशन दस्तावेज नगर पालिका/ विधानसभा चुनाव के मतदाता पहचान पत्र, प्रार्थी के पास उपलब्ध कॉलोनी के ले-आउट प्लान जिसमें विद्यमान भूखण्ड मय निर्मित भवन/ निवाई इकाई (निवास सहित) / निवास रहित, रिक्त भूखण्ड (मय चार दिवारी) की सूची मय भूखण्ड स्वामी के नाम, नागरिक कल्याण एसोसिएशन/ विकास समिति से भू-स्वामीयों की सूची, आधार कार्ड/वोटर कार्ड, जयपुर विकास प्राधिकरण/ नगरीय निकाय से जारी नाम हस्तान्तरण आदेश, भूखण्डधारी का भूखण्ड स्वामित्व/कब्जे संबंधित अन्य दस्तावेज, भूखण्ड पर भवन निर्माण आवेदन/इजाजत की प्रतिलिपि, निवास स्थान पर पूर्व की प्राप्त डाक और निकाय या किसी राजकीय विभाग या उपक्रम या न्यायालय का नोटिस या फिर अधिकारिक दस्तावेज जिसमें प्रश्नगत भूमि और स्वामित्व को अंकित किया गया है, उन्हें शामिल किया गया है.

जयपुर विकास प्राधिकरण किसी कॉलोनी के भूखण्डधारियों के आवेदन करने पर राज्य स्तरीय समाचार पत्र के स्थानीय संस्करण में विज्ञप्ति जारी कर सभी भूखण्डधारियों को आवेदन देने और अपने दस्तावेज पेश करने का मौका देगा. पृथ्वीराज नगर योजना और निजी विकासकर्ता की ओर से सृजित योजनाओं के बारें में अलग से आदेश जारी किये जायेंगे.

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