जयपुर. राजस्थान विधानसभा में शनिवार को राष्ट्रमंडल संसदीय संघ राजस्थान शाखा के तत्वावधान में 'संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत यानि दल बदल में अध्यक्ष की भूमिका के संबंध में' एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया. राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने सेमिनार का उद्घाटन किया.
रहेंगे पार्टी के सदस्य
राज्यसभा उपसभापति हरिवंश ने कहा कि अगर पार्टी के व्हिप के मुताबिक कोई सदस्य वोट नहीं करता है, तो उसकी सदस्यता नहीं रह सकती. अगर किसी सदस्य की मूल पार्टी दूसरे दल से विलय कर लेती है, तो उसकी सदस्यता खत्म नहीं होगी और वो नई पार्टी के सदस्य रहेंगे.
विफलता का सबसे बड़ा प्रतीक
पहले एक तिहाई स्पिलिट होने पर विलय माना जाता था. फिर दो तिहाई का आया, लेकिन बाद में मर्जर का प्रस्ताव आया. लॉ कमीशन ने 170 वीं रिपोर्ट में उल्लेख भी किया है. हरिवंश ने निशाना साधते हुए कहा कि दल बदल कानून के बाद इसकी विफलता का सबसे बड़ा प्रतीक भी मौजूद है. वहीं एक राज्य में चुनाव हुए तब 2014 में 119 में से 63 सीटें उस एक पार्टी को मिली थीं. लेकिन उसके 5 साल बाद उस रूलिंग पार्टी के पास बिना चुनाव के 27 अतिरिक्त विधायक आ गए. इस मामले में 26 विधायकों ने दल-बदल किया.
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गम्भीरता से विचार करना चाहिए
हरिवंश ने कहा कि ऐसे मामलों को न्यायपालिका में दिए जाने की जरूरत नहीं है. बल्कि इस महारोग के लिए समाधान का रास्ता क्या हो? इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए. हरिवंश ने कहा राजनीति में इथिक्स को बनाये रखना है तो इस दल बदल को बंद करना जरूरी है. उन्होंने पुराने बात बताते हुए कहा एक दिन में पांच-पांच बार पार्टियां बदलने के भी उदाहरण है. लोकतंत्र में इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए,क्योंकि जनप्रतिनिधियों को इस कदर उच्छृंखलता की छूट भी गलत है.उन्होंने कहा दल-बदल के मामलों में फैसले की समय सीमा भी तय होनी चाहिए.
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निर्वाचन आयोग ने रखी राय
ऐसा माना जाता है कि एक फैसले को नजीर माना जाएगा. लेकिन अलग-अलग मामलों में अलग-अलग स्पीकर ने अलग फैसले दिए हैं. जिनसे कन्फ्यूजन भी पैदा हुआ है. कई बार किसी स्वायत्त संस्था, ट्रिब्यूनल या तीसरी पार्टी को इस मामले में फैसले का अधिकार देने की पैरवी की जाती है. निर्वाचन आयोग ने भी इस बारे में अपनी राय रखी है.
निर्वाचन आयोग के सुझाव
उनका कहना है कि निर्वाचन आयोग के सुझाव को ऐसे फैसलों में तरजीह दी जानी चाहिए. राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष इसे तय करें, बल्कि स्पीकर के फैसले के लिए समय सीमा तय किया जाना जरूरी है. हरिवंश ने कहा राज्यसभा में भी दो डिफेक्शन हुए हैं. दोनों की शिकायतें आई. चेयरमैन ने तीन महीने में फैसला दिया. लेकिन एक सज्जन की याचिका पर पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वह भी रहेगा और वेतन भी मिलेगा. जिसके बाद में फैसला किया कि वेतन नहीं मिलेगा.तब से अब तक फैसला अटका पड़ा है वह सीट खाली है उस सीट पर कोई नहीं है.
दल बदल कानून पारित हुआ
हरिवंश ने कहा 2017 से 2020 हो गया है. एक स्टेट से वह सीट अनरिप्रेजेंटेड है. यह चिन्ता का विषय है. 1985 में जब दल बदल कानून पारित हुआ तब कहा गया कि स्पीकर जल्द निर्णय करें हम यह अधिकार दे रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला दिया. हाल यह है कि स्पीकर ही संसदीय लोकतंत्र प्रणाली का सबसे बहेतर और विश्वसनीय प्रहरी है. हमें उसे मजबूत करने की जरूरत है.