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बिरला मंदिर चौराहे पर हुए हादसे में पुलिस की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में, कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर को सौंपी जांच

जयपुर के बिरला मंदिर चौराहे पर ऑडी कार की टक्कर से स्कूटी सवार की मौत के मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आ गई है. इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने पुलिस कमिश्नर को जांच सौंपी है...

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Published : Jul 26, 2019, 9:36 PM IST

बिरला मंदिर चौराहे पर हुए हादसे में पुलिस की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में.

जयपुर . बिरला मंदिर चौराहे पर ऑडी की टक्कर से स्कूटी सवार की मौत के मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली संदेह के दायरे में आ गई है. वहीं जिला एवं सेशन न्यायालय ने भी मामले में पुलिस कमिश्नर को जांच सौंपी है.

अदालत ने कहा है कि पुलिस कमिश्नर जांच करें कि आरोपी को पहले जमानत पर छोडा गया और बाद में अदालत की अनुमति के बिना जमानत निरस्त कर गिरफ्तार किया गया. वहीं इसकी जानकारी मूल रोजनामचे में होने के बाद भी केस डायरी में नहीं लिखी गई. इसके साथ ही अदालत ने आरोपी सिद्वार्थ शर्मा को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं.

प्रार्थना पत्र में अधिवक्ता अशोक ठकराल ने अदालत को बताया कि गत 19 जुलाई को हुई इस दुर्घटना के बाद पुलिस ने आरोपी को 104 एमजी शराब पीना बताया, लेकिन उसके खून व यूरीन की जांच नहीं की गई. वहीं पुलिस की ओर से सुबह 9 बजकर 56 मिनट पर रोजनामचा लिखा गया. जिसमें मामले में दर्ज एफआईआर का नंबर तक लिखा गया.

जबकि यह एफआईआर सवा चार घंटे बाद दोपहर दो बजकर 14 मिनट पर लिखी गई. वहीं इस रोजनामचे के छह पेज हाथ से सिर्फ छह मिनट में ही लिख दिए गए. जिससे साबित है कि रोजनामचा बदला गया है. इसके अलावा पुलिस ने पहले आरोपी को गिरफ्तार कर पांच हजार रुपए के जमानत-मुचलके पर रिहा कर दिया. वहीं बाद में उसकी जमानत निरस्त कर वापस गिरफ्तार कर लिया.

जबकि जमानत निरस्त करने का अधिकार सिर्फ अदालत को है. इसके साथ ही पुलिस ने पूर्व में दी गई जमानत का केस डायरी में कोई हवाला ही नहीं दिया. जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने आरोपी को जमानत देते हुए मामले में पुलिस कमिश्नर को जांच के आदेश दिए हैं.

जयपुर . बिरला मंदिर चौराहे पर ऑडी की टक्कर से स्कूटी सवार की मौत के मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली संदेह के दायरे में आ गई है. वहीं जिला एवं सेशन न्यायालय ने भी मामले में पुलिस कमिश्नर को जांच सौंपी है.

अदालत ने कहा है कि पुलिस कमिश्नर जांच करें कि आरोपी को पहले जमानत पर छोडा गया और बाद में अदालत की अनुमति के बिना जमानत निरस्त कर गिरफ्तार किया गया. वहीं इसकी जानकारी मूल रोजनामचे में होने के बाद भी केस डायरी में नहीं लिखी गई. इसके साथ ही अदालत ने आरोपी सिद्वार्थ शर्मा को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं.

प्रार्थना पत्र में अधिवक्ता अशोक ठकराल ने अदालत को बताया कि गत 19 जुलाई को हुई इस दुर्घटना के बाद पुलिस ने आरोपी को 104 एमजी शराब पीना बताया, लेकिन उसके खून व यूरीन की जांच नहीं की गई. वहीं पुलिस की ओर से सुबह 9 बजकर 56 मिनट पर रोजनामचा लिखा गया. जिसमें मामले में दर्ज एफआईआर का नंबर तक लिखा गया.

जबकि यह एफआईआर सवा चार घंटे बाद दोपहर दो बजकर 14 मिनट पर लिखी गई. वहीं इस रोजनामचे के छह पेज हाथ से सिर्फ छह मिनट में ही लिख दिए गए. जिससे साबित है कि रोजनामचा बदला गया है. इसके अलावा पुलिस ने पहले आरोपी को गिरफ्तार कर पांच हजार रुपए के जमानत-मुचलके पर रिहा कर दिया. वहीं बाद में उसकी जमानत निरस्त कर वापस गिरफ्तार कर लिया.

जबकि जमानत निरस्त करने का अधिकार सिर्फ अदालत को है. इसके साथ ही पुलिस ने पूर्व में दी गई जमानत का केस डायरी में कोई हवाला ही नहीं दिया. जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने आरोपी को जमानत देते हुए मामले में पुलिस कमिश्नर को जांच के आदेश दिए हैं.

Intro:जयपुर। बिरला मंदिर चोराहे पर सुबह ऑडी की टक्कर से स्कूटी सवार की मौत के मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली संदेह के दायरे में आ गई है। वहीं अदालत ने भी मामले में पुलिस कमिश्नर को जांच सौंपी है। अदालत ने कहा है कि पुलिस कमिश्नर जांच करें कि आरोपी को पहले जमानत पर छोडा गया और बाद में अदालत की अनुमति के बिना जमानत निरस्त कर गिरफ्तार किया गया। वहीं इसकी जानकारी मूल रोजनामचे में होने के बाद भी केस डायरी में नहीं लिखी गई। इसके साथ ही अदालत ने आरोपी सिद्वार्थ शर्मा को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं। Body:प्रार्थना पत्र में अधिवक्ता अशोक ठकराल ने अदालत को बताया कि गत 19 जुलाई को हुई इस दुर्घटना के बाद पुलिस ने आरोपी को 104 एमजी शराब पीना बताया, लेकिन उसके खून व यूरिन की जांच नहीं की गई। वहीं पुलिस की ओर से सुबह नौ बजकर 56 मिनट पर रोजनामचा लिखा गया। जिसमें मामले में दर्ज एफआईआर का नंबर तक लिखा गया। जबकि यह एफआईआर सवा चार घंटे बाद दोपहर दो बजकर 14 मिनट पर लिखी गई। वहीं इस रोजनामचे के छह पेज हाथ से सिर्फ छह मिनट में ही लिख दिए गए। जिससे साबित है कि रोजनामचा बदला गया है। इसके अलावा पुलिस ने पहले आरोपी को गिरफ्तार कर पांच हजार रुपए के जमानत-मुचलके पर रिहा कर दिया। वहीं बाद में उसकी जमानत निरस्त कर वापस गिरफ्तार कर लिया। जबकि जमानत निरस्त करने का अधिकार सिर्फ अदालत को है। इसके साथ ही पुलिस ने पूर्व में दी गई जमानत का केस डायरी में कोई हवाला ही नहीं दिया। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने अदालत ने आरोपी को जमानत देते हुए मामले में पुलिस कमिश्नर को जांच के आदेश दिए हैं। 
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