जयपुर. प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर से लगातार प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए प्रयास किया जा रहा है. जिसके अंतर्गत राजधानी जयपुर सहित प्रदेश भर के अंतर्गत प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने सरस दूध की थैलियों के निस्तारण की योजना बनाई थी, लेकिन यह योजना एक साल बाद भी फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई है. जिला दुग्ध संघों की अरुचि से योजना महज कागजों में सिमट कर रह गई है.
जयपुर डेयरी में भी योजना अब दम तोड़ चुकी है. दरअसल, प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने प्लास्टिक मुक्त पर्यावरण संरक्षण के तहत करीब 1 साल पहले दूध की थैलियों के निस्तारण के लिए राजस्थान क-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन को एक्शन प्लान किए आदेश दिए थे. जिसमें राज्य भर के 21 जिला संघों को दूध, छाछ आदि की थैलियों के निस्तारण के लिए प्लान बनाने को कहा गया था कि थैलियों का निस्तारण हो सके.
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वहीं उसके पांच महीने बाद भी जिला संघों ने इस में कोई रुचि नहीं दिखाई तो प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने समस्त जिला संघों को इस संबंध में कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था. इस बीच बोर्ड ने मार्च तक 30 फीसदी को निस्तारण के आदेश दिए थे लेकिन अब प्रक्रिया ठंडे बस्ते में जा चुकी है और ना ही प्रदूषण नियंत्रण मंडल और ना ही डेयरी प्रशासन दोनों ही अब इसमें रुचि नहीं दिखा रहे हैं.
3 स्टेज में हैं निस्तारण का प्रोसेस
बता दें कि इस प्रक्रिया के अंतर्गत प्रत्येक बूथ पर उपभोक्ताओं से खाली थैलियां वापस लेना और प्रत्येक खाली थैली की एक निश्चित राशि देना तय हुआ था. जिससे उपभोक्ता थैलियों तो फेकने के बजाय वापस कलेक्शन सेंटर पर जमा कराएं. डेयरी बूथ पर दूध देने के लिए आने वाली गाड़ियों से ही इन थैलियों को वापस डेयरी पहुंचाना और हर डेयरी में ऐसा प्लांट लगाना है. किसी अन्य तकनीक से थैलियों के निस्तारण किया जाना तय किया गया था, लेकिन अब सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया है.
परिवहन पर अटकी निस्तारण की प्रक्रिया
जयपुर डेयरी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जिला दुग्ध संघों में इस प्रक्रिया के अटकने की वजह परिवहन है क्योंकि खाली थैलियों को सप्लाई करने वाले को ही वापस लाना होता है. इसके लिए बूथों पर कलेक्शन सेंटर बनाए जाने थे और वहां डस्टबिन भी रखा जाना था. इसमें दिक्कत आने के चलते प्रक्रिया धीमी पड़ गई. जयपुर डेयरी ने परिवहन के लिए निगम को पत्र लिखा, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया, इसलिए प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है.