जयपुर. कोरोना महामारी के संकट काल में लॉकडाउन लगा तो कईयों की रोजी-रोटी छिन गई. जयपुर के हरीश सैनी और रवि वर्मा के साथ भी ऐसा ही हुआ. दोनों दोस्तों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, लेकिन इन दोनों दोस्तों ने हिम्मत नहीं हारी, दोनों को सजावटी लैम्प बनाने का हुनर आता था. बस, दीपावली पर्व को देखते हुए हरीश और रवि ने फुटपाथ पर ही स्वरोजगार शुरू कर दिया.
नौकरी जाने के बाद भी ये दोनों दोस्त मायूस नहीं हुए, हिम्मत नहीं हारी. बल्कि अपने काम में जज्बे से जुटे और अब अंधेरी रातों में फुटपाथ पर मेहनत कर इस दिवाली घरों को खूबसूरत लैम्प से रोशन करने की कवायद में जुटे हैं.
काम छोटा, हौसला बड़ा...
काम भले फुटपाथ का हो, नौकरीपेशा युवा शायद सड़क किनारे पटरी पर बैठकर रोजगार करने में संकोच करें, लेकिन इन युवाओं ने दिखाया कि कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता. बल्कि इंसान की पहचान उसके काम से होती है. अपने बीते कल को भूलकर हरीश और रवि नए सवेरे में स्वरोजगार शुरू कर चुके हैं. लोकल के लिए वॉकल अभियान से प्रेरित होकर शुरू किए गए इस काम की सराहना हर कोई कर रहा है और इन युवाओं का हौसला बढ़ा रहा है.
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लॉकडाउन में नौकरी गई, लेकिन हौसला नहीं...
फुटपाथ पर बैठकर काम करना इनके लिए भी सहज नहीं था, लेकिन नौकरी जाने के बाद इनका परिवार तंगी से जूझने लगा था. दोनों का ताल्लुक सामान्य निर्धन परिवारों से है. आफत आन पड़ी तो दोनों ने फुटपाथ पर तंबू लगाकर काम शुरू कर दिया. दीपावली जैसे बड़े त्यौहार को देखते हुए इन्होंने स्टाइलिश देसी लैम्प लाइटें बनाना शुरू किया. शाम ढलते ही बिक्री के लिए सड़क का ये कोना जगमगाता नजर आता है. जयपुर के चित्रकूट इलाके में अक्षरधाम मंदिर रोड के फुटपाथ पर ठंडी रातों में रवि और हरीश देसी लैम्प बनाते है और फिर अगले दिन इनको बेचने में जुट जाते है. हालांकि इससे पहले भी वो लैम्प का काम कर चुके हैं. प्राइवेट नौकरी लगने के बाद घर के हालात कुछ सामान्य हुए थे. लेकिन लॉकडाउन ने एक बार फिर संकट पैदा कर दिया.
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बहुत खूबसूरत और किफायती लैम्प...
हरीश और रवि के स्टाइलिश लैम्प की खास बात ये है कि ये पूरी तरह स्वदेशी हैं. इनमें इन्होंने किसी भी चाइनीज उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया है. बाजार में उपलब्ध अलग-अलग रंग की फाइबर शीट खरीदकर दोनों दोस्त रातभर डिजाइन काटते हैं और फिर रेम्बो, व्हाइट, यलो, पिंक, ब्लू, मल्टी कलर के स्टाइलिश लैम्प तैयार करते हैं. इन लैम्प मे ग्लास, क्रिटिकल झूमर, बोतल, फूल, घर जैसे आकार वाली सजावटी लाइटें शामिल हैं. कई लैम्प में तो संगीत भी बजता है, जिन्हें पेनड्राइव लगाकर साउंड से जोड़कर बजाया जा सकता है. रवि और हरीश की अपील है कि लोग चाइनीज को छोड़कर स्वदेशी को बढ़ावा दें तो उनका काम अच्छा चल सकता है.
इस दिवाली स्वदेशी की सीख..
शहरवासियों को भी इनके स्वदेशी स्टाइलिश लैम्प खासे पसंद आ रहे हैं. ये सस्ते हैं और वजन में हल्के हैं. साथ ही इन्हें घर में सजाना भी आसान है. बाजार में उपलब्ध रंग-बिरंगी विदेशी लाइटों के मुकाबले इनके लैम्प बेहद किफायती और खूबसूरत हैं. खरीदार भी इन युवाओं के हौसले को सलाम कर रहे हैं और इनके लैम्प खरीदने के साथ यह संकल्प भी कर रहे हैं कि इस दीपावली पर वे स्वदेशी पर जोर देंगे, ताकि स्थानीय युवाओं का कुछ भला हो सके.