जयपुर. राजस्थान में एक बार फिर गुर्जर आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है. गुर्जर संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में गुर्जर समाज अपनी मांगों को लेकर घरों से बाहर निकल आया है. पिछले दो दिनों से आंदोलनकारियों ने रेल की पटरियों पर ठिकाना जमा रखा है. जिसकी वजह से कई रेलगाड़ियों के मार्गों को डायवर्ट किया गया है. इसके साथ ही राजस्थान रोडवेज से यात्रा करने वाले यात्री भी प्रभावित हुए हैं.
हालांकि, पिछले दिनों गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति और गहलोत सरकार के बीच 14 बिंदुओं पर सहमति बनी थी, लेकिन इस वार्ता में संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला शामिल नहीं हुए थे. इस बैठक में गुर्जर नेता हिम्मत सिंह के गुट के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था, जिसमें सरकार की तरफ से कई मुद्दों पर फैसला लिया गया है.
इन मांगों पर बनी सहमति…
गुर्जरों को सरकारी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण देने पर सरकार राजी हो गई है. ये आरक्षण प्रक्रियाधीन भर्तियों में गुर्जरों को दिया जाएगा. इसके साथ ही गुर्जर आंदोलन में मारे गए तीन परिवारों के सदस्यों को सरकारी नौकरी देनी की बात कही गई है. सरकार ने MBC वर्ग के 1,252 अभ्यर्थियों को नियमित वेतन श्रृंखला से लाभ देने की बात स्वीकार कर ली है.
इसके अलावा आंदोलन के दौरान जिन लोगों पर केस दर्ज हुए थे, उनको वापस लेने की बात पर भी सरकार ने अपनी सहमति दे दी है. अब देवनारायण योजना में निर्माणाधीन 5 आवासीय विद्यालयों की कमेटी गठित की जाएगी और लबाना जाति के अलावा अन्य लोगों के लबाना जाति के जारी जाति प्रमाण-पत्रों की जांच की जएगी.
वहीं, समझौते में सरकार ने आरक्षण से संबंधित प्रावधान को 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने की बात कही है. सरकार ने बताया कि राज्य सरकार ने अति पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण से संबंधित प्रावधान को 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए भारत सरकार को 22 फरवरी 2019 और 21 अक्टूबर 2020 को पत्र लिखा है. इसके साथ ही गहलोत सरकार ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो केंद्र सरकार को एक बार फिर से इस बारे में पत्र लिखा जाएगा.
क्या है गुर्जरों की प्रमुख मांगें...
आंदोलनरत समाज की मांग है कि गुर्जरों समेत रैबारी, रायका बंजारा और गाड़िया लुहार को अति पिछड़ा वर्ग (MBC) में दिए गए 5 फीसदी आरक्षण का मामला संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किया जाए. इसके साथ ही MBC वर्ग का सरकारी भर्तियों में बैकलॉग पूरा करने और देवनारायण बोर्ड का गठन किया जाए. इसके अलावा गुर्जर आरक्षण आंदोलन में मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों को सरकारी नौकरी और लोगों के ऊपर मुकदमे वापस लिए जाएं.
गुर्जर आरक्षण, केंद्र और राज्य सरकार का मामला
दरअसल, गुर्जरों की नाराजगी के पीछे असली वजह भी यही बताई जा रही है कि गुर्जर बैकलॉग में 5 फीसदी विशेष आरक्षण की मांग कर रहे हैं. इसके साथ ही जिस तरह से मराठा आरक्षण पर हाई कोर्ट का हथौड़ा चला, उसे देखते हुए गुर्जर सतर्क हो गए हैं और MBC आरक्षण को 9वीं अनुसूची में डालने के लिए केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं.
वहीं, जानकारों का ये भी मानना है कि 5 फीसदी आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल करने की जो मांग गुर्जरों की है वो केंद्र सरकार को ही पूरी करनी है. ऐसे में केंद्र सरकार अगर गुर्जरों के लिए फैसला करती है तो फिर मराठा समेत अन्य जातियों के आरक्षण का मुद्दा भी गरमा जाएगा.
आरक्षण के लिए कब-कब हुआ गुर्जर आंदोलन
पहला- साल 2006
प्रदेश में गुर्जर आंदोलन की शुरुआत साल 2006 से हुई. गुर्जर साल 2006 में पहली बार ST में शामिल करने की मांग को लेकर करौली के हिंडौन में सड़कों और रेल की पटरियों पर उतरे थे. उस दौर की तत्कालीन भाजपा सरकार महज एक कमेटी बना सकी. तब से लेकर अब तक कई बार बड़े आंदोलन हो चुकें हैं. इस दौरान भाजपा और कांग्रेस की सरकारें रहीं, लेकिन किसी भी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी हल नहीं निकला.
दूसरा- साल 2007
राजस्थान में गुर्जर समाज ने दूसरी बार साल 2007 में आंदोलन किया था, तारीख थी 21 मई. इस आंदोलन के लिए पीपलखेड़ा पाटोली को चुना गया था. उस दौरान यहां से होकर गुजरने वाले राजमार्ग को बाधित कर जाम कर दिया गया था. इस आंदोलन के दौरान 28 लोगों की मौत हुई थी और करोड़ों रुपए की सरकारी और निजी संपत्तियों का नुकसान हुआ था.
तीसरा- साल 2008
राजस्थान में तीसरा गुर्जर आंदोलन 23 मार्च, साल 2008 को शुरू हुआ था. इस दौरान गुर्जरों ने भरतपुर के बयाना में पीलूकापुरा ट्रैक पर ट्रेनें रोकीं थीं. जिसके लिए पुलिस को फायरिंग तक करनी पड़ी थी. पुलिस की इस फायरिंग में 7 आंदोलनकारियों ने अपनी जान गंवाई थी. इन मौतों से गुस्साए गुर्जरों ने दौसा जिले के सिंकदरा चौराहे पर हाईवे को जाम कर दिया. इस दौरान भी 23 प्रदर्शनकारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. गुर्जर आंदोलन में 2008 तक मौतों का आंकड़ा 28 से बढ़कर 58 पर पहुंच गया था. वहीं, गुर्जर आरक्षण में अब तक 72 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
आंदोलन का मुख्य केंद्र पीलूकापुरा
इसके बाद साल 2010 और साल 2015 में भी गुर्जरों ने आंदोलन का बिगुल बजाया. दोनों ही बार राजस्थान के भरतपुर का पीलूकापुरा गांव आंदोलन का मुख्य केंद्र रहा. इस आंदोलन के बाद ही 5 फीसदी आरक्षण का समझौता हुआ था.
मलारना डूंगर में ट्रैक पर डाला था डेरा
8 फरवरी, साल 2018 को भी गुर्जरों ने आरक्षण के लिए आंदोलन शुरू किया था. इस दौरान गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के नेताओं ने सवाई माधोपुर के मलारना डूंगर में ट्रैक पर डेरा डाला था. जिसके बाद गहलोत सरकार ने गुर्जरों को 5 फीसदी आरक्षण देने के लिए विधानसभा में गुर्जर आरक्षण बिल पारित किया था. लेकिन, अभी तक गुर्जरों की मांगों का समाधान सरकारें नहीं कर पाई हैं.
…फिर से रेलवे पटरी ठिकाना
एक बार फिर से गुर्जर आरक्षण आंदोलन गरमा गया है. गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला से वार्ता करने के लिए सरकार तैयार है, लेकिन बैंसला सरकार से बातचीत नहीं करना चाहते हैं. पिछले दो दिनों से आंदोलनकारियों ने रेल की पटरियों पर ठिकाना जमा रखा है. जिसकी वजह के कई ट्रेनों के रूटों को डायवर्ट किया गया है. इसके साथ ही राजस्थान रोडवेज से यात्रा करने वाले यात्री भी प्रभावित हुए हैं.
इधर, कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला गुर्जर समाज के साथ अपनी सारी मांगें मंगवाने को लेकर रेल पटरी पर आंदोलनरत हैं तो वहीं दूसरी तरफ सरकार ने भी प्रदेश के 8 जिलों में रासुका लगाकर बैंसला को घेरने का चक्रव्यूह रचा है. ऐसे में देखने वाली बात ये है कि सरकार और आंदोलनकारियों के बीच इस संघर्ष को लेकर क्या हल निकलता है?