जयपुर/उज्जैन. देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में बाबा महाकाल का मंदिर ही एक ऐसा स्थान है, जहां तंत्र क्रिया से महाकाल की पूजा होती है. उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर दक्षिण मुखी होने के कारण देश में तंत्र साधना का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है, यहां अनादिकाल से ताजा मुर्दे की राख से बाबा महाकाल की भस्म आरती होती है.
मान्यता है कि, हर महाशिवरात्रि पर तांत्रिक, तंत्र क्रिया कर बाबा महाकाल को प्रसन्न करते हैं. इस बार भी उज्जैन के श्मशान में देर रात तक तंत्र क्रिया चलेगी. तंत्र क्रिया के पीछे एक लोककथा प्रचलित है, उज्जैन के साधु संत बताते है कि, यहां दूषण नाम का राक्षस रहता था, भगवान शंकर जब उसका संहार करने आए, तो राक्षस ने शंकरजी से कहा कि, वो काल है, उसे कोई नहीं मार सकता, तब भगवान शंकर ने राक्षस से कहा कि, वो महाकाल हैं और अब वो बच नहीं सकता.
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भगवान शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर दूषण को जलाकर राख कर दिया और दूषण के जलने के बाद उसकी राख को अपने शरीर पर लपेट लिया, कहा जाता है कि, दूषण की मृत्यु के बाद भूत-पिशाच बाबा महाकाल के वश में रहते हैं, यही वजह है कि, श्मशान में तांत्रिक तंत्र क्रिया कर बाबा महाकाल को प्रसन्न करते हैं, ताकि भूत पिशाचों पर वे विजय पा सकें.
उज्जैन के महाकाल मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व जिस तरह से मनाया जाता है, वो दुनिया में अलौकिक है, क्योंकि महाकाल के दर में शिव नवरात्रि नौ दिन तक मनाई जाती है, जहां अलग-अलग रूपों में भगवान शिव अपने भक्तों को दर्शन देते हैं.