जयपुर. प्रथम पूज्य गजानंद भगवान का 10 दिवसीय महोत्सव मनाया जा रहा है. इस बीच हम आपको छोटी काशी के एक ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां भगवान गणेश ने सर्प की जनेऊ धारण कर रखी है. सूर्य की पहली किरण इनके चरणों में मंगल अभिषेक करती है. शहर के सूरजपोल बाजार में स्थित श्वेत सिद्धि विनायक मन्दिर जिसमें गणपति बाल रूप में हैं. ये प्रदेश का एकमात्र ऐसा गणेश मंदिर जहां भगवान गणेश को सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता है. केवल दूध और जल का अभिषेक होता है.
प्राचीन श्वेत सिद्धि विनायक मंदिर को लेकर भक्तों की मान्यता है कि यहां हर मनोकामना पूरी होती है. मंदिर के प्रन्यासी महंत मोहनलाल शर्मा ने बताया कि जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह ने इस मंदिर को स्थापित कराया. उनकी गुरु गद्दी गलता जी थी. वहां स्नान करके यहां आकर भगवान गणेश का अभिषेक करते थे और फिर गद्दी पर बैठा करते थे. मंदिर की स्थापना पुष्य नक्षत्र में बसंत पंचमी पर की गई थी. ये पूर्व मुखी गणेश मंदिर है.
कहते हैं कि जयपुर में सूर्य की पहली किरण भगवान गणेश के चरणों में मंगल अभिषेक करती है. यहां गणेश प्रतिमा की स्थापना (Swet Siddhi Vinayak Temple in Jaipur) तांत्रिक विधि-विधान की गई थी. गणपति के पांच सर्पों का बंधेज है. गणेश जी के चारों भुजाओं में सर्पाकार मणिबंध और पैरों में पैजनी है और गणेश जी ने सर्प की ही जनेऊ धारण की हुई है. यहां राहु-केतु के प्रयोग होते हैं.
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महंत ने बताया कि भगवान गणेश और रिद्धि-सिद्धि के हाथों में सोने की कलश हैं. ये गणेश प्रतिमा तांत्रिक प्रतिमा है. यहां तंत्र का मतलब है, तत्काल फल देने वाली प्रतिमा. इस मंदिर में भगवान गणेश तत्काल भक्तों की मनोकामनाएं स्वीकार करते हैं. प्रदेश का एकमात्र मंदिर है जहां भक्त अपने हाथों से भगवान गणेश का दुग्ध अभिषेक करते हैं. यहां पर सात बुधवार आने से भक्तों को मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
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सिद्धि विनायक मंदिर में प्रदेश के हर कोने से भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. पुष्य नक्षत्र, शरद पूर्णिमा, गणेश चतुर्थी और दूसरे अवसरों पर (Ganesh Puja at Surajpole Jaipur) यहां विशेष आयोजन होता है. 25 साल पहले तांत्रिक चंद्रास्वामी के आह्वान पर यहां भी भगवान गणेश को दूध पिलाने के लिए लोगों की भीड़ लग गई थी. लोग गिलास में दूध लिए देर रात तक अपनी बारी का इंतजार करते देखे गए थे.
छोटी काशी में श्वेत सिद्धि विनायक एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान यम के मुनिम चित्रगुप्त का मंदिर स्थापित है. ऐसा माना जाता है कि ईशान कोण में इस मंदिर की स्थापना लोगों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने के लिए की गई थी. यहां दीपावली के एक दिन पहले यम चतुदर्शी पर यज्ञ का भी आयोजन होता है. वहीं, मंदिर के मध्य में राधा-कृष्ण भगवान की प्रतिमा भी स्थापित है.