जयपुर. स्वच्छता सर्वेक्षण (Swachh Survekshan survey 2022) में पूरे भारत में लगातार पहले नंबर पर रहने वाले इंदौर की कार्यप्रणाली, कचरा प्रबंधन, प्रोसेसिंग को समझने के लिए ग्रेटर नगर निगम महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर इंदौर जा पहुंची. जहां उन्होंने इंदौर नगर निगम आयुक्त प्रतिभा पाल से मुलाकात कर डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण प्रणाली, सीएंडडी वेस्ट प्लांट, एमआरएफ सेंटर और बायो सीएनजी प्लांट के बारे में जानकारी ली. हालांकि, इंदौर की कार्यप्रणाली को जयपुर में धरातल पर उतारना फिलहाल एक बड़ा चैलेंज है.
घर-घर कचरा संग्रहण प्रणाली : नगर निगम इंदौर की ओर से पूरे शहर में घर-घर कचरा संग्रहण कार्य नगर निगम के वाहनों से किया जा रहा है. इस कार्य में नगर निगम के कुल 800 छोटे-बड़े सभी प्रकार वाहन लगे हुए हैं. नगर निगम इंदौर में कुल 19 ज़ोन और 85 वार्ड हैं. प्रत्येक वाहन जियो टैगिंग और जियोफेनसिंग से मॉनिटर किया जाता है. प्रत्येक वाहन का एक रूट मैप निर्धारित है. उसको उसी रूट मैप के अनुसार कचरा संग्रहण कार्य करना होता है. यदि वो वाहन किसी स्थान पर 5 मिनट से ज्यादा रुकता है या अपने निर्धारित रूट से अलग, निर्धारित गति सीमा से तेज चलता है तो नगर निगम में स्थापित इंटीग्रेटेड कंट्रोल कमांड सेंटर पर पॉपअप शो हो जाता है.
इसकी मॉनिटरिंग इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर से प्रत्येक जोन के लिए एक एलईडी मय ऑपरेटर लगा हुआ है,जो ये निर्धारित करता है कि वाहन नियमित समय के अनुसार और निर्धारित रूट के सभी घरों से कचरा संग्रहण कार्य करें. कचरा संग्रहण में लगे हुए वाहन लगभग 800 से 1000 घरों का कचरा संग्रहण करते हैं. एक वाहन की क्षमता लगभग 500 से 600 किलो है. कचरा संग्रहण का कार्य 100 प्रतिशत सोर्स सेग्रीगेशन के आधार पर किया जाता है. इसमें 6 अलग-अलग तरह का कचरा लिया जाता है.
- सूखा कचरा
- गीला कचरा
- प्लास्टिक कचरा
- E-waste
- Domestic Bio waste
- hazard waste
प्रत्येक वाहन में 6 डस्टबिन लगे हुए हैं. नगर निगम इंदौर की ओर से प्रत्येक घर, बाजार, प्रतिष्ठान, कच्ची बस्ती, थड़ी- ठेला से एक निर्धारित यूजर चार्ज लिया जाता है. प्रत्येक वाहन को कचरा संग्रहण कर निर्धारित कचरा ट्रांसफर स्टेशन पर कचरा डंप करना होता है. वहां कुल 10 ट्रांसफर स्टेशन बने हुए हैं, इन पर गीला और सूखा कचरा अलग-अलग डंप किया जाता है. बाद में यहां से कैप्सूल के माध्यम से कचरा ट्रांसपोर्ट कर डंप साइट पर प्रोसेसिंग के लिए ले जाया जाता है. प्रत्येक कैप्सूल की क्षमता 10 से 11 टन होती है. प्रत्येक ट्रांसफर station की क्षमता लगभग 100 से 125 टन प्रति दिन है. इस कार्य पर नगर निगम का कुल खर्चा लगभग 1200 से 1300 रु प्रति टन आता है. इसमें सभी प्रकार के वाहन, डीजल, ड्राइवर, मरम्मत शामिल है.
स्वच्छता मित्र : नगर निगम इंदौर की ओर से प्रत्येक स्वच्छता मित्र को एक बीट 800 मीटर पर निर्धारित की हुई है. इसमें निर्धारित व्यक्ति को ही कार्य करना होता है. नगर निगम इंदौर में कुल 7000 स्वच्छता मित्र हैं. कचरा संग्रहण में लगे प्रत्येक वाहन के साथ एक हेल्पर की व्यवस्था की हुई है. लेकिन घरों से कचरा उपभोक्ता को खुद वाहन में डालना होता है. हेल्पर का कार्य यदि गाड़ी से कोई कचरा गिरने की स्थिति में होता है तो उसे नियमित करना, कचरा फुल होने पर कंपार्टमेंट को बंद करना, यदि कोई बच्चा या सीनियर सिटीजन कचरा लेकर आता है तो उसकी सहायता करना होता है.
कचरा संग्रहण का कार्य आवासीय क्षेत्रों में सुबह से दोपहर 12 बजे तक और दोपहर-शाम को बाजारों में किया जाता है. यदि कोई प्रतिष्ठान और बाजार जो 10:00 बजे बाद खुलते हैं, तो वो अपना कचरा निर्धारित दो डस्टबिन में ही रखते हैं और निगम का वाहन आने पर उसमें डालते हैं. ये सभी कार्य स्वास्थ्य शाखा संपादित करती है.
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C&D वेस्ट प्लांट : नगर निगम इंदौर की ओर से पीपीपी मॉडल पर डंप साइट देवगुराडिया में 100 टन प्रति दिन क्षमता का C & D वेस्ट प्लांट लगाया गया है. इस तरह के निगम क्षेत्र में कुल 4 प्लांट संचालित हैं. वर्तमान में ये प्लांट 60 से 70 टन प्रति दिन C&D वेस्ट को प्रोसेस कर रहा है. प्लांट स्थापित करने और संचालित करने का सारा खर्चा कंपनी की ओर से वहन किया जाता है. नगर निगम इंदौर ने कंपनी को एक क्रशर और शेड निर्माण करके दिया है और इसका रखरखाव कंपनी खुद करती है.
नगर निगम क्षेत्राधिकार में यदि कोई व्यक्ति या प्रतिष्ठान C&D वेस्ट जनरेट करता है, तो उसको इसकी सूचना नगर निगम को देनी होती है. बाद में प्राइवेट कंपनी के प्रतिनिधि उस व्यक्ति या प्रतिष्ठान से संपर्क करते हैं और वहां के C&D वेस्ट को उठाने के लिए निर्धारित शुल्क 700 रुपये प्रति ट्रॉली लेकर सारा वेस्ट साइट पर प्रोसेसिंग के लिए लाया जाता है. इसमें लगे सभी साधन संसाधन इनका रखरखाव, डीजल, ड्राइवर कंपनी वहन करती है. रॉयल्टी के रूप में कंपनी नगर निगम को 75 हजार प्रति महीना राजस्व देती है. नगर निगम की ओर से ये प्रावधान किया गया है कि जो भी निर्माण कार्य होंगे, उनमें 20% सामग्री C&D वेस्ट से रीसायकल प्लांट से बनी निर्माण सामग्री लेनी होगी. इस कार्य का पर्यवेक्षण अभियांत्रिकी की पर्यावरण शाखा की ओर से किया जाता है.
MRF सेंटर : नगर निगम इंदौर ने डंपसाइट देवगुराडिया में ही पीपीपी मॉडल पर एमआरएफ सेंटर भी स्थापित किया हुआ है, जिसकी क्षमता 300 टन प्रति दिन है. इस प्लांट का समस्त इंफ्रास्ट्रक्चर में मशीनरी प्राइवेट कंपनी की ओर से वहन की जाती है. ये प्लांट आधुनिक और 12 घंटे वर्किंग कंडीशन में रहता है. इस प्लांट से 13 प्रकार के कचरे को अलग-अलग किया जाता है और प्रोसेस कचरे से जो आय प्राप्त होती है, वो कंपनी की होती है. इसके बदले कंपनी नगर निगम को 1.50 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष रॉयल्टी के रूप में भुगतान करती है. सूखे कचरे को नगर निगम के ट्रांसफर स्टेशन से एमआरएफ सेंटर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर निगम इंदौर की रहती है.
BIO CNG प्लांट : नगर निगम इंदौर ने डंपसाइट देवगुराडिया में ही पीपीपी मॉडल पर BIO CNG प्लांट भी बना रखा है, जिसकी क्षमता 500 टन प्रति दिन है. इस प्लांट का सारा इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट कंपनी की ओर से वहन किया गया है. ये प्लांट पूरी तरह आधुनिक तकनीक पर आधारित है और 24 घंटे वर्किंग कंडीशन में रहता है. इस प्लांट से 1200 बसों के लिए पर्याप्त 17 हजार किलो BIO CNG और 100 टन कंपोस्ट बनता है. इससे जो आय प्राप्त होती है, वो कंपनी की होती है. इसके बदले कंपनी नगर निगम को 2.50 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष रॉयल्टी के रूप में भुगतान करती है. गीले कचरे को नगर निगम के ट्रांसफर स्टेशन से BIO CNG प्लांट तक पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर निगम इंदौर की होती है.
इंदौर नगर निगम की कार्यशैली को देखने के बाद जयपुर ग्रेटर नगर निगम की महापौर ने यहां भी जल्द डोर टू डोर कचरा संग्रहण प्रणाली को बेहतर करने, सीएंडडी वेस्ट प्लांट और बायो सीएनजी प्लांट स्थापित करने को लेकर अधिकारियों की मीटिंग करने की बात कही. साथ ही दावा किया कि मार्च में होने वाले स्वच्छता सर्वेक्षण के मद्देनजर अगले 7 दिन में स्वच्छता व्यवस्था बेहतर होगी. हालांकि ये साफ है कि जयपुर में अभी डोर टू डोर कचरा संग्रहण का काम कर रही बीवीजी कंपनी बेहतर काम नहीं कर पा रही और ना ही जयपुर में इंदौर की तर्ज पर सीएंडडी वेस्ट प्लांट और बायो सीएनजी प्लांट है. ऐसे में इस बार भी जयपुर की रैंक में सुधार हो पाएगा, ये सवाल ही बना हुआ है.