जयपुर. राजधानी में दो नगर निगम (Jaipur Municipal Corporation) होने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि शहर की सफाई-व्यवस्था में सुधार होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दो निगम होने के बाद पहली बार रैंकिंग आई. इसमें ये साबित हो गया कि नगर निगम प्रशासन सफाई व्यवस्था को लेकर गंभीर नहीं है. ग्रेटर नगर निगम (Nagar Nigam Greater Jaipur) में तो पिछले एक साल में सियासत हावी रही.
वहीं, हेरिटेज निगम (Nagar Nigam Heritage Jaipur) को व्यवस्थाओं में सुधार के लिए काफी कुछ करना है. क्योंकि इस बार स्वच्छ भारत मिशन 2.0 में शहर के दोनों निगमों के सामने अपनी पुरानी खामियों को दूर करते हुए नई चुनौतियां भी शामिल होंगी और समय भी ज्यादा नहीं बचा.
सर्विस लेवल प्रोग्रेस - 3000
सेग्रीगेशन कलेक्शन | 900 |
सस्टेनेबल सैनिटेशन | 900 |
प्रोसेसिंग एंड डिस्पोजल | 1200 |
सर्टिफिकेशन...
स्टार सिटी रेटिंग | 1250 |
ओडीएफ स्टेटस | 1000 |
पीपल फर्स्ट (सिटीजन वॉइस) - 2250
सिटीजन फीडबैक | 600 (यूथ-200, सीनियर सिटीजन-400) |
सिटीजन इंगेजमेंट | 550 |
डायरेक्ट ऑब्जरवेशन | 350 |
स्वच्छता एप | 400 |
डिजास्टर एंड एपिडेमिक रिस्पांस प्रिपेयरनेस | 200 |
म्युनिसिपल रेस्पॉन्स ड्यूरिंग कोविड-1 | 150 |
हालांकि, जयपुर के दोनों नगर निगम समीक्षा और सुधार के काम में जुट गए हैं. ग्रेटर और हेरिटेज निगम को पब्लिक टॉयलेट को साफ रखने, ओपन कचरा डिपो खत्म करने कचरे का सेग्रीगेशन करने, वाटर बॉडीज को अतिक्रमण मुक्त करने जैसी कई बड़ी चुनौतियों पर पार पाना होगा. इसके अलावा डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन की खामियों को दूर करना भी निगम की प्राथमिकता में शामिल होगा.
आपको बता दें कि इंदौर के लगातार 5 साल से स्वच्छता रैंकिंग में अव्वल आने के पीछे नगर निगम की सक्रियता है. जबकि राजधानी जयपुर सहित प्रदेश के दूसरे निकायों में स्थिति ये है कि कोई निकाय कचरे का निस्तारण तक गंभीरता से नहीं कर पा रहा. इंदौर और जयपुर में कचरा कलेक्शन पर लगभग बराबर पैसा खर्च किया जाता है. लेकिन बड़ा अंतर ये है कि इंदौर में सफाई के सारे काम निगम अपने स्तर पर, जबकि जयपुर में ये काम ठेके पर दे दिया गया है. जिसकी निगरानी ठीक से नहीं होने की वजह से आज जयपुर इतना पिछड़ गया है.