जयपुर. राजस्थान हाइकोर्ट ने हाईवे निर्माण कंपनी से रिश्वत लेने के मामले में आरोपी निलंबित आईपीएस मनीष अग्रवाल को राहत देते हुए 10 दिन के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं. न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश मनीष अग्रवाल के अंतरिम जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए दिए. अदालत ने आरोपी को कहा है की वह अंतरिम जमानत अवधि पूरी होने के बाद 21 मार्च को जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करे.
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अंतरिम जमानत अर्जी में अधिवक्ता माधव मित्र ने कहा कि मनीष अग्रवाल की बहन का 15 मार्च को विवाह होना है. ऐसे में शादी-समारोह में भाग लेने और रीति-रिवाज निभाने के लिए उसे पंद्रह दिन की जमानत पर रिहा किया जाए. जिसका राज्य सरकार की ओर से विरोध किया गया. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने आरोपी आईपीएस को अंतरिम जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए.
राज्य सरकार के दो वकील हुए आमने-सामने
सुनवाई के दौरान अदालत में अजीब वाकया देखने को मिला. एसीबी की ओर से पक्ष रखने वाले अतिरिक्त महाधिवक्ता विभूति भूषण शर्मा ने अंतरिम जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि यदि आरोपी को अंतरिम जमानत देनी है तो उसे पुलिस सुरक्षा में भेजा जाए. इसी बीच एक अन्य अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेंद्र यादव पेश हुए. उन्होंने कहा आरोपी को अंतरिम जमानत देने पर राज्य सरकार को कोई एतराज नहीं है. वहीं दोनों अतिरिक्त महाधिवक्ताओं के बीच भी गहमागहमी हो गई. यहां तक की दोनों ने एक दूसरे को एएजी पद के अधिकार और शक्तियां भी गिनाने लगे.
राज्य सरकार की ओर से रखे गए दो पक्षों को लेकर अदालत भी असहज हो गई. आखिर में अदालत ने आरोपी को अंतरिम जमानत पर रिहा करने के आदेश देते हुए उसे 21 मार्च को जेल में सरेंडर करने के आदेश दिए.
गौरतलब है की एसीबी बीते मंगलवार को मामले में मनीष अग्रवाल, दलाल नीरज मीणा और गोपाल सिंह के विरुद्ध एसीबी मामलों की विशेष अदालत में आरोप पत्र पेश कर चुकी है.