जयपुर. उन मां की हिम्मत का भी जवाब नहीं, जो खुद कांटों का दर्द सहकर अपने बच्चों के राहों में नरम फूल बिछा रही हैं. लॉकडाउन के दौरान भी ये मां अपने कर्तव्य को सबसे ऊपर रखकर अपने जीवन को देश को समर्पित कर रही हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है जयपुर की डॉक्टर कवित चंदेल की.
डॉ. कविता चंदेल पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. लेकिन इन दिनों उनकी ड्यूटी कोरोना मरीजों को आइसोलेट करने में लगाई गई है. डॉक्टर चंदेल करीब 25 दिन के बाद मदर्स-डे पर में अपने बच्चों से मिलने अपने मायके आई हैं. डॉ. कविता बच्चों से मिली, तो जरूर लेकिन उन्हें अपने गले नहीं लगा सकी, लगाती भी तो आखिर कैसे? कोरोना वार्ड में रहने की वजह से संक्रमण के डर से कविता ने खुद को अपने बच्चों से अलग कर रखा हैं.
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मजबूरी ये भी है कि डॉ. कविता जयपुर में अपने दो छोटे बच्चों के साथ अकेली रहती है और उनके पति बीकानेर मेडिकल कॉलेज में तैनात हैं. ऐसे में डॉ. कविता की ड्यूटी कोरोना पेशेंट्स को आइसोलेशन करने में लगी, तो उन्होंने सुरक्षा की अपने दोनों बच्चों को अपनी मां यानी बच्चों की नानी के पास छोड़ दिया. लेकिन मदर्स-डे पर बच्चों के बार-बार फोन आने पर वे खुद को बच्चों के पास जाने से नहीं रोक पाई.
डॉ. कविता मां होने के साथ डॉक्टर भी है और अपने पेशे के साथ वो बखूबी न्याय भी कर रही हैं. बच्चे छोटे हैं. लेकिन उन्हें भी इस बात का पूरा आभास है. यही कारण है कि बच्चों ने अपनी मम्मी के प्रति अपने प्यार को जताने के लिए मदर्स-डे पर ग्रीटिंग्स कार्ड बनाएं और मम्मी को बुलाकर दूर से ही उनके हाथ में ये कार्ड थमाएं. अब इन बच्चों को भी इंतजार है कोरोना का कहर थमने का. ताकि ये भी अपने घर पर जाकर मम्मी का स्नेह और दुलार पा सकें.
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जीवन में मां से बड़ा कोई रिश्ता नहीं. क्योंकि इस धरती पर जीवन का आरंभ भी मां से ही होता है और जीवन जीने की कला भी सिखाने वाली पहली गुरु मां ही होती है. हालांकि वैश्विक महामारी कोरोना के संकट के बीच कई मां अपने फर्ज के चलते में बच्चों से फिलहाल दूर है. लेकिन इन कोरोना वॉरियर्स माताओं के जज्बे और काम के प्रति निष्ठा को देश का सलाम है.