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स्पेशल: अब अंतिम विदाई भी मुश्किलों में, श्मशान घाटों पर लकड़ियों का स्टॉक खत्म होने की कगार पर...

वर्तमान में भारत समेत समूचा विश्व कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ रहा है. कोरोना के प्रकोप से निपटने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लागू है. जिसके चलते आम जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. इस बीच मृतकों को अंतिम विदाई देने में भी कई समस्याएं सामने आने लगी हैं. ईटीवी भारत की ओर से पड़ताल में सामने आया कि श्मशान घाटों पर लकड़ियों के स्टॉक खत्म होने की कगार पर है.

शमशान घाटों पर लकड़ियों की कमी, Lack of wood at the cremation grounds
शमशान घाटों पर लकड़ियों की कमी
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Published : Apr 8, 2020, 9:10 PM IST

जयपुर. कोरोना वायरस ने पूरे विश्व में उथल-पुथल मचा रखी है. इसके संक्रमण से बचने के लिए समूचे भारत में लॉकडाउन जारी है. इस लॉकडाउन के चलते पूरी मानव जाति का जीवन किसी ना किसी तरह से प्रभावित हो रहा है. इस बीच एक और समस्या तेजी से उभर कर सामने आई है. यह लॉकडाउन अब अंतिम संस्कार की राह में भी रोड़ा बन गया है.

प्रभावित होने लगे हैं अंतिम संस्कार..

कहते हैं कि अगर अंतिम संस्कार सही तरीके से किया जाए, तभी मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है. अंतिम संस्कार के लिए सबसे महत्वपूर्ण लकड़ियां होती हैं. जो कि आम तौर पर श्मशान घाटों पर ही आसानी से उपलब्ध हो जाती है. लेकिन लॉकडाउन के चलते श्मशान घाटों पर लकड़ियों के स्टॉक में भारी कमी देखी जा रही है, जिससे अब अंतिम संस्कार भी प्रभावित होने लगे हैं. वहीं जयपुर में सिर्फ आदर्श नगर और चांदपोल में ही बिजली और गैस वाले शमशान घाट हैं.

लॉकडाउन में अंतिम विदाई भी मुश्किलों में

खत्म हो चुकी है बबूल की लकड़ियां..

जयपुर की सीमा में 118 श्मशान घाट हैं. ईटीवी भारत शहर के प्रमुख श्मशान घाटों पर लकड़ियों के स्टॉक की स्थिति जानने पहुंचा. चांदपोल स्थित मोक्षधाम में हर दिन 8 से 10 अंत्येष्टि होती हैं और एक शव के अंतिम संस्कार में तकरीबन 4 से 5 क्विंटल लकड़ी की खपत होती है. लेकिन धीरे-धीरे यहां लकड़ियों का स्टॉक कम होता जा रहा है. लकड़ी विक्रेता ने बताया कि अंत्येष्टि में काम आने वाली बबूल की लकड़ी तो पूरी तरह खत्म हो चुकी है. इस संबंध में जिला प्रशासन से लेकर पुलिस प्रशासन सभी को अवगत कराया जा चुका है. बावजूद इसके इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया है.

जल्द नहीं हुआ समाधान तो..

वहीं लालकोठी स्थित श्मशान घाट पर भी यही हालात देखने को मिल रहे हैं. यहां लकड़ी विक्रेता ने बताया कि लॉकडाउन में नई खेप तैयार हो रही है, जो खेप तैयार है, उसके ट्रक बॉर्डर पर ही रोक दिए गए हैं. ऐसे में अब लकड़ियों की किल्लत आ रही है. लॉकडाउन में वाहनों का पास नहीं बन पा रहा है. साथ ही वाहनों में लकड़ियां भरने के लिए श्रमिक भी उपलब्ध नहीं होने से सप्लाई नहीं हो रही है. बता दें कि जयपुर में औसतन 50 लोगों का रोज अंतिम संस्कार किया जाता है. ऐसे में आगामी दिनों में यदि प्रशासन ने लकड़ियों की सप्लाई को लेकर इंतजाम नहीं किए, तो हालात भयावह होने की आशंका है.

शमशान घाटों पर लकड़ियों की कमी, Lack of wood at the cremation grounds
खत्म हो रहा लकड़ियों का स्टॉक

पढ़ें: Special: लॉकडाउन में काम बंद, तो मजबूरी में छोटे कामगारों ने बदल लिया काम

अस्थि विसर्जन की समस्या से जूझते लोगों के लिए उपाय:

लकड़ियों की समस्या से पहले फिलहाल लोग अस्थि विसर्जन में आने वाली दिक्कतों से भी जूझ रहे हैं. जयपुर के श्मशान गृहों में अस्थि कलश और अस्थियों से भरे हुए बैग अपनों का इंतजार कर रहे हैं, कि कब लॉकडाउन खत्म होगा और कब विसर्जन की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा. लेकिन अगर यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पा रही है, तो ऐसी स्थिति में क्या करना है,इस बारे में ईटीवी भारत ने पंडित मुकेश शास्त्री से बातचीत की.

शमशान घाटों पर लकड़ियों की कमी, Lack of wood at the cremation grounds
श्मशान घाट में पड़ा लकड़ियों का स्टॉक

शास्त्री के अनुसार अंतिम संस्कार के साढ़े 11 महीने तक कभी भी अस्थि विसर्जन का विधान गरुड़ पुराण में इंगित किया गया है. समय परिस्थिति के अनुसार 12 महीने के श्राद्ध से पहले अस्थि विसर्जन किया जा सकता है.अगर जल में अस्थियों को प्रवाहित करने का विकल्प मौजूद नहीं है, तो अंतिम संस्कार स्थल से 100 मीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में जमीन से लगभग 5 फीट की गहराई पर अस्थियों को गाड़ने के बाद की प्रक्रिया को भी विसर्जन की संज्ञा दी गई है. ऐसे में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए आवश्यक है कि लोक डाउन की पालना करें और लॉक डाउन पूरा होने के बाद ही अपने स्वजनों के अंतिम संस्कार के कर्मकांड को पूरा किया जाए.

जयपुर. कोरोना वायरस ने पूरे विश्व में उथल-पुथल मचा रखी है. इसके संक्रमण से बचने के लिए समूचे भारत में लॉकडाउन जारी है. इस लॉकडाउन के चलते पूरी मानव जाति का जीवन किसी ना किसी तरह से प्रभावित हो रहा है. इस बीच एक और समस्या तेजी से उभर कर सामने आई है. यह लॉकडाउन अब अंतिम संस्कार की राह में भी रोड़ा बन गया है.

प्रभावित होने लगे हैं अंतिम संस्कार..

कहते हैं कि अगर अंतिम संस्कार सही तरीके से किया जाए, तभी मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है. अंतिम संस्कार के लिए सबसे महत्वपूर्ण लकड़ियां होती हैं. जो कि आम तौर पर श्मशान घाटों पर ही आसानी से उपलब्ध हो जाती है. लेकिन लॉकडाउन के चलते श्मशान घाटों पर लकड़ियों के स्टॉक में भारी कमी देखी जा रही है, जिससे अब अंतिम संस्कार भी प्रभावित होने लगे हैं. वहीं जयपुर में सिर्फ आदर्श नगर और चांदपोल में ही बिजली और गैस वाले शमशान घाट हैं.

लॉकडाउन में अंतिम विदाई भी मुश्किलों में

खत्म हो चुकी है बबूल की लकड़ियां..

जयपुर की सीमा में 118 श्मशान घाट हैं. ईटीवी भारत शहर के प्रमुख श्मशान घाटों पर लकड़ियों के स्टॉक की स्थिति जानने पहुंचा. चांदपोल स्थित मोक्षधाम में हर दिन 8 से 10 अंत्येष्टि होती हैं और एक शव के अंतिम संस्कार में तकरीबन 4 से 5 क्विंटल लकड़ी की खपत होती है. लेकिन धीरे-धीरे यहां लकड़ियों का स्टॉक कम होता जा रहा है. लकड़ी विक्रेता ने बताया कि अंत्येष्टि में काम आने वाली बबूल की लकड़ी तो पूरी तरह खत्म हो चुकी है. इस संबंध में जिला प्रशासन से लेकर पुलिस प्रशासन सभी को अवगत कराया जा चुका है. बावजूद इसके इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया है.

जल्द नहीं हुआ समाधान तो..

वहीं लालकोठी स्थित श्मशान घाट पर भी यही हालात देखने को मिल रहे हैं. यहां लकड़ी विक्रेता ने बताया कि लॉकडाउन में नई खेप तैयार हो रही है, जो खेप तैयार है, उसके ट्रक बॉर्डर पर ही रोक दिए गए हैं. ऐसे में अब लकड़ियों की किल्लत आ रही है. लॉकडाउन में वाहनों का पास नहीं बन पा रहा है. साथ ही वाहनों में लकड़ियां भरने के लिए श्रमिक भी उपलब्ध नहीं होने से सप्लाई नहीं हो रही है. बता दें कि जयपुर में औसतन 50 लोगों का रोज अंतिम संस्कार किया जाता है. ऐसे में आगामी दिनों में यदि प्रशासन ने लकड़ियों की सप्लाई को लेकर इंतजाम नहीं किए, तो हालात भयावह होने की आशंका है.

शमशान घाटों पर लकड़ियों की कमी, Lack of wood at the cremation grounds
खत्म हो रहा लकड़ियों का स्टॉक

पढ़ें: Special: लॉकडाउन में काम बंद, तो मजबूरी में छोटे कामगारों ने बदल लिया काम

अस्थि विसर्जन की समस्या से जूझते लोगों के लिए उपाय:

लकड़ियों की समस्या से पहले फिलहाल लोग अस्थि विसर्जन में आने वाली दिक्कतों से भी जूझ रहे हैं. जयपुर के श्मशान गृहों में अस्थि कलश और अस्थियों से भरे हुए बैग अपनों का इंतजार कर रहे हैं, कि कब लॉकडाउन खत्म होगा और कब विसर्जन की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा. लेकिन अगर यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पा रही है, तो ऐसी स्थिति में क्या करना है,इस बारे में ईटीवी भारत ने पंडित मुकेश शास्त्री से बातचीत की.

शमशान घाटों पर लकड़ियों की कमी, Lack of wood at the cremation grounds
श्मशान घाट में पड़ा लकड़ियों का स्टॉक

शास्त्री के अनुसार अंतिम संस्कार के साढ़े 11 महीने तक कभी भी अस्थि विसर्जन का विधान गरुड़ पुराण में इंगित किया गया है. समय परिस्थिति के अनुसार 12 महीने के श्राद्ध से पहले अस्थि विसर्जन किया जा सकता है.अगर जल में अस्थियों को प्रवाहित करने का विकल्प मौजूद नहीं है, तो अंतिम संस्कार स्थल से 100 मीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में जमीन से लगभग 5 फीट की गहराई पर अस्थियों को गाड़ने के बाद की प्रक्रिया को भी विसर्जन की संज्ञा दी गई है. ऐसे में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए आवश्यक है कि लोक डाउन की पालना करें और लॉक डाउन पूरा होने के बाद ही अपने स्वजनों के अंतिम संस्कार के कर्मकांड को पूरा किया जाए.

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