जयपुर. राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने समस्त जिलों की बाल कल्याण समितियों और बाल अधिकारिता विभाग के पदाधिकारियों को वेबीनार के माध्यम से विभिन्न निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है, जो बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत एक गम्भीर अपराध है. बाल विवाह की प्रभावी रोकथाम के लिए विशेषतर ग्रामीण क्षेत्रों में आमजन की सहभागिता और सामाजिक जागरूकता से जन चेतना लानी आवश्यक है. अक्षयतृतीया और पीपल पूर्णिमा पर एक भी बाल विवाह नहीं होने देना है.
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संगीता बेनीवाल ने कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के लिए विशेष निगरानी रखी जाये और ग्राम पंचायत स्तर पर कार्यरत ग्राम विकास अधिकारी, पटवारी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आदि को इनके कार्यक्षेत्र में बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी दी जाए और यदि इसके पश्चात् भी बाल विवाह आयोजित होता है, तो सम्बन्धित अधिकारी की जवाबदेही तय की जाये.
उन्होंने कहा कि बाल विवाह कम उम्र में शादी से बच्चों का बचपन नष्ट हो जाता है. इससे उनके शारिरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव पढ़ते हैं. बालक-बालिका शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. राजस्थान में अक्षय तृतीया एवं पीपल पूर्णिमा के अवसर अबूझ सावा होने के कारण चोरी-छिपे बाल विवाह होने की संभावना रहती है. इन बाल विवाहों को रोकने के लिए जिला कलक्टर एवं जिला पुलिस अधीक्षकों के माध्यम से सभी ग्राम स्तरीय अधिकारियों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को निर्देश जारी करवाए जाएंगें.
वेबीनार में उपस्थित आयोग के सदस्यगणों ने ग्राम स्तर पर जागरूकता कार्यशाला और नुक्कड़ नाटकों का आयोजन करवाने तथा बाल-विवाह के दुष्प्रभावों एवं कानूनी प्रावधानों के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता जताई गई.
इस दौरान सभी जिलों की बाल कल्याण समितियों एवं बाल अधिकारिता विभाग के प्रतिनिधियों के लिए खुला सत्र रखा गया, जिसमें उन्होने अपने क्षेत्र में बाल विवाह की रोकथाम हेतु किए गए प्रयासों एवं इस दौरान आ रही समस्याओं व सुझावों को आयोग अध्यक्ष के साथ साझा किया.
वेबीनार में प्राप्त सभी सवालों, समस्याओं, आदि का राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर के एडवोकेट प्रदीप माथुर द्वारा समाधान कर, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की विभिन्न धाराओं के प्रावधानों की जानकारी दी गई. उन्होने बताया कि 21 वर्ष से कम के लड़के व 18 वर्ष से कम की लड़की द्वारा विवाह करना बाल-विवाह की श्रेणी में आता है. वयस्क पुरूष के द्वारा बाल-विवाह करने पर अधिनियम की धारा 9 के अनुसार 2 वर्ष का कारावास अथवा एक लाख रुपये का जुर्माना या दोनों सजाऐं दी जा सकती हैं. बाल विवाह करवाने वाले व्यक्ति पर धारा 10 एवं उसको बढावा/अनुमति देने वाले व्यक्ति पर धारा 11 (1) के अन्तर्गत कानूनी कार्रवाई की जाएगीय
एडवोकेट प्रदीप माथुर ने बताया कि बाल-विवाह के पक्षकार लड़का या लड़की द्वारा आवेदन पर विवाह को शून्य करणीय घोषित किया जा सकता है. इस एक्ट में बालिका को मेंटेनेन्स दिए जाने के प्रावधान है एवं उससे होने वाले बच्चे को लीगल माना गया है तथा बच्चे की कस्टडी का भी प्रावधान है. अधिनियम में बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी (उपखण्ड़ अधिकारी) को बाल-विवाह को रोकने तथा इसके उल्लंघन पर कार्रवाई करने के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं.
अधिनियम के अनुसार सक्षम न्यायालय किसी रिपोर्ट या सूचना पर स्वतः प्रसंज्ञान ले सकता है अथवा किसी आवेदन पर इंजक्शन ऑर्डर जारी कर सकता है. प्रतिभागियों द्वारा सुझाव दिया गया कि बाल-विवाह की सूचना देने वाले व्यक्ति की जानकारी गोपनीय रखी जाए तथा उनको प्रोत्साहन स्वरूप कुछ राशि दी जाए, ताकि आमजन इस कुरीति को रोकने के लिए स्वतः ही आगे आने को प्रेरित हो. बेनीवाल ने आमजन और स्वयंसेवी संस्थाओं से अपील की है कि बाल-विवाह की सूचना चाइल्ड हेल्पलाइन नम्बर 1098, बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी, स्थानीय पुलिस, बाल कल्याण समिति, जिला बाल संरक्षण इकाई अथवा बाल आयोग को वाट्सअप नम्बर 7733870243 पर सूचित करें, ताकि समय रहते बाल विवाह को रोका जा सके एवं बाल अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके.