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भारत में सौर ऊर्जा के विकास पर पूर्व IAS राजीव स्वरूप से खास बातचीत

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Published : Jan 9, 2021, 8:17 PM IST

सौर ऊर्जा विकास के लिए मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी (MNRE) द्वारा बनाई गई पहली टीम के सदस्य और राजस्थान पूर्व मुख्य सचिव राजीव स्वरूप से ईटीवी भारत दिल्ली स्टेट हेड विशाल सूर्यकांत की विशेष चर्चा.

solar energy, rajeev swarup
भारत में सौर ऊर्जा के विकास पर पूर्व IAS राजीव स्वरूप से खास बातचीत

देखिए भारत में सौर ऊर्जा के विकास पर पूर्व IAS और MNRE द्वारा बनाई गई पहली टीम के सदस्य राजीव स्वरूप से खास बातचीत

सवाल- भारत में पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है . भारत में अब तक हम करीब 35 हजार 739 मेगावाट ( 35739MW) सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर पाए हैं . केन्द्र सरकार ने 2022 तक 100 गीगावॉट का लक्ष्य रखा है . 2006 से 2020 तक सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का सफर कैसे देखते हैं ?

पूर्व IAS राजीव स्वरूप से खास बातचीत

राजीव स्वरूप- सौर ऊर्जा को लेकर देश में काफी चर्चाएं चल रही थीं. उस वक्त गांवों में सोलर लेंटर और सोलर वॉटर हिटिंग सिस्टम तक ही ये सीमित थी. तब तक कई देशों में सौर ऊर्जा पर सिर्फ प्रयोग ही चल रहे थे, भारत भी अपनी संभावनाओं को खोज रहा था . 2008 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ( MNRE) ने इसी के मद्देनजर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई, जिसमें मैं शामिल रहा. जब एमएनआरई ने सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने का फैसला लिया तब देश में सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट 20 रुपये लागत थी और परंपरागत बिजली की दरें दो रुपये प्रति यूनिट थी. सौर ऊर्जा के लिए जरूरी सिलिकन की कीमतें ज्यादा थी और उत्पादन बढ़ाना भी बड़ी चुनौती थी.

फोसल फ्यूअल्स की बढ़ती कीमतों ने भी देश में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विकास की राह तेज की. सौर ऊर्जा की ज्यादा लागत के चलते वैकल्पिक ऊर्जा में पहले देश का फोकस विंड एनर्जी पर था, लेकिन इसकी मात्रा बहुत सीमित थी. 2008 में सोचा गया कि कैसे सौर ऊर्जा की लागत ग्रिड पैरेटी के बराबर लाई जाए और फिर ये लागत उससे भी सस्ती होती चली जाए. इसके लिए भविष्योन्मुखी योजना तैयार हुई. आज लागत बहुत घट गई है और सौर ऊर्जा संसाधनों में तेजी से विकास हुआ है. कई चुनौतियां हैं, मसलन हमारी जरूरत 24 घंटे पावर सप्लाई की है, लेकिन सौर ऊर्जा सिर्फ सूर्य की रोशनी तक ही उपलब्ध है. इसीलिए अभी भी ग्रिड की जरूरत के मुताबिक अभी तक यह ढल नहीं पाई है. लेकिन 2008 में सौर ऊर्जा 18 रुपये प्रति यूनिट थी. हमने बड़ी सब्सिडी देते हुए पांच से दस मेगावाट के सोलर प्लांट्स राजस्थान में स्वीकृत किये थे. आज यही सौर ऊर्जा बिना किसी सब्सिडी के ढाई रुपये प्रति यूनिट से भी कम होती जा रही है. आप खुद सोचिए , हम कहां से कहां तक आ पहुंचे हैं.

solar energy, rajeev swarup
सौर ऊर्जा की संभावनाएं

सवाल - क्या यह वैकल्पिक ऊर्जा की बजाए मुख्य ऊर्जा स्त्रोत भी कभी बनाया जा सकता है ? इसके लिए क्या किए जाने की ज़रूरत है ?

राजीव स्वरूप- देखिए, यहां तक तो हम आ पहुंचे हैं कि सौर ऊर्जा का उत्पादन व्यापक पैमाने पर हो. हम दुनिया में सबसे कम लागत में सौर ऊर्जा उत्पादन करने वाले देश हैं. यह एक बड़ी उपलब्धि है. भारत में पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा की संभावनाएं हैं. सवाल यह है कि क्या हम सौर ऊर्जा को स्टोर कर ट्रांसफॉर्म कर सकते हैं ? सौर ऊर्जा में तीन चुनौतियां रही हैं . इसकी लागत कम करने की चुनौती को तो हम अवसर में बदल चुके हैं.

कम लागत में ज्यादा उत्पादन की क्षमता हम विकसित कर चुके हैं. दूसरी चुनौती स्टोरेज मीडिया और तीसरी चुनौती ट्रांसमिशन की है, जिसे लंबी दूरी में भी ट्रांसमिशन लॉस कम से कम हो. इसे लेकर भारत में ही नहीं, ग्लोबल थिंकिंग भी चल रही है. नॉर्थ अफ्रीका में सोलर रेडिएशन सर्वाधिक है, वहां से यूरोप तक सोलर एनर्जी ले जाने की संभावनाएं खोजी जा रही हैं.

solar energy, rajeev swarup
सौर ऊर्जा से होने वाले फायदे

सवाल- यह बात सही है कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उत्पादन बढ़ा है लेकिन सोलर प्लांट उपकरणों के मामले में हम पूरी तरह चीन या अन्य देशों पर निर्भर हैं. सवाल यह कि हमारी रफ्तार, अन्य देशों की नीतियों पर ही निर्भर है ?

राजीव स्वरूप- दरअसल, सिलिकन इनगॉट्स बहुत महंगे होते हैं. सोलर सेल इत्यादि लागत को और बढ़ा देते हैं. हमें प्रोडक्शन साइकिल में और दक्षता हासिल करने की जरूरत है. हालांकि एक दशक में हमारी लागत एक चौथाई कम हो गई है. बाकी देशों से आयातित उपकरण और संसाधनों ने लागत तो कम की है लेकिन सौर ऊर्जा उत्पादन में ज्यादा से ज्यादा भारतीयकरण करना जरूरी है. अन्य देशों पर निर्भरता हमें रफ्तार तो दे सकती है लेकिन इसे बरकरार रखने और नए विकल्प खोजने के लिए इसका स्वदेशीकरण ज़रूरी है.

सवाल- सोलर पार्क के विकास में देश की स्थिति अच्छी है लेकिन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक रूफटॉप प्लांट्स में हम लगातार पीछे हो रहे हैं. फिर सोलर विकास में व्यापकता कहां रही ?

राजीव स्वरूप- रूफ टॉप को अभी भी वायबल न माना जाना सही नहीं है. एक बार बड़े खर्च के बाद महीने का ऊर्जा खर्च जो बचना है, उसे किस केटेगरी में रखेंगे आप? उद्योगों ने पावर टैरिफ देखकर अपनी वायबिलिटी प्लान कर ली है. वे स्टे अलोन या केप्टासोलर प्लांट्स लगाकर काम शुरू कर चुके हैं. ये शुरुआत बता रही है कि सोलर अब वाइबल हो रहा है. इसी तरह से घरों में जिन्होंने रूफटॉप सोलर प्लांट लगाया है, उनका बिजली का बिल बहुत कम हो गया है.

solar energy, rajeev swarup
सौर ऊर्जा की राह में चुनौतियां

कई ऐसे बिज़नेस मॉडल भी है जिसमें कंपनी अपने खर्च पर रूफटॉप लगाकर सेविंग पॉवर में अपना हिस्सा तय कर लेती है. लॉन्ग टर्म शेडयूल्स से उन कंपनियों की लागत भी निकल जाती है और उपभोक्ता को भी राहत मिल जाती है. आम घरों में शुरुआती खर्च करना मुश्किल है लेकिन एक तरफ परम्परागत बिजली के बिल 8-10 रुपये प्रति यूनिट हो रहे हैं और बिजली की मांग भी बढ़ रही है ,घरों में गैजेट्स बढ़ रहे हैं . थर्मल आधारित बिजली की आपूर्ति के लिए कोयले की मांग ज्यादा है, आपूर्ति हमेशा कम ही होती रहेगी. इसीलिए एक समय के बाद आम घरेलू उपयोग में ही सोलर कारगर रहेगा. बस समय की बात है, आज नहीं तो कल सोलर एनर्जी सूर्यास्त के बाद भी व्यापक रूप में इस्तेमाल हो पाने की तकनीक आ ही जाएगी.

सवाल- आप भविष्य की बात कर रहे हैं लेकिन आज सौर ऊर्जा का जितना उत्पादन है, उसका फायदा कहां मिल पा रहा है? आर्थिक दुर्दशा से गुजरती राज्यों की बिजली कंपनियां सोलर एनर्जी को कहां पूरा प्रमोट कर पा रही हैं? प्लांट्स के लिए निर्विवादित जमीन की उपलब्धता भी बड़ा मुद्दा है.

राजीव स्वरूप- ये बात आपने सही कही क्योंकि डिस्कॉम्स के लिए बहुत बड़ा चैलेंज है कि वो इस समय इस स्थिति में नहीं है कि बहुत बडी मात्रा में असीमित सोलर एनर्जी को प्रमोट करें. क्योंकि वो एक तरफ अपने स्थाई ऊर्जा स्त्रोत जैसे थर्मल एनर्जी को छोड़ नहीं सकते, चाहे दिन ब दिन इसकी लागत बढ़ती रहे. आज की स्थिति में सोलर पिक आवर्स में थर्मल की तरह उत्पादन दे नहीं सकता. थर्मल में हम ये सिस्टम नहीं ला सकते कि दिन में कम उत्पादन हो और रात में ज्यादा उत्पादन करें.

इसीलिए शुरुआत में ही मैंने कहा है कि सोलर में स्टोरेज मीडिया का आना अब जरूरी है. इसीलिए ये द्वंद तो अभी चलेगा. रही बात ज़मीन की तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जैसा पहले पवन ऊर्जा में बूम के वक्त हुआ था. सौर ऊर्जा में भी माफिया सक्रिय हो चला है. जमीन पर जहां प्लांट लग सकता है, वहां धीरे-धीरे अतिक्रमण कर उसे लिटिगेशन में उलझा दिया जाता है. निवेशक के लिए यह कई बार बड़ी समस्या पैदा कर देते हैं. कई बार निवेशक भी खुद गंभीरता बदलते रहते हैं.

सवाल- रिसर्च और संसाधन विकसित करने के मामले में हम कुछ कर पा रहे हैं या हम सिर्फ दोहन तक सीमित हैं ? भविष्य में उपयोग को लेकर कोई प्रक्रिया चल रही है .

राजीव स्वरूप- कोई मेजर ब्रेक थ्रू तो नहीं है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयोग चल रहे हैं, लेकिन क्या हम कभी सोलर एनर्जी में वायरलेस ट्रांसमिशन भी कर सकते हैं. ये रिसर्च और प्रयोग का विषय है. आज नहीं तो एक दशक के बाद, हो सकता है कि ये संभव हो क्योंकि मानव की ज़रूरतों से जुड़ी अगली क्रांति सौर ऊर्जा में ही होगी , ये तय लगता है. भारत को इस दिशा में व्यापक रूप से काम करने की जरूरत है. वैसे सोलर एक देश का मामला नहीं है. भारत तो अभी दुनिया के अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) में प्रमुख भूमिका में है. आईएसए का वैश्विक मुख्यालय हमारे भारत के गुरुग्राम में है. ये बताता है कि सौर में भारत वैश्विक भूमिका निभा रहा है, यही भूमिका नए शोध और प्रयोगों में अपनाने की जरूरत है.

सवाल- जो आप कह रहे हैं कि सोलर में वैश्विक भूमिका में भारत आ रहा है, कब तक यह कहा जा सकता है कि सौर ऊर्जा आम जन जीवन का हिस्सा बन जाएगी ? क्या कोई भविष्यवाणी करना चाहेंगे ?

राजीव स्वरूप- देखिए 2008 में 18-20 रुपये से घटकर हम ढाई रुपये प्रति यूनिट पर आ गए हैं. मेरा अनुमान है कि 2030 तक सोलर की प्रति यूनिट दर 1.90 रुपये तक आ जाएगी. वहीं कोल-थर्मल की कीमतें लगातार बढ़ेगी ये तय है. स्टोरेज मीडिया पर रिसर्च जारी है और इस मामले में मुझे लगता है कि 10-15 सालों में काफी कुछ होगा , नहीं तो अगले 20 सालों में सौर ऊर्जा में बहुत कुछ होना है. दुनिया ग्लोबल वार्मिंग,कार्बन उत्सर्जन को गंभीरता से ले रही है और इसका निदान सौर ऊर्जा में ही है. जर्मनी को देखिए वहां सारे एटोमिक प्लांट्स बंद कर अपनी ज़रूरतों का 27 फीसदी हिस्सा रिन्यूअल एनर्जी से ही लिया जा रहा है. आने वाले वक्त में आपको ऐसा कई देशों में होता दिखेगा.

देखिए भारत में सौर ऊर्जा के विकास पर पूर्व IAS और MNRE द्वारा बनाई गई पहली टीम के सदस्य राजीव स्वरूप से खास बातचीत

सवाल- भारत में पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है . भारत में अब तक हम करीब 35 हजार 739 मेगावाट ( 35739MW) सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर पाए हैं . केन्द्र सरकार ने 2022 तक 100 गीगावॉट का लक्ष्य रखा है . 2006 से 2020 तक सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का सफर कैसे देखते हैं ?

पूर्व IAS राजीव स्वरूप से खास बातचीत

राजीव स्वरूप- सौर ऊर्जा को लेकर देश में काफी चर्चाएं चल रही थीं. उस वक्त गांवों में सोलर लेंटर और सोलर वॉटर हिटिंग सिस्टम तक ही ये सीमित थी. तब तक कई देशों में सौर ऊर्जा पर सिर्फ प्रयोग ही चल रहे थे, भारत भी अपनी संभावनाओं को खोज रहा था . 2008 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ( MNRE) ने इसी के मद्देनजर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई, जिसमें मैं शामिल रहा. जब एमएनआरई ने सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने का फैसला लिया तब देश में सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट 20 रुपये लागत थी और परंपरागत बिजली की दरें दो रुपये प्रति यूनिट थी. सौर ऊर्जा के लिए जरूरी सिलिकन की कीमतें ज्यादा थी और उत्पादन बढ़ाना भी बड़ी चुनौती थी.

फोसल फ्यूअल्स की बढ़ती कीमतों ने भी देश में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विकास की राह तेज की. सौर ऊर्जा की ज्यादा लागत के चलते वैकल्पिक ऊर्जा में पहले देश का फोकस विंड एनर्जी पर था, लेकिन इसकी मात्रा बहुत सीमित थी. 2008 में सोचा गया कि कैसे सौर ऊर्जा की लागत ग्रिड पैरेटी के बराबर लाई जाए और फिर ये लागत उससे भी सस्ती होती चली जाए. इसके लिए भविष्योन्मुखी योजना तैयार हुई. आज लागत बहुत घट गई है और सौर ऊर्जा संसाधनों में तेजी से विकास हुआ है. कई चुनौतियां हैं, मसलन हमारी जरूरत 24 घंटे पावर सप्लाई की है, लेकिन सौर ऊर्जा सिर्फ सूर्य की रोशनी तक ही उपलब्ध है. इसीलिए अभी भी ग्रिड की जरूरत के मुताबिक अभी तक यह ढल नहीं पाई है. लेकिन 2008 में सौर ऊर्जा 18 रुपये प्रति यूनिट थी. हमने बड़ी सब्सिडी देते हुए पांच से दस मेगावाट के सोलर प्लांट्स राजस्थान में स्वीकृत किये थे. आज यही सौर ऊर्जा बिना किसी सब्सिडी के ढाई रुपये प्रति यूनिट से भी कम होती जा रही है. आप खुद सोचिए , हम कहां से कहां तक आ पहुंचे हैं.

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सौर ऊर्जा की संभावनाएं

सवाल - क्या यह वैकल्पिक ऊर्जा की बजाए मुख्य ऊर्जा स्त्रोत भी कभी बनाया जा सकता है ? इसके लिए क्या किए जाने की ज़रूरत है ?

राजीव स्वरूप- देखिए, यहां तक तो हम आ पहुंचे हैं कि सौर ऊर्जा का उत्पादन व्यापक पैमाने पर हो. हम दुनिया में सबसे कम लागत में सौर ऊर्जा उत्पादन करने वाले देश हैं. यह एक बड़ी उपलब्धि है. भारत में पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा की संभावनाएं हैं. सवाल यह है कि क्या हम सौर ऊर्जा को स्टोर कर ट्रांसफॉर्म कर सकते हैं ? सौर ऊर्जा में तीन चुनौतियां रही हैं . इसकी लागत कम करने की चुनौती को तो हम अवसर में बदल चुके हैं.

कम लागत में ज्यादा उत्पादन की क्षमता हम विकसित कर चुके हैं. दूसरी चुनौती स्टोरेज मीडिया और तीसरी चुनौती ट्रांसमिशन की है, जिसे लंबी दूरी में भी ट्रांसमिशन लॉस कम से कम हो. इसे लेकर भारत में ही नहीं, ग्लोबल थिंकिंग भी चल रही है. नॉर्थ अफ्रीका में सोलर रेडिएशन सर्वाधिक है, वहां से यूरोप तक सोलर एनर्जी ले जाने की संभावनाएं खोजी जा रही हैं.

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सौर ऊर्जा से होने वाले फायदे

सवाल- यह बात सही है कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उत्पादन बढ़ा है लेकिन सोलर प्लांट उपकरणों के मामले में हम पूरी तरह चीन या अन्य देशों पर निर्भर हैं. सवाल यह कि हमारी रफ्तार, अन्य देशों की नीतियों पर ही निर्भर है ?

राजीव स्वरूप- दरअसल, सिलिकन इनगॉट्स बहुत महंगे होते हैं. सोलर सेल इत्यादि लागत को और बढ़ा देते हैं. हमें प्रोडक्शन साइकिल में और दक्षता हासिल करने की जरूरत है. हालांकि एक दशक में हमारी लागत एक चौथाई कम हो गई है. बाकी देशों से आयातित उपकरण और संसाधनों ने लागत तो कम की है लेकिन सौर ऊर्जा उत्पादन में ज्यादा से ज्यादा भारतीयकरण करना जरूरी है. अन्य देशों पर निर्भरता हमें रफ्तार तो दे सकती है लेकिन इसे बरकरार रखने और नए विकल्प खोजने के लिए इसका स्वदेशीकरण ज़रूरी है.

सवाल- सोलर पार्क के विकास में देश की स्थिति अच्छी है लेकिन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक रूफटॉप प्लांट्स में हम लगातार पीछे हो रहे हैं. फिर सोलर विकास में व्यापकता कहां रही ?

राजीव स्वरूप- रूफ टॉप को अभी भी वायबल न माना जाना सही नहीं है. एक बार बड़े खर्च के बाद महीने का ऊर्जा खर्च जो बचना है, उसे किस केटेगरी में रखेंगे आप? उद्योगों ने पावर टैरिफ देखकर अपनी वायबिलिटी प्लान कर ली है. वे स्टे अलोन या केप्टासोलर प्लांट्स लगाकर काम शुरू कर चुके हैं. ये शुरुआत बता रही है कि सोलर अब वाइबल हो रहा है. इसी तरह से घरों में जिन्होंने रूफटॉप सोलर प्लांट लगाया है, उनका बिजली का बिल बहुत कम हो गया है.

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सौर ऊर्जा की राह में चुनौतियां

कई ऐसे बिज़नेस मॉडल भी है जिसमें कंपनी अपने खर्च पर रूफटॉप लगाकर सेविंग पॉवर में अपना हिस्सा तय कर लेती है. लॉन्ग टर्म शेडयूल्स से उन कंपनियों की लागत भी निकल जाती है और उपभोक्ता को भी राहत मिल जाती है. आम घरों में शुरुआती खर्च करना मुश्किल है लेकिन एक तरफ परम्परागत बिजली के बिल 8-10 रुपये प्रति यूनिट हो रहे हैं और बिजली की मांग भी बढ़ रही है ,घरों में गैजेट्स बढ़ रहे हैं . थर्मल आधारित बिजली की आपूर्ति के लिए कोयले की मांग ज्यादा है, आपूर्ति हमेशा कम ही होती रहेगी. इसीलिए एक समय के बाद आम घरेलू उपयोग में ही सोलर कारगर रहेगा. बस समय की बात है, आज नहीं तो कल सोलर एनर्जी सूर्यास्त के बाद भी व्यापक रूप में इस्तेमाल हो पाने की तकनीक आ ही जाएगी.

सवाल- आप भविष्य की बात कर रहे हैं लेकिन आज सौर ऊर्जा का जितना उत्पादन है, उसका फायदा कहां मिल पा रहा है? आर्थिक दुर्दशा से गुजरती राज्यों की बिजली कंपनियां सोलर एनर्जी को कहां पूरा प्रमोट कर पा रही हैं? प्लांट्स के लिए निर्विवादित जमीन की उपलब्धता भी बड़ा मुद्दा है.

राजीव स्वरूप- ये बात आपने सही कही क्योंकि डिस्कॉम्स के लिए बहुत बड़ा चैलेंज है कि वो इस समय इस स्थिति में नहीं है कि बहुत बडी मात्रा में असीमित सोलर एनर्जी को प्रमोट करें. क्योंकि वो एक तरफ अपने स्थाई ऊर्जा स्त्रोत जैसे थर्मल एनर्जी को छोड़ नहीं सकते, चाहे दिन ब दिन इसकी लागत बढ़ती रहे. आज की स्थिति में सोलर पिक आवर्स में थर्मल की तरह उत्पादन दे नहीं सकता. थर्मल में हम ये सिस्टम नहीं ला सकते कि दिन में कम उत्पादन हो और रात में ज्यादा उत्पादन करें.

इसीलिए शुरुआत में ही मैंने कहा है कि सोलर में स्टोरेज मीडिया का आना अब जरूरी है. इसीलिए ये द्वंद तो अभी चलेगा. रही बात ज़मीन की तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जैसा पहले पवन ऊर्जा में बूम के वक्त हुआ था. सौर ऊर्जा में भी माफिया सक्रिय हो चला है. जमीन पर जहां प्लांट लग सकता है, वहां धीरे-धीरे अतिक्रमण कर उसे लिटिगेशन में उलझा दिया जाता है. निवेशक के लिए यह कई बार बड़ी समस्या पैदा कर देते हैं. कई बार निवेशक भी खुद गंभीरता बदलते रहते हैं.

सवाल- रिसर्च और संसाधन विकसित करने के मामले में हम कुछ कर पा रहे हैं या हम सिर्फ दोहन तक सीमित हैं ? भविष्य में उपयोग को लेकर कोई प्रक्रिया चल रही है .

राजीव स्वरूप- कोई मेजर ब्रेक थ्रू तो नहीं है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयोग चल रहे हैं, लेकिन क्या हम कभी सोलर एनर्जी में वायरलेस ट्रांसमिशन भी कर सकते हैं. ये रिसर्च और प्रयोग का विषय है. आज नहीं तो एक दशक के बाद, हो सकता है कि ये संभव हो क्योंकि मानव की ज़रूरतों से जुड़ी अगली क्रांति सौर ऊर्जा में ही होगी , ये तय लगता है. भारत को इस दिशा में व्यापक रूप से काम करने की जरूरत है. वैसे सोलर एक देश का मामला नहीं है. भारत तो अभी दुनिया के अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) में प्रमुख भूमिका में है. आईएसए का वैश्विक मुख्यालय हमारे भारत के गुरुग्राम में है. ये बताता है कि सौर में भारत वैश्विक भूमिका निभा रहा है, यही भूमिका नए शोध और प्रयोगों में अपनाने की जरूरत है.

सवाल- जो आप कह रहे हैं कि सोलर में वैश्विक भूमिका में भारत आ रहा है, कब तक यह कहा जा सकता है कि सौर ऊर्जा आम जन जीवन का हिस्सा बन जाएगी ? क्या कोई भविष्यवाणी करना चाहेंगे ?

राजीव स्वरूप- देखिए 2008 में 18-20 रुपये से घटकर हम ढाई रुपये प्रति यूनिट पर आ गए हैं. मेरा अनुमान है कि 2030 तक सोलर की प्रति यूनिट दर 1.90 रुपये तक आ जाएगी. वहीं कोल-थर्मल की कीमतें लगातार बढ़ेगी ये तय है. स्टोरेज मीडिया पर रिसर्च जारी है और इस मामले में मुझे लगता है कि 10-15 सालों में काफी कुछ होगा , नहीं तो अगले 20 सालों में सौर ऊर्जा में बहुत कुछ होना है. दुनिया ग्लोबल वार्मिंग,कार्बन उत्सर्जन को गंभीरता से ले रही है और इसका निदान सौर ऊर्जा में ही है. जर्मनी को देखिए वहां सारे एटोमिक प्लांट्स बंद कर अपनी ज़रूरतों का 27 फीसदी हिस्सा रिन्यूअल एनर्जी से ही लिया जा रहा है. आने वाले वक्त में आपको ऐसा कई देशों में होता दिखेगा.

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