जयपुर. आज बच्चों की तस्करी एक गंभीर समस्या बन चुकी है. यह समस्या हमारे देश में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में फैली हुई है. आए दिन बाल तस्करी की खबरें सुनने को मिलती है. अपराधी बच्चों को अगवा करके उनसे मजदूरी, देह व्यापार (यौन उत्पीड़न), भीख मंगवाने, घरेलू नौकर, खेतों में मजदूरी, फैक्ट्री में काम जैसे काम करवाते हैं. कई बार बच्चों के शरीर के अंगों को निकालकर बेच दिया जाता है. इतना ही नहीं बच्चों की खरीद-फरोक्त भी बड़े पैमाने पर की जाती है. एक अनुमान के अनुसार विश्व में हर साल 2 लाख से अधिक बच्चे बाल तस्करी का शिकार होते है.
राजस्थान में हर साल औसतन 10,000 मासूमों से उनका बचपन छीन लिया जाता है और उन्हें बालश्रम के दलदल में धकेल दिया जाता है. जो उम्र खेलने कूदने और पढ़ने की होती है, उस उम्र में मासूमों को यातनाएं दी जाती हैं और सुबह से लेकर देर रात तक सिर्फ काम ही करवाया जाता है. जिन नन्हें हाथों में खिलौने होने चाहिए, उन हाथों में औजार पकड़ा दिए जाते हैं और मासूमों की जिंदगी को नर्क बना दिया जाता है.
5 से 6% दोषियों को ही होती है सजा
राजस्थान में सरकारी रिपोर्ट के अनुसार हर साल होने पर बाल अपराध, बाल यौन शोषण, बाल तस्करी जैसे अपराधो में सिर्फ 5 से 6% दोषियों को सजा हो पाती है. बाकी मुकदमे सालों साल चलते रहते है और केस कमजोर होने पर अपराधी छूट जाते हैं. इसे रोकने में अनेक समस्याएं आती हैं.
बाल तस्करी को रोकने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं और बाल आयोग का भी गठन किया गया है. इसके साथ ही बाल तस्करी को रोकने के लिए राजस्थान पुलिस द्वारा हर एक जिले में मानव तस्करी विरोधी यूनिट का गठन किया गया है. लेकिन सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं महज कागजों तक ही सीमित होकर रह गई है और धरातल पर जिस स्तर पर कार्य होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है.
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बाल श्रम के खिलाफ कार्य करने वाली विभिन्न संस्थाओं और मानव तस्करी विरोधी यूनिट द्वारा राजस्थान से प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में बच्चों को रेस्क्यू कराया जाता है, लेकिन जो आंकड़ा बच्चों की तस्करी का है, उस आंकड़े के सामने रेस्क्यू कराए गए बच्चों का आंकड़ा बेहद कम होता है.
गरीबों को उधारी पैसे देकर बच्चों को रखते हैं गिरवी
बालश्रम के खिलाफ कार्य करने वाले 'बचपन बचाओ आंदोलन' जयपुर के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह ने बताया कि जिन राज्यों में बेहद गरीबी और भुखमरी के हालात हैं. वहां अनेक गांव में तस्कर सक्रिय हैं. जो गरीबों को रुपए उधार देते हैं और ब्याज चुकाए जाने तक उन गरीबों के मासूम बच्चों को अपने पास गिरवी रख लेते हैं.
कई बार मां-बाप घटना की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करवाते हैं. कुछ लोक-लाज, शर्म, बदनामी की वजह से प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाते हैं. बाल यौन हिंसा में अनेक बार पारिवारिक सदस्य और रिश्तेदार ही दोषी होते हैं. ऐसे मामले में परिवार चुप्पी साध लेते है.
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तस्कर इतने ज्यादा ब्याज पर गरीबों को रुपए उधार देते हैं कि 5 से 10 साल तक भी गरीब उनका ब्याज नहीं चुका पाते और गरीबों के मासूम बच्चों को तस्कर दूसरे राज्यों में तस्करी कर बाल श्रम के दलदल में धकेल देते हैं. वहीं कई बार तस्कर एडवांस में रुपए देकर बच्चों को काम कराने के लिए लाते हैं और इतना ब्याज लगाते हैं कि बच्चा 4 से 5 साल से ज्यादा भी काम करे तो भी मां-बाप का लिया कर्ज नहीं चुका पाता.
मासूमों को यातनाएं देकर करवाया जाता है काम
'बचपन बचाओ आंदोलन' जयपुर के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह बताते हैं कि बालश्रम के दलदल में धकेल गए मासूमों से सुबह 8 बजे से लेकर रात 1 बजे तक काम करवाया जाता है. बच्चों से चूड़ी कारखानों में और आरा तारी का काम करवाया जाता है. इस दौरान अगर किसी बच्चे की तबीयत खराब होती है या फिर उसे किसी तरह की बीमारी हो जाती है तो उस पर तस्करों के द्वारा बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता है और काम नहीं करने पर बच्चों को यातनाएं भी दी जाती हैं.
कई बच्चे बीमारी के कारण दम भी तोड़ देते हैं. तस्कर बच्चों को सिर्फ रुपए कमाने की एक मशीन समझते हैं और मासूमों की बिल्कुल भी देखभाल नहीं करते हैं. बच्चों की किस प्रकार से देखभाल की जाए, इस बात से तस्करों का कोई भी सरोकार नहीं होता है. वह सिर्फ अपना प्रॉफिट कमाने के लिए ही मासूमों से काम करवाते जाते हैं.
बाल तस्करी के राजस्थान में 2 जोन
ऑफिसर देशराज सिंह बताते हैं कि बाल तस्करी के मामलों में राजस्थान दो जोन में बटा हुआ है. जिसमें एक जयपुर बेल्ट है. जहां पर दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में मासूमों को तस्करी करके लाया जाता है और फिर उन्हें बाल श्रम की नर्क भरी जिंदगी जीने को मजबूर किया जाता है. जयपुर बेल्ट के लिए मासूमों को बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से तस्करी कर लाया जाता है.
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वहीं बाल तस्करी का दूसरा बेल्ट उदयपुर संभाग है. उदयपुर संभाग से मासूमों को तस्करी कर दूसरे राज्यों में ले जाया जाता है. जहां से अधिकांश मासूमों को गुजरात में बीटी कॉटन का काम कराने के लिए ले जाया जाता है. हर साल दूसरे राज्यों से औसतन 10,000 बच्चे तस्करी कर राजस्थान में लाए जाते हैं तो वहीं राजस्थान से भी औसतन 10,000 बच्चे ही तस्करी कर दूसरे राज्यों में ले जाए भी जाते हैं.
क्या कहता है कानून
बाल श्रम (प्रतिबंध एवं नियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 में बाल श्रम पर नया कानून पारित किया गया. इसके अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को काम पर रखने वाले को 2 साल तक की जेल होगी और 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगेगा. 14 से 18 साल तक के बच्चों को ज्वलनशील पदार्थो को बनाने वाली फैक्ट्री, पटाखा फैक्ट्री में काम पर रखने की रोक है. दूसरी बार बाल अपराध में दोषी पाए जाने पर नियोक्ता को 3 साल तक की जेल भी हो सकती है.
बाल तस्करी को लेकर राजस्थान पुलिस द्वारा दर्ज मामले
बालश्रम के खिलाफ काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल बताते हैं हर साल राजस्थान से बड़ी संख्या में बच्चों की तस्करी कर दूसरे राज्य में ले जाया जाता है तो वहीं दूसरे राज्यों से भी बड़ी संख्या में ही बच्चों को तस्करी कर राजस्थान में लाया जाता है. जो काफी गंभीर विषय है और इस पर सरकार को विशेष फोकस के साथ काम करने की जरूरत है.
पिछले 5 सालों में राजस्थान पुलिस ने वर्ष 2019 में बाल तस्करी के खिलाफ सर्वाधिक प्रकरण दर्ज किए. जिसमें अलवर जिले में 27 प्रकरण बालश्रम के दर्ज किए गए. वहीं यदि बात राजधानी जयपुर की की जाए तो जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के नार्थ जिले में बाल श्रम के खिलाफ सर्वाधिक कार्रवाई देखने को मिली.