जयपुर. राजस्थान यूनिवर्सिटी का आज यानि 8 जनवरी को 74वां स्थापना दिवस है. लेकिन इस 74वें स्थापना दिवस पर यूनिवर्सिटी किसी तरह का कोई सेलिब्रेशन नहीं कर रहा है. यूनिवर्सिटी के कुलपति आरके कोठारी ने कहा कि राज्यपाल और उच्च शिक्षा मंत्री की व्यस्तता के चलते किसी प्रकार का कोई बड़ा सेलिब्रेशन नहीं किया जा रहा है. लेकिन आज हम आपको राजस्थान यूनिवर्सिटी की शुरुआत से लेकर अब तक की कहानी बताते हैं...
8 जनवरी 1947 को प्रदेश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी. स्थापना के समय इसको नाम दिया गया था राजपूताना विश्वविद्यालय. राजपूताना यूनिवर्सिटी के रूप में स्थापित हुई राजस्थान यूनिवर्सिटी ने देश के साथ विदेशों में धूम मचाई थी. भुवनेश्वर में हुई 99वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी यूनिवर्सिटी की सराहना की. लेकिन, अब शायद यह इतिहास बनकर रह गया है.
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वह इसलिए कि अब राजस्थान यूनिवर्सिटी देश की टॉप यूनिवर्सिटीज में जगह नहीं बना पाई है. यहां तक कि टॉप 200 की रैंकिंग से भी बाहर है. इसके साथ ही यदि बात करें सीमा पार से आने वाले स्टूडेंट की संख्या की तो उसमें भी लगातार गिरावट देखी जा रही है. इस सेशन में तो यह संख्या ना के बराबर यानि 8 ही रह गई है.
विदेशी स्टूडेंट्स की आई कमी...
एक समय था जब राजस्थान यूनिवर्सिटी में विदेशी स्टूडेंट का क्रेज था. यहां के रिसर्च का बोलबाला था, दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज में नाम भी था, लेकिन समय के साथ-साथ आगे बढ़ने की बजाय. अब राजस्थान यूनिवर्सिटी का नाम कुछ धुंधला सा हो गया है, जिसकी वजह को अब तलाशा जाना जरूरी भी है. जहां विदेशी छात्रों की संख्या अच्छी तादाद में हुआ करती थी तो वहीं आज ये संख्या घटकर महज 8 से 15 ही रह गई है.
कुलपति का मानना है कि विदेशी स्टूडेंट के लिए सेफ एनवायरनमेंट, क्वालिटी एजुकेशन, लैंग्वेज और सिटी लोकेशन महत्व होती है, जिसमें सिटी लोकेशन सही है. लेकिन बाकी बिंदुओं पर एक बार फिर से तैयारी करने की जरूरत है.
राजस्थान यूनिवर्सिटी की रैंकिंग टॉप 200 में भी नहीं...
देश दुनिया में नाम रखने वाली राजस्थान यूनिवर्सिटी की रैंकिंग एक समय टॉप 5 में आया करती थी. लेकिन पिछले तीन सालों की बात करें तो, राजस्थान विश्वविद्यालय तीन साल पहले इस सूची में 79वें नंबर पर था. साल 2018 में रैंक गिरी और विश्वविद्यालय टॉप 100 से फिसलकर टॉप-150 की सूची में आ गया. साल 2019 में रैंक फिर गिरी और टॉप 200 की सूची से भी बाहर हो गया. ये रैंकिंग मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क के आधार पर है. इस रैंकिंग से लगातार राजस्थान यूनिवर्सिटी अपनी साख खोता जा रहा है. आरयू के कुलपति आरके कोठारी ने खुद माना है कि यूनिवर्सिटी की गिरती साख के पीछे शिक्षकों की कमी है.
शिक्षकों और संसाधनों की कमी ने गिराई रैंक...
बता दें कि यूनिवर्सिटी में करीब 37 विभाग हैं. कुछ विभागों में वर्ल्ड क्लास रिसर्च हो रही थी, लेकिन पिछले दिनों शिक्षकों की कमी के चलते विवि को इससे भी जूझना पड़ रहा है. वहीं माहौल भी पहले जैसा नहीं रहा और इस बात को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कुलपति आरके कोठारी भी मानते हैं. राजस्थान यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के 951 पद स्वीकृत हैं, लेकिन महज 517 ही शिक्षक लगे हुए हैं. प्रोफेसर 14, असिस्टेंट प्रोफेसर 188 और एसोसिएट प्रोफेसर 315 लगे हुए हैं. कुलपति ने कहा कि साल 1978 के समय आरयू में लगभग 1100 शिक्षक लगे हुए थे. लेकिन आज ये संख्या आधी से भी कम हो गई है.
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देश में यूनिवर्सिटीज की भरमार है, लेकिन आर यू ने अपनी खूबियों के चलते अपना नाम कमाया है. आरयू की सबसे बड़ी पहचान यहां होने वाली रिसर्च वर्क है, जिसके लिए सात समुंदर पार से भी स्टूडेंट के यहां मोह देखा जाता रहा है. लेकिन अब यदि इस साख को बनाए रखना है तो एक बार फिर से राजस्थान यूनिवर्सिटी के माहौल और क्वालिटी एजुकेशन पर गौर करना होगा.