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Special: 'जीवनदायनी' बनी मनरेगा, प्रदेश में 20 लाख प्रवासी श्रमिकों को मिला काम - Seven lakh job cards made

वैश्विक महामारी ने गरीब कामगारों की कमर तोड़ दी है. ऐसे में मनरेगा ने उन्हें रोजगार देकर नया जीवन दिया है. खास तौर से प्रवासी श्रमिकों के लिए यह योजना वरदान बनकर सामने आई है. योजना के तहत प्रदेश में लॉकडाउन के बाद करीब 20 लाख प्रवासी श्रमिकों को काम मिला है.

MNREGA provided employment
मनरेगा ने दिया रोजगार
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Published : Sep 30, 2020, 3:32 PM IST

जयपुर. कोरोना काल ने आम हो या खास सभी की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है लेकिन सबसे ज्यादा असर श्रमिकों पर पड़ा है. खास तौर से प्रवासी श्रमिक जो दूरदराज से अपना काम धंधा छोड़कर कोरोना काल में अपने घर लौट आए. ऐसे में संकट के समय श्रमिकों के लिए 'मनरेगा' जीवनदायनी बन कर उभरी है.

मनरेगा ने दिया रोजगार
योजना के तहत प्रदेश में लॉकडाउन के बाद करीब 20 लाख प्रवासी श्रमिकों को काम मिला है. जबकि सात लाख श्रमिकों के नए जॉब कार्ड बने हैं.

वैश्विक महामारी कोरोना के बीच प्रदेश भर में श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया था. दूरदराज से श्रमिक पैदल ही अपने घरों को लौटने लगे. लाखों की संख्या में प्रवासी श्रमिक छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़कों पर आते दिखे. वे किसी तरह घर तो लौट आए लेकिन काम न होने से खाने के भी लाले पड़ गए. ऐसे में मनरेगा योजना श्रमिकों के लिए वरदान बनकर आई.

The laborers came back home somehow
किसी तरह घर वापस पहुंचे थे मजदूर

यह भी पढ़ें: Special : कोरोना काल में मनरेगा ने दिया सहारा, बेरोजगार श्रमिकों को मिला रोजगार

मनरेगा कमिश्नर पीसी किशन ने बताया कि कोरोना संकट और लॉकडाउन के बाद उपजे हालातों में मनरेगा के अंतर्गत काफी संख्या में श्रमिकों को रोजगार मिला है. उन्होंने बताया कि टॉप पांच राज्यों में राजस्थान पहले नम्बर पर है, प्रदेश में अब तक लॉकडाउन के बाद करीब 20 लाख प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा में रोजगार दिया गया है. जबकि इस दौरान 7 लाख से अधिक नए श्रमिकों के जॉब कार्ड बने हैं.

Doing work in thousands
हजारों की संख्या में कर रहे काम

यह भी पढ़ें: स्पेशल: लॉकडाउन और कोरोना ने छिना रोजगार, तो खिलौनों से मिला काम

बताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से अप्रेल माह में मनरेगा श्रमिकों की संख्या कम हुई थी लेकिन जैसे ही अनलॉक हुआ उसके बाद श्रमिकों को मनरेगा में बड़ी संख्या में काम दिया गया. मई , जून , जुलाई और अगस्त में 20 लाख से भी ज्यादा नए श्रमिकों को मनरेगा से जोड़ा गया. हालांकि जो श्रमिक बाहरी राज्यों में मजदूरी कर रहे हैं, उनमें से 70 से 80 फीसदी श्रमिकों के पहले से ही जॉब कार्ड बने हुए हैं.

Women also got work
महिलाओं को भी मिला काम

खास बात यह है कि प्रवासी श्रमिकों की बात करें तो भीलवाड़ा , बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर यह वे जिले हैं जहां सबसे ज्यादा प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा से जोड़ा गया.
ऐसे बढ़ा ग्राफ - 21 मार्च से 16 अप्रेल तक लॉकडाउन की वजह से मनरेगा बंद रही लेकिन 17 अप्रेल के बाद से मनरेगा में श्रमिकों का कोरोना गाइड लाइन के साथ काम करने की अनमति दी गई. 17 अप्रेल को प्रदेश में 62 हजार श्रमिक मनरेगा में काम कर रहे थे , इसके दस दिन बाद 18 मई तक यह संख्या बढ़ कर 32 लाख 32हजार 314 पर पहुंच गई.

इसके बाद 15 जून तक यह रिकॉर्ड कायम करते हुए 53 लाख 45 हजार 337 तक पहुंची. हालांकि 15 जुलाई तक यह संख्या कम हुई और 28 लाख 40 हजार 225 पहुंच गई और अब 21 सिंतम्बर तक यह आंकड़ा 15 लाख 82 हजार 327 के निचले स्तर पर पहुंचा. हालांकि कम होते आंकड़ों के पीछे लॉकडाउन में मिली छूट और किसानों की फसल बुआई का समय होना बताया जा रहा है.

जयपुर. कोरोना काल ने आम हो या खास सभी की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है लेकिन सबसे ज्यादा असर श्रमिकों पर पड़ा है. खास तौर से प्रवासी श्रमिक जो दूरदराज से अपना काम धंधा छोड़कर कोरोना काल में अपने घर लौट आए. ऐसे में संकट के समय श्रमिकों के लिए 'मनरेगा' जीवनदायनी बन कर उभरी है.

मनरेगा ने दिया रोजगार
योजना के तहत प्रदेश में लॉकडाउन के बाद करीब 20 लाख प्रवासी श्रमिकों को काम मिला है. जबकि सात लाख श्रमिकों के नए जॉब कार्ड बने हैं.

वैश्विक महामारी कोरोना के बीच प्रदेश भर में श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया था. दूरदराज से श्रमिक पैदल ही अपने घरों को लौटने लगे. लाखों की संख्या में प्रवासी श्रमिक छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़कों पर आते दिखे. वे किसी तरह घर तो लौट आए लेकिन काम न होने से खाने के भी लाले पड़ गए. ऐसे में मनरेगा योजना श्रमिकों के लिए वरदान बनकर आई.

The laborers came back home somehow
किसी तरह घर वापस पहुंचे थे मजदूर

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मनरेगा कमिश्नर पीसी किशन ने बताया कि कोरोना संकट और लॉकडाउन के बाद उपजे हालातों में मनरेगा के अंतर्गत काफी संख्या में श्रमिकों को रोजगार मिला है. उन्होंने बताया कि टॉप पांच राज्यों में राजस्थान पहले नम्बर पर है, प्रदेश में अब तक लॉकडाउन के बाद करीब 20 लाख प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा में रोजगार दिया गया है. जबकि इस दौरान 7 लाख से अधिक नए श्रमिकों के जॉब कार्ड बने हैं.

Doing work in thousands
हजारों की संख्या में कर रहे काम

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बताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से अप्रेल माह में मनरेगा श्रमिकों की संख्या कम हुई थी लेकिन जैसे ही अनलॉक हुआ उसके बाद श्रमिकों को मनरेगा में बड़ी संख्या में काम दिया गया. मई , जून , जुलाई और अगस्त में 20 लाख से भी ज्यादा नए श्रमिकों को मनरेगा से जोड़ा गया. हालांकि जो श्रमिक बाहरी राज्यों में मजदूरी कर रहे हैं, उनमें से 70 से 80 फीसदी श्रमिकों के पहले से ही जॉब कार्ड बने हुए हैं.

Women also got work
महिलाओं को भी मिला काम

खास बात यह है कि प्रवासी श्रमिकों की बात करें तो भीलवाड़ा , बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर यह वे जिले हैं जहां सबसे ज्यादा प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा से जोड़ा गया.
ऐसे बढ़ा ग्राफ - 21 मार्च से 16 अप्रेल तक लॉकडाउन की वजह से मनरेगा बंद रही लेकिन 17 अप्रेल के बाद से मनरेगा में श्रमिकों का कोरोना गाइड लाइन के साथ काम करने की अनमति दी गई. 17 अप्रेल को प्रदेश में 62 हजार श्रमिक मनरेगा में काम कर रहे थे , इसके दस दिन बाद 18 मई तक यह संख्या बढ़ कर 32 लाख 32हजार 314 पर पहुंच गई.

इसके बाद 15 जून तक यह रिकॉर्ड कायम करते हुए 53 लाख 45 हजार 337 तक पहुंची. हालांकि 15 जुलाई तक यह संख्या कम हुई और 28 लाख 40 हजार 225 पहुंच गई और अब 21 सिंतम्बर तक यह आंकड़ा 15 लाख 82 हजार 327 के निचले स्तर पर पहुंचा. हालांकि कम होते आंकड़ों के पीछे लॉकडाउन में मिली छूट और किसानों की फसल बुआई का समय होना बताया जा रहा है.

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