जयपुर. केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने बिजली संशोधन विधेयक का नया ड्राफ्ट सार्वजनिक करते हुए इस पर तीन सप्ताह में सुझाव मांगा है. यदि ये ड्राफ्ट पारित होता है तो ये बिजली कानून 2003 का स्थान लेगा.
दरअसल, सरकार कानून में संशोधन करके विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण बनाना चाह रही है. प्रस्तावित प्राधिकरण बिजली उत्पादक और वितरण कंपनियों के बीच बिजली खरीद समझौते से जुड़े विवाद का निस्तारण करेगा. इसे दीवानी अदालत के अधिकार होंगे. विधेयक के ड्राफ्ट के मुताबिक अनुबंधों की किसी धारा पर निर्णय करने का अधिकार केवल ईसीईए को होगा. इस ड्राफ्ट में सबसे अहम बिंदू यह है कि इसमें बिजली उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले अनुदान को डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर है.
हालांकि इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार आमने-सामने हो गए हैं. 17 अप्रैल को जारी इस ड्राफ्ट के बाद से ही राजस्थान की गहलोत सरकार इसकी आवश्यकता को ही सिरे से नकारती आ रही है. साथ ही ड्राफ्ट में दिए बिंदुओं पर भी कई सवाल उठ रहे हैं.
इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने रिटार्यड चीफ इंजीनियर और एडिटर डी.पी चिरानिया से बात की. कई मुद्दों पर बात करते हुए चिरानिया ने कई सवालों के जवाब दिए.
सवाल : बिजली संशोधन विधेयक के ड्राफ्ट से उपभोक्ताओं को क्या फायदा होगा?
जवाब : इससे सीधे तौर पर उपभोक्ताओं को कोई फायदा नहीं होगा. इससे उलट इस संशोधन से सिर्फ नुकसान ही होगा. इस संशोधन से समस्याओं का समाधान नहीं होगा. इसमें परेशानियों के निराकरण का कहीं ध्यान नहीं रखा गया है. इस संशोधन में बहुत कमियां हैं जिन्हें सरकार को धयान में रखना चाहिए.
विपक्ष में राजेंद्र राठौड़ ने बीडी कल्ला के इस तर्क को निराधार बता दिया है. उनका कहना है कि ये एक क्रांतिकारी कदम है. उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में बिजली से जुड़े विवाद को निपटाने के लिए बने राज्य विद्युत नियामक को दंतविहीन और शक्तिविहीन बताया है. राठौड़ के अनुसार प्रदेश सरकार ऐसे भी हजारों करोड़ का अनुदान देती है, अब यदि वह अनुदान सीधे बिजली उपभोक्ताओं के खातों में चले जाएगा तो क्या बुराई है.
सवाल : राज्य सरकार ने इस मसौदे की आवश्यकता को नकार दिया है. राजस्थान के ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला ने जैसा कहा उसके हिसाब से क्या यह सही है कि इस प्रस्ताव को राज्यों के अधिकारों का हनन कहा जा सकता है ?
जवाब : राजनीतिक बयानों पर नहीं बोलना चाहूंगा क्योंकि राजनीतिक पार्टियां गहराई में ना जाकर सिर्फ उपरी तौर पर बात करती है. पार्टियां सिर्फ सतही स्तर पर बात करते हैं. सभी नेता डिबेट के नाम पर अपने हाथ खड़े कर देते हैं.
सवाल : विधेयक के ड्राफ्ट से राज्यों को किस तरह का फायदा या नुकसान होगा ?
जवाब : राज्यों को फायदा या नुकसान नहीं. राज्य अपना फायदा कैसे भी निकाल लेता है. पार्टियां अपने स्वार्थ के काम का रास्ता ढूंढ लेते हैं. बड़े पदों पर अधिकारी पार्टियों का साथ दे देते हैं.
सवाल : बिजली खरीद सहित अन्य विवाद क्या अब ज्यादा आसानी से निपट जाएंगे या फिर ये केवल राजनीति है ?
जवाब : इस विधेयक से कोई विवाद नहीं सुलझेगी. रेगुलेटर को रिमॉडल करना होगा. सरकार को वर्क लोड कम करने की तरकीब निकालनी चाहिए. इसमें काम करने वाले लोगों में स्किल का कमी है. एक नेशनल इंस्टिट्यूशन बनाकर सभी को ट्रेनिंग देनी चाहिए. अधिकारियों का पैनल बनाना चाहिए जो विभाग को चलाए. अभी बनाए गए ड्राफ्ट से किसी तरह के विवादों का समाधान नहीं होगा.
सवाल : क्या केन्द्र सरकार को ड्राफ्ट पर पुर्नविचार करना चाहिए ?
जवाब : डीबीटी का कॉंसेप्ट ही पूरी तरह से व्यर्थ है. सरकार को सही मुद्दों और परेशानियों पर ध्यान देना चाहिए ना कि नए नए रेगुलेशन बनाने चाहिए. ये कदम पूरी तरह से सिर्फ राजनिति है.