जयपुर. बच्चा एक बड़ी जिम्मेदारी होता है. राजस्थान महिला आयोग भी इसे शिद्दत से महसूस करता है. तभी तो अपने कार्यालय में एक कोना ऐसे बच्चों के लिए समर्पित कर दिया है जिनके अभिभावक काउंसलिंग के लिए आते हैं. एक कमरे में बसी बच्चों की दुनिया को नाम दिया है शिशु सदन (Shishu Sadan by Rajasthan Women Commission ). इस सदन में हर वो साजो सामान है जो मासूमों को अपनी ओर खींचता है. खिलौने और रंगों का चयन ऐसा किया गया है जो मानसिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर उन्हें सुकून देता है. महिला आयोग की अध्यक्ष रेहाना रियाज की सोच का फल है ये सदन. संस्था फोर्टी वुमन विंग ने इसे शांत और सौम्य लुक दिया है. हफ्ते में दो दिन मंगलवार और बुधवार को बच्चों से गुलजार रहता है बच्चों का ये बसेरा.
रोते बच्चे और मां बाप की मजबूरी देख लिया फैसला: रेहना रियाज ने काउंसलिंग के दौरान बच्चों को सहमते, सिकुड़ते और चीखते-चिल्लाते देखा. एक वाकए को साझा करते हुए कहती हैं- एक केस सामने आया जब काउंसलिंग के दौरान पति पत्नी आपस में तेज आवाज में झगड़ा करने लगे. उस वक्त उनके साथ 3 साल का एक मासूम भी था. जो झगड़े को देखकर बुरी तरह से डर गया. हमने काउंसलिंग को बीच में रोक पहले उस बच्चे को संभाला. उसके लिए टॉफी मंगवाई फिर आयोग के स्टाफ के साथ बाहर खेलने में भेजा, लेकिन वो बच्चा रोते हुए चुप नहीं हुआ. उस वक्त इस बात का ख्याल आया कि इस तरह की काउंसलिंग के दौरान जो छोटे बच्चे होते हैं, जिन्हें पेरेंट्स घर पर भी नहीं छोड़ सकते अगर वो साथ में काउंसलिंग के दौरान रहेंगे तो उनकी मेंटल हेल्थ पर क्या असर पड़ेगा? इसको ध्यान में रखते हुए इस शिशु सदन को तैयार करने का निर्णय किया गया.
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बच्चों का मन मोह रहा शिशु सदन: बच्चों को खिलौनों संग खेलते देख रियाज की आंखों में जो चमक दिखती है वो बताती है कि उनकी सोच सही थी. फिर वो इस सोच को एक आकार देने की कहानी भी बताती हैं. कहती हैं जब बच्चों की स्थिति को देखा तो मन में ये ख्याल आया कि क्यों ना आयोग परिसर में ही एक कमरा ऐसा तैयार किया जाए जहां पर इन बच्चों को रखा जा सके. इसके लिए फोर्टी वुमन विंग की चेयरमेन नेहा गुप्ता से बात की. उन्होंने तत्काल प्रभाव से कहा कि इस तरह का रूम फोर्टी वुमन विंग तैयार करेगी. फोर्टी वैसे भी सीएसआर (Corporate social responsibility Of Forti Women Wing) और चैरिटी पर काम कम करती है, पूरी विंग की ओर से ही ये पूरा काम करवाया गया.
खेल और मनोरंजन का हर साधन: बच्चों के इस कमरे में खेलने और मनोरंजन के सभी साधन मौजूद हैं. स्लाइडर, बॉस्केट बॉल, ट्रेन टॉय सहित कई तरह के खिलौने हैं. मॉनिटर भी है कार्टून प्रोग्राम दिखाने का पूरा प्रबंध है. मां बाप के इंतजार में बच्चे भूख से न तड़पें इसका भी पूरा प्रबंध है. इनके लिए पानी, दूध लस्सी आदि पेय पदार्थ तथा खाने की वस्तुएं भी उपलब्ध हैं. कमरे में सबकुछ है लेकिन बेतहाशा गर्मी को देखते हुए एक अदद एसी की कमी है. रियाज बताती हैं कि उसके लिए भी फोर्टी ने आश्वासन दे दिया है.
सुनवाई में आते है 50 से ज्यादा मामले: बच्चों के उम्र की सीमा क्या हो ? इस पर रियाज बताती हैं कि महिला आयोग में सप्ताह में 2 दिन होने वाले सुनवाई में 50 से ज्यादा मामलों में काउंसलिंग की जाती है. इस दौरान पक्ष विपक्ष और परिवार सहित करीब 100 से ज्यादा लोग एकत्रित होते हैं. इनमें ज्यादातर पेरेंट्स के साथ बच्चे भी होते हैं. बच्चे जो 7 साल से कम उम्र के हैं इस शिशु गृह में आ सकते हैं. इन बच्चों को उनके पैरंट्स की होने वाली किसी भी काउंसलिंग कि कोई जानकारी नहीं होती है. जिससे दिमाग पर Negative Impact भी नहीं पड़ता.