जयपुर. राजेंद्र राठौड़ ने अपने पत्र में लिखा कि रोडा एक्ट 1974 के प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव लाने से प्राकृतिक आपदा और अन्य कारणों से जो किसान बैंकों से प्राप्त अल्पकालीन अवधिपार फसली ऋण का भुगतान समय पर नहीं कर पाते हैं, उनकी 5 एकड़ तक की कृषि भूमि की (Politics on Rajasthan Farmer Land Auction) कुर्की या विक्रय होने से बच सके.
राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंक, अधिसूचित बैंक व ग्रामीण बैंकों से 2 लाख रुपये तक के 30 नवम्बर 2018 तक के अल्पकालीन अवधिपार ऋण की माफी के लिए वन टाइम सेटलमेंट के लिए कमर्शियल बैंक व केन्द्र सरकार से परामर्श कर ऋण माफी के लिए वर्ष 2019-20 के बजट भाषण के पैरा 25 व बजट 2021-22 के बजट भाषण के पैरा 68 तथा राज्यपाल अभिषाण वर्ष 2019 के पैरा 11 व वर्ष 2020 के पैरा 27 के माध्यम से समाधान किए जाने का आश्वासन दिया था.
पढ़ें : राजभवन का स्पष्टीकरण: किसानों की जमीन नीलामी से जुड़ा रोडा एक्ट संशोधन विधेयक राजभवन नहीं आया...
इसके पश्चात राज्य के किसानों को गुमराह करने के लिए (Rajendra Rathore Alleged Gehlot Government) बीडी कल्ला की अध्यक्षता में राष्ट्रीयकृत बैंक, अधिसूचित बैंक व ग्रामीण बैंकों के ऋणी किसानों का वन टाइम सेटलमेंट करने के लिए सरकार को सुझाव देने के लिए बनाई गई इस कल्ला कमेटी की दर्जनों बैठक व दक्षिणी राज्यों के दौरे के बाद तथा 3 साल बाद भी अनिर्णित रहना किसानों के साथ धोखा है.
राठौड़ ने कहा कि सरकार के दिए गए आश्वासन से राज्य के लगभग 16 लाख किसान जिन पर लगभग 12 हजार करोड़ के 30 नवम्बर 2018 के बाद के फसली ऋण बकाया थे, ने कर्जा नहीं चुकाया. जिसके परिणामस्वरूप आज हजारों किसानों की कृषि भूमि की नीलामी प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है. दुर्भाग्य है कि समस्या के कारगर समाधान को ढूंढने के स्थान पर सरकार अब राजभवन व राज्यपाल को आरोपित करने का कृत्सित प्रयास कर रही है.
राठौड़ ने कहा कि (Rajendra Rathore Wrote a Letter to CM Gehlot) सरकार द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता जो केन्द्रीय अधिनियम है कि धारा 60 (1) के अर्न्तगत दिनांक 02 नवम्बर 2020 में संशोधन किया है. वह संविधान की समवर्ति सूची का विषय है, जिसमें प्रविष्ठि संख्या 13 में सिविल प्रक्रिया संहिता का वर्णन किया है. जिससे स्पष्ट होता है कि उक्त विषय पर राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार को विधि बनाने के अधिकार प्राप्त है.
राठौड़ ने कहा कि अनुच्छेद 246 (2) में प्रावधान है कि किसी राज्य के विधान मंडल को समवर्ती सूची में वर्णित विषयों के सम्बन्ध में विधि बनाने की शक्ति है, लेकिन अनुच्छेद 254 (2) में स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं कि राज्य का विधान मंडल जब केन्द्र द्वारा पारित किए गए अधिनियमों के सम्बन्ध में किसी प्रकार का कोई संशोधन करता है तो उस संशोधन के सम्बन्ध में राज्यपाल महोदय उक्त संशोधन की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को उक्त संशोधन को भेजेगा. इससे स्पष्ट है कि सरकार द्वारा सीपीसी में किए गए वर्तमान संशोधन को भी राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक है.
उपनेता प्रतिपक्ष ने आगे कहा कि सरकार ने सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 60 (1) (बी) में संशोधन द्वारा ऋणी किसान की 5 एकड़ तक की भूमि को कुर्की/विक्रय से मुक्त करने का प्रावधान कर दिया है. लेकिन उक्त प्रावधान प्रदेश के किसानों के लिए किसी भी प्रकार से उपयोगी नहीं है. राठौड़ ने कहा कि मैं, यहां सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 60 (1) के प्रावधानों की ओर आकर्षित करना चाहूंगा, जिसमें स्पष्ट प्रावधान है कि न्यायालय के आदेश के द्वारा किसी व्यक्ति की भूमि, घर या अन्य निर्माण, माल, धन, बैंक नोट, चैक, विनिमय पत्र, हुण्डी, वचन पत्र, सरकारी प्रतिभूमियां, धन के लिए बंधपत्र या अन्य प्रतिभूमियां, ऋण निगम अंश कुर्क और विक्रय किए जा सकेंगे, जब न्यायालय की डिक्री उस व्यक्ति के विरूद्ध पारित की गई है और वह व्यक्ति निर्णित ऋणी है.
राठौड़ ने कहा कि धारा 60 (1) (ए) में प्रावधान है कि ऐसा व्यकित जिसके विरूद्ध डिक्री पारित की गई है और वह निर्णित ऋणी है तब उसके स्वयं, पत्नी और बच्चों के आवश्यक वस्त्रों, भोजन पकाने के बर्तन, चारपाई और बिछौने और ऐसे निजी आभूषण जिन्हें कोई स्त्री धार्मिक प्रथा के अनुसार अपने से अलग नहीं कर सकती कुर्क/विक्रय नहीं की जा सकेंगी. राठौड़ ने कहा कि धारा 60 (1)(बी) में प्रावधान है कि शिल्पकार के औजार और जहां निर्णित ऋणी कृषक है, वहां उसके दूध देने वाले तथा ऐसे पशु जिनका 2 वर्ष भीतर बयाना संभव है.
खेती के उपकरण और पशु और बीज जो न्यायालय की राय में उसे उसकी हैसियत में अपनी आजीविका कमाने के लिए समर्थ बनाने हेतु आवश्यक है और कृषि उपज या कृषि उपज के किसी ऐसे भाग को कृर्क और विक्रय नहीं किया जा सकेगा. सरकार ने इस उपधारा (बी) में संशोधन करके "उसकी 5 एकड़ तक की कृषि भूमि" जोड़ी है. जिससे सरकार का यह सोचना है कि इस प्रकार के संशोधन से किसान की 5 एकड़ तक की कृषि भूमि बैंकों द्वारा की गई वसूली से मुक्त हो जाएगी सरासर अनुचित है.
राठौड़ ने कहा कि बैंकों द्वारा किसानों को सहकार किसान कल्याण योजना के तहत किसानों की भूमि बैंकों के पक्ष में रहन कर ही ऋण देने का प्रावधान है, जिस पर किसानों को दिए गए 01 लाख 60 हजार से अधिक रुपये के ऋणों की वसूली के लिए राजस्थान कृषि ऋण संक्रिया (कठिनाई का निराकरण) अधिनियम 1974 (रोडा एक्ट, 1974) में प्रावधान दिए गए हैं. रोडा एक्ट की धारा 13 में स्पष्ट प्रावधान है कि बैंक अपने विहित प्राधिकारी के माध्यम से ऋण की वसूली कर सकता है.
राठौड़ ने कहा कि उक्त प्रावधानों से स्पष्ट है कि बैंक के विहित प्राधिकारी को सिविल न्यायालय की शक्ति इस अधिनियम में दे रखी है, जिससे सरकार द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता में किया गया संशोधन महत्वहीन व प्रभावहीन हो गया है. उक्त संशोधन तभी लागू होगा जब किसान की भूमि 5 एकड़ हो एवं न्यायालय में उस सम्बन्ध में लम्बित मामलों में डिक्री पारित हो. इसके अतिरिक्त मामलों में बैंक का विहित प्राधिकारी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है और उस पर किसी भी प्रकार का कोई बंधन नहीं है कि वह उस किसान की भूमि को कुर्क/विक्रय न करे जिसने अल्पकालीन, अवधिपार फसली ऋणों की अदायगी नहीं की है.