जयपुर. तकनीकी और इंजीनियरिंग शिक्षा के क्षेत्र में कोरोना काल के दौरान राजस्थान का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. नीति आयोग की ओर से हाल ही में जारी की गई इनोवेशन इंडेक्स में राजस्थान टॉप 10 राज्यों में भी जगह नहीं बना पाया. इस सूची में राजस्थान को राज्यों की सूची में 13वें पायदान पर रखा गया है. देखिये यह रिपोर्ट...
शिक्षा से जुड़ा इनोवेश इंडेक्स सात सूचकांकों की समीक्षा के आधार पर तय होता है. इनमें तकनीकी शिक्षा, इंजीनियरिंग में प्रवेश और पीएचडीधारी युवाओं की संख्या भी शामिल है. इस इंडेक्स में राज्यों की सूची में राजस्थान 17 राज्यों की सूची में 13वें पायदान पर है. इस सूची में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड ही राजस्थान से नीचे पायदान पर हैं.
INFO- इन 7 सूचकांकों के आधार पर तय होती है रैंकिंग
इंडिया इनोवेशन इंडेक्स -2020 में प्रदेश का कमजोर प्रदर्शन
इस इनोवेशन इंडेक्स में एक बात और साफ तौर पर निकालकर सामने आई है कि पीएचडी, तकनीक और इंजीनियरिंग के प्रति विद्यार्थियों का रुझान बढ़ाने में राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था बेहतर साबित नहीं हो पा रही है. यही कारण है कि नीति आयोग की ओर से जारी इंडिया इनोवेशन इंडेक्स -2020 में पीएचडी, टेक्नोलॉजी और इनरोलमेंट के आधार पर राजस्थान को अंडर परफोर्मिंग राज्य बताया गया है. रिपोर्ट में सबसे कम अंक उच्च शिक्षण संस्थानों की नैक ग्रेड को मिले हैं. प्रदेश में बहुत कम शिक्षण संस्थानों को नैक की ए ग्रेड मिली हुई है.
टॉप राज्य और उनका स्कोर
तकनीकी शिक्षा मंत्री डॉ. सुभाष गर्ग का कहना है कि तकनीकी शिक्षा के मापदंड अलग हैं. हम प्लेसमेंट को इसका मानक मानते हैं. पिछले सालों में इंजीनियरिंग और तकनीकी कॉलज कुकरमुत्तों की तरह बढ़े हैं. एक साथ इंजीनियरिंग कॉलेजों की बाढ़ सी आ गई.
कुकुरमुत्तों की तरह खुल गए तकनीकि कॉलेज, अब स्थिति सुधरी
तकनीकी शिक्षा मंत्री डॉ. सुभाष गर्ग जिसकी जरूरत नहीं थी और इसका ही नतीजा है कि इतनी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए कि बच्चों की संख्या के मुकाबले कॉलेजों की संख्या बहुत ज्यादा है. इसी का नतीजा है कि कई कॉलेज तय मापदंड पर भी नहीं हैं. लेकिन पिछले दिनों हम देखें तो हमारा प्लेसमेंट भी बढ़ा है. गेट क्वालिफाइड विद्यार्थियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है.
ज्ञानविहार विश्वविद्यालय के निदेशक सुनील शर्मा का कहना है कि पूरे विश्व को अपना शिकार बनाने वाली कोरोना महामारी ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है. जाहिर सी बात है शिक्षा का क्षेत्र भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है. जहां तक सामान्य शिक्षा की बात करें तो उसमें इतनी दिक्कत नहीं आई है. जितनी तकनीकी शिक्षा में आई है.
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तकनीकि शिक्षा ऑनलाइन नहीं हो सकती
ज्ञानविहार विश्वविद्यालय के निदेशक सुनील शर्मा ने कहा कि आधुनिक तकनीक के उपयोग से ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था सामान्य शिक्षा में की गई है. लेकिन तकनीकी शिक्षा में एक बड़ी दिक्कत यह रहती है कि जब तक विद्यार्थी खुद अपने हाथ से प्रयोग करके नहीं सीखता है तब तक किसी भी विषय को समझना आसान नहीं है. तकनीकी शिक्षा का सार तत्व ही हैंड्स ऑन एक्सपीरियंस, प्रयोगशालाएं और वर्जशॉप्स हैं. तो प्रयोगशाला और वर्कशॉप में अपने हाथ से जब कोई काम करता है तो उसे एक अलग ढंग का अनुभव होता है. यह सब कोरोना काल में पूरी तरह प्रभावित रहा.
उन्होंने कहा कि तकनीक के प्रयोग से इसे भी दूर करने का प्रयास किया गया है. इन सबके बावजूद भी जब तक हैंड्स ऑन एक्सपीरियंस नहीं हो. तब तक टेक्नोक्रेट्स उतने अच्छे ढंग से काम नहीं कर पाते हैं. जितना वे कर सकते हैं. वो कमी निसंदेह रही है और उसका असर पड़ना भी लाजिमी है.
उच्च शिक्षा का क्षेत्र 5 साल से प्रभावित
महात्मा ज्योतिबाराव फुले विश्वविद्यालय के कुलपति निर्मल पंवार का कहना है कि वैसे तो प्रोफेशनल या टेक्निकल एजुकेशन या उच्च शिक्षा का क्षेत्र पिछले 5 साल से प्रभावित है. हम सब देख रहे हैं कि धीरे-धीरे हमारे देश की जीडीपी भी नेगेटिव साइड में जा रही है. तो मेरा मानना यह है कि प्रोफेशनल और टेक्निकल एजुकेशन में फीस एक बड़ा मुद्दा है. फीस स्ट्रक्चर एक बड़ा कारण है जिसने अभिभावकों को प्रभावित किया है.
उन्होंने कहा कि जहां तक तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में प्रवेश की बात है. कोरोना काल में यह ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है. बल्कि मेरी कॉलेज में तो प्रवेश बढ़ा है. इसका अभिभावकों और विद्यार्थियों पर भी असर नहीं है. लेकिन मेरा यह मानना है कि देश की जीडीपी गिरी है. ये बहुत गंभीर स्थिति है हमारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए. इसलिए शिक्षा ही नहीं, व्यावसायिक या तकनीकी शिक्षा ही नहीं. इसका प्रभाव सभी क्षेत्रों पर, अभिभावकों पर और विद्यार्थियों पर पड़ा है. जाहिर सी बात है. कोई भी सेक्टर यदि नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है तो उसका असर शिक्षा के हर क्षेत्र पर होगा.