जयपुर. राजनीतिक पार्टियों की ओर से साफ छवि वाले नेताओं को टिकट देने की जोर शोर से बात की जाती है, लेकिन हकीकत यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी राजनीतिक दल आपराधिक मामलों में लिप्त नेताओं पर मेहरबान नजर आते हैं.
राजस्थान की बात करें तो साल दर साल आपराधिक बैकग्राउंड वाले नेताओं को टिकट देने के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. इतना ही नहीं जनता भी आपराधिक मामलों में लिप्त नेताओं को भरपूर आशीर्वाद दे रही है. प्रदेश में साल 2008 से साल 2013 की तुलना में साल 2018 में दागी विधायकों की संख्या बढ़ी है. आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2008 में राजस्थान विधानसभा में करीब 23 फीसदी विधायकों पर ही अपराधिक मुकदमा दर्ज था. इनमें से 8 विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. साल 2008 में 15 फीसदी यानी 30 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. यह संख्या साल 2013 में बढ़कर 36 हो गई और अब साल 2018 में दागी नेताओं की संख्या बढ़कर 46 पर पहुंच गई है, यानी 23 फीसदी विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें से 14 फीसदी विधायकों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 22 राज्यों में 2556 मौजूदा सांसद और विधायक आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं. अगर इसमें पूर्व विधायक और सांसदों को शामिल करते हैं, तो यह संख्या 4442 तक पहुंच जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिए थे कि वो विशेष अदालत का गठन करके जिन भी जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं उन मामलों का त्वरित निस्तारण करें. लेकिन, राजस्थान की बात करें तो यहां पर अभी तक विशेष अदालत का गठन नहीं किया गया है. सूत्रों की माने तो विशेष अदालत का गठन तब किया जा सकता है जब 65 से अधिक जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हों, जबकि राजस्थान में 46 जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.
आपराधिक बैकग्राउंड वाले जनप्रतिनिधियों को टिकट
आपराधिक बैकग्राउंड से आने वाले नेताओं को टिकट देने में ना तो कांग्रेस पार्टी पीछे है और ना ही बीजेपी. यहां तक की कम्युनिस्ट पार्टी के विधायकों पर भी आपराधिक मामले दर्ज हैं. इतना ही नहीं निर्दलीय जीत कर आने वाले विधायकों के खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज हैं.
नाम | पार्टी |
---|---|
भरोसी लाल जाटव | कांग्रेस |
महेंद्रजीत सिंह मालवीय | कांग्रेस |
मदन प्रजापत | कांग्रेस |
अशोक चांदना | कांग्रेस |
गोविंदराम | कांग्रेस |
लालचंद कटारिया | कांग्रेस |
परसादी लाल मीणा | कांग्रेस |
दिव्या मदेरणा | कांग्रेस |
रामलाल | कांग्रेस |
वेद प्रकाश सोलंकी | कांग्रेस |
मुकेश भाकर | कांग्रेस |
रामनिवास गावड़िया | कांग्रेस |
राजेंद्र गुड्डा | कांग्रेस |
जाहिदा खान | कांग्रेस |
रोहित गोरा | कांग्रेस |
रमेश मीणा | कांग्रेस |
संदीप कुमार | कांग्रेस |
भंवर सिंह भाटी | कांग्रेस |
पुष्पेंद्र सिंह | कांग्रेस |
विजयपाल मिर्धा | कांग्रेस |
भजन लाल जाटव | कांग्रेस |
रामलाल जाट | कांग्रेस |
राजेंद्र बिधूड़ी | कांग्रेस |
अर्जुन बामणिया | कांग्रेस |
चेतन डूडी | कांग्रेस |
टीकाराम जूली | कांग्रेस |
अजीत सिंह | भाजपा |
शोभारानी कुशवाह | भाजपा |
रामप्रताप कासनिया | भाजपा |
चंद्रकांता | भाजपा |
कालीचरण सर्राफ | भाजपा |
कैलाश मेघवाल | भाजपा |
मदन दिलावर | भाजपा |
फूल सिंह मीणा | भाजपा |
राजेश्वर गर्ग | भाजपा |
गोपाल लाल | भाजपा |
संजय शर्मा | भाजपा |
सुभाष पूनिया | भाजपा |
बलवान पूनिया |
गिरधारी लाल | कम्युनिस्ट पार्टी |
राकेश | कम्युनिस्ट पार्टी |
रमिला खड़िया | निर्दलीय |
कांति प्रसाद | निर्दलीय |
राजकुमार गौड़ | निर्दलीय |
महादेव सिंह खंडेला | निर्दलीय |
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वहीं, इन सब में सबसे ज्यादा चौंकाने वाले बात ये है कि 30 फीसदी मंत्रियों पर भी आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं. आपराधिक मुकदमा झेल रहे नेताओं को लेकर राजनीतिक पार्टियों को सुप्रीम कोर्ट ने नए दिशा निर्देश जारी किए हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि राजस्थान के 23 फीसदी विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे, लेकिन मंत्री बनने में भी इन विधायकों का कोई ऑप्शन नहीं है. राजस्थान की गहलोत सरकार की कैबिनेट में शामिल 25 सदस्यों में से 9 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं.
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मंत्रियों के नाम | पार्टी |
---|---|
परसादी लाल मीणा | कांग्रेस |
टीकाराम जूली | कांग्रेस |
अर्जुन बामनिया | कांग्रेस |
अशोक चांदना | कांग्रेस |
भजन लाल जाटव | कांग्रेस |
लालचंद कटारिया | कांग्रेस |
रमेश मीणा | कांग्रेस |
भंवर सिंह भाटी | कांग्रेस |
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भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां विचारधारा की अलग-अलग बात करती रही हैं, लेकिन आपराधिक मुकदमों वाले विधायकों की संख्या में बराबर हैं. साल 2013 में जीतकर विधानसभा में पहुंचे विधायकों में से आपराधिक मुकदमा झेल रहे विधायकों की संख्या 23 फीसदी थी, इनमें से भाजपा के 17 फीसदी विधायक आपराधिक मुकदमा झेल रहे थे, तो कांग्रेस के 16 फीसदी. इसी तरह से 2018 की बात करें, तो इस बार जीतकर विधानसभा पहुंचने वाले विधायकों में कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही 25 फीसदी विधायक आपराधिक मुकदमा झेल रहे हैं.