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पुलिस हिरासत में कैदियों की मौतों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने मांगी रिपोर्ट - राजस्थान

राजस्थान हाईकोर्ट ने हिरासत में हुई कैदियों की मौत को लेकर राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. इसके साथ ही अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि ऐसी मौत पर दिए जाने वाला मुआवजा अलग-अलग क्यों है?

पुलिस हिरासत में कैदियों की मौतों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने मांगी रिपोर्ट.
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Published : Apr 12, 2019, 2:09 AM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने हिरासत में हुई कैदियों की मौत को लेकर राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. इसके साथ ही अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि ऐसी मौत पर दिए जाने वाला मुआवजा अलग-अलग क्यों है?

कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश मोहम्मद रफीक और गोवर्धन बाढ़दार की खंडपीठ ने यह आदेश कैदियों के कल्याण के संबंध में लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से रिपोर्ट पेश कर कहा गया कि अदालत की ओर से दिए 45 दिशा निर्देश की पालना के संबंध में गत 1 अप्रैल को उच्चस्तरीय बैठक की गई थी. जिसमें सामने आया कि कुछ बिंदुओं पर दिये आदेश की पालना की जा चुकी है.

पुलिस हिरासत में कैदियों की मौतों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने मांगी रिपोर्ट.

वहीं अदालत ने कहा कि आए दिन जेल में घटनाएं हो रही है. इस पर न्याय मित्र प्रतीक कासलीवाल ने कहा कि सीसीटीवी कैमरों के काम नहीं करने के चलते घटनाएं हो रही है. इस पर अदालत ने राज्य सरकार को कहा है कि हर जगह कैमरे सुचारू होने चाहिए. जिससे घटना होने के कारण की जानकारी मिल सके. वही अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि हिरासत में हुई मौतों के संबंध में क्या कार्रवाई की जा रही है. कई मामलों में तो पोस्टमार्टम तक नहीं कराया गया.

अदालत ने कहा कि कैदियों की मौत होने पर उसके आश्रितों को दी जाने वाली राशि अलग-अलग होती है. सरकार किस नीति के तहत क्षतिपूर्ति राशि में अंतर रखती है. वहीं अदालत के सामने आया की हिरासत में हुई मौत के 228 प्रकरणों में न्यायिक जांच लंबित है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने हिरासत में हुई कैदियों की मौत को लेकर राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. इसके साथ ही अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि ऐसी मौत पर दिए जाने वाला मुआवजा अलग-अलग क्यों है?

कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश मोहम्मद रफीक और गोवर्धन बाढ़दार की खंडपीठ ने यह आदेश कैदियों के कल्याण के संबंध में लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से रिपोर्ट पेश कर कहा गया कि अदालत की ओर से दिए 45 दिशा निर्देश की पालना के संबंध में गत 1 अप्रैल को उच्चस्तरीय बैठक की गई थी. जिसमें सामने आया कि कुछ बिंदुओं पर दिये आदेश की पालना की जा चुकी है.

पुलिस हिरासत में कैदियों की मौतों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने मांगी रिपोर्ट.

वहीं अदालत ने कहा कि आए दिन जेल में घटनाएं हो रही है. इस पर न्याय मित्र प्रतीक कासलीवाल ने कहा कि सीसीटीवी कैमरों के काम नहीं करने के चलते घटनाएं हो रही है. इस पर अदालत ने राज्य सरकार को कहा है कि हर जगह कैमरे सुचारू होने चाहिए. जिससे घटना होने के कारण की जानकारी मिल सके. वही अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि हिरासत में हुई मौतों के संबंध में क्या कार्रवाई की जा रही है. कई मामलों में तो पोस्टमार्टम तक नहीं कराया गया.

अदालत ने कहा कि कैदियों की मौत होने पर उसके आश्रितों को दी जाने वाली राशि अलग-अलग होती है. सरकार किस नीति के तहत क्षतिपूर्ति राशि में अंतर रखती है. वहीं अदालत के सामने आया की हिरासत में हुई मौत के 228 प्रकरणों में न्यायिक जांच लंबित है.

Intro:जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने हिरासत में हुई कैदियों की मौत को लेकर राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इसके साथ ही अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि ऐसी मौत पर दिए जाने वाला मुआवजा अलग अलग क्यों है? कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश मोहम्मद रफीक और गोवर्धन बाढ़दार की खंडपीठ ने यह आदेश कैदियों के कल्याण के संबंध में लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए।


Body:सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से रिपोर्ट पेश कर कहा गया कि अदालत की ओर से दिए 45 दिशा निर्देश की पालना के संबंध में गत 1 अप्रैल को उच्चस्तरीय बैठक की गई थी। जिसमें सामने आया कि कुछ बिंदुओं पर दिये आदेश की पालना की जा चुकी है । वहीं अदालत ने कहा कि आए दिन जेल में घटनाएं हो रही है। इस पर न्याय मित्र प्रतीक कासलीवाल ने कहा कि सीसीटीवी कैमरों के काम नहीं करने के चलते घटनाएं हो रही है। इस पर अदालत ने राज्य सरकार को कहा है कि हर जगह कैमरे सुचारू होने चाहिए। जिससे घटना होने के कारण की जानकारी मिल सके। वही अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि हिरासत में हुई मौतों के संबंध में क्या कार्रवाई की जा रही है। कई मामलों में तो पोस्टमार्टम तक नहीं कराया गया। अदालत ने कहा कि कैदियों की मौत होने पर उसके आश्रितों को दी जाने वाली राशि अलग-अलग होती है। सरकार किस नीति के तहत क्षतिपूर्ति राशि में अंतर रखती है। वहीं अदालत के सामने आया की हिरासत में हुई मौत के 228 प्रकरणों में न्यायिक जांच लंबित है।


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